धर्मेंद्र मालिक
देश की पहली महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा बजट पेश किए जाने से किसानों को काफी उम्मीदें थीं। किसानों को उम्मीद थी कि निर्मला सीतारमन द्वारा पिछली सरकार में वाणिज्य मंत्री के रूप में व्यापार को आसान बनाने के लिए 7,000 कदम उठाए गए थे। कृषि को आसान बनाने के लिए कम से कम 5,000 कदम सुझाए जाने की उम्मीद थी, लेकिन यह बजट किसानों की आशाओं के विपरीत है।
वित्त मंत्री ने देश को दालों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसानों की सराहना करते हुए भगवान भरोसे छोड़ दिया। किसानों की फसलों की खरीद कम से कम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चित हो। इसके लिए कोई उपाय नहीं किया गया।
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आज आधा देश सूखे की चपेट में है, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा इन किसानों के लिए न तो कोई चिन्ता जाहिर की गई और न ही कोई प्रतिबद्धता दिखाई गई। कृषि के सकल घरेलू उत्पाद में घटते योगदान को लेकर सरकार के सामने किसानों की आमदनी बढ़ाये जाने की चुनौती है। देश के 17 राज्यों में किसानों की औसत आमदनी 20,000 से भी कम है।
देश में किसानों की आत्महत्याओं की प्रत्येक दिन खबर आ रही है। ऐसे में किसानों को बजट से निश्चित आमदनी तय किए जाने की अपेक्षा थी।
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वित्त मंत्री द्वारा दिए गए भाषण में किसानों के लिए चलायी गई योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री किसान, ई-नाम, ड्राप-मोर क्रोप, ग्रामीण हार्ट, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, खेत, तालाब जैसी योजनाओं का न तो जिक्र किया गया और न ही इनके लिए आवंटित धनराशि की कोई जानकारी दी गई।
पहली बार बजट भाषण में कृषि क्षेत्र के आवंटन की धनराशि का जिक्र तक नहीं किया गया। यह बजट गांव, गरीब और किसान के लिए जीरो बजट साबित होगा। किसानों को सोचना होगा कि बजट भाषण में सबसे पहले गांव, गरीब और किसान की बात की जाती थी, लेकिन इस बजट में न तो उनके लिए कोई बड़ी घोषणा की गई और न ही गांव, किसान को तवज्जो दी गई। किसानों और ग्रामीणों को सोचना होगा कि आखिर ऐसा क्यों ? बजट के अनुसार किसानों को अब सरकार की जीरो और भगवान का ही सहारा है।
(लेखक भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता हैं )