न्यूज डेस्क
बीते सोमवार से राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों (एनसीआरबी) के आंकड़े चर्चा में है। एनआरसी के आंकड़ों की वजह से सबसे ज्यादा चर्चा में रहा उत्तर प्रदेश। इसके अलावा मॉब लिंचिंग के आंकड़े जारी न होने पर भी सवाल उठा। फिलहाल इस मामले में गृह मंत्रालय ने सफाई देते हुए कहा कि रिपोर्ट में उन आंकड़ों को इसलिए नहीं शामिल किया गया क्योंकि वे अविश्वसनीय थे और उनमें गलत सूचनाओं के शामिल होने का खतरा था।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक मंत्रालय ने यह भी कहा है कि उसने सांप्रदायिक दंगों के दौरान बलात्कार, गायों को लेकर कानून, घृणा अपराध और पत्रकारों और आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले जैसे अपराध की 25 श्रेणियों के आंकड़ों को नहीं जारी किया।
गृह मंत्रालय ने बयान में कहा गया है कि ‘यह देखा गया कि कुछ नए बनाए गए अतिरिक्त मापदंडों/अपराध वर्गों के लिए प्राप्त आंकड़े अविश्वसनीय हैं और उनकी परिभाषाओं की भी गलत व्याख्या की गई है। इस कारण, कुछ मापदंडों/अपराध वर्गों से संबंधित आंकड़े प्रकाशित नहीं किए गए हैं।’
मंत्रालय ने उन श्रेणियों की संख्या जारी की जिनके तहत आंकड़े इकट्ठे तो किए गए लेकिन उन्हें जारी नहीं किया गया। इनमें मॉब लिंचिंग, खाप पंचायतों द्वारा किए गए अपराध और धार्मिक प्रचारकों द्वारा किए गए अपराध शामिल हैं।
इसके साथ ही एनसीआरबी ने सांप्रदायिक दंगों के दौरान बलात्कार, घृणा अपराध, गोहत्या कानून, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन और ऑनर किलिंग जैसे आंकड़े भी इकट्ठा किए गए थे।
वहीं कुछ अन्य वर्गों में इकट्ठा किए गए आंकड़े पत्रकार या मीडिया से जुड़े लोगों के खिलाफ अपराध, आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपराध, ह्विसिलब्लोअरों या सूचना देने वालों के खिलाफ अपराध, सामाजिक कार्यकर्ताओं या कार्यकर्ताओं के खिलाफ अपराध और गवाहों के खिलाफ अपराध के थे।
गौरतलब है कि एनसीआरबी ने अपनी निर्धारित समयसीमा की एक साल देरी से सोमवार को अपने आंकड़े जारी तो किए लेकिन मॉब लिंचिंग, प्रभावशाली लोगों द्वारा हत्या, खाप पंचायत द्वारा आदेशित हत्या और धार्मिक कारणों से की गई हत्या से संबंधित जुटाए गए आंकड़ों को प्रकाशित नहीं किया था।
इस पर एक अधिकारी ने कहा था कि यह चौंकाने वाला है कि मॉब लिंचिंग आदि से जुड़े आंकड़ों को जारी नहीं किया गया। ये आंकड़े पूरी तरह से तैयार थे। केवल शीर्ष अधिकारियों को पता होगा कि ये आंकड़े क्यों नहीं जारी किए गए।
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