डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
कुछ साल पहले जब देश की सबसे बूढ़ी पार्टी कांग्रेस में राहुल गांधी की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जब ताजपोशी हुई थी तब उन्होंने एक बड़े स्टेडियम में बड़ी मीटिंग की थी। कहा था .. अब कांग्रेस नौजवानों की पार्टी होगी .. जाहीर है की राहुल गांधी कांग्रेस के युवा चेहरे थे और वे चाहते होंगे की एक नई और ऊर्जावान टीम उनके साथ काम करे और लगातार चुनाव में पराजित होती हुई कांग्रेस नए दम कहां के साथ आगे बढ़े .. कोई भी यही चाहता
करीब करीब हर पार्टी में यही बदलाव देखने को मिल रहा है। भाजपा के बुजुर्ग नेता मार्गदर्शक मण्डल में डाल दिए गए, समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव ने अपनी गद्दी अखिलेश यादव को सौंप दी तो कांग्रेस भी यही करना चाहती थी।
राहुल की कोशिशों के नतीजे भी निकले, गुजरात में हार्दिक पटेल, अल्पेश ठकोर, महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा, संजय निरुपम, प्रिया दत्त यूपी में अजय लल्लू, विश्वविजय सिंह, शाहनवज आलम जैसे नए नेताओं ने कांग्रेस की लड़ाई को आगे बढ़ाया लेकिन इसी बीच कुछ गड़बड़ भी हो रही थी।
राहुल ब्रिगेड के बड़े चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट ने बगावत कर दी। इसके पहले भी यूपी में अदिति सिंह, महाराष्ट्र में प्रियंका चतुर्वेदी और गुजरात में अल्पेश ठाकोर ने अपनी राह अलग कर ली।
क्या है वजह ? क्यों नहीं सम्हल पा रही है काँग्रेस ? इसी पर केरेंगे बात मेरे साथ है कुमार भवेश चंद्र, नवेद शिकोंह और कांग्रेस के प्रवक्ता बृजेन्द्र सिंह