यशोदा श्रीवास्तव
नेपाल की राजनीति में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का खौफ साफ दिख रहा है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की चिंता यह है उनकी सरकार के प्रमुख समर्थक दल नेपाली कांग्रेस के ही अधिकांश सदस्य न केवल हिंदू राष्ट्र के हिमायती हैं,तराई बेल्ट के ज्यादातर नेपाली कांग्रेस के नेता योगी भक्त भी हैं।
पूर्व पीएम और नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शेर बहादुर देउबा ने पिछले आम चुनाव में स्वयं कहा था कि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो हिंदू राष्ट्र पर विचार किया जाएगा।
संयोग से उनकी पार्टी सत्ता में नहीं लौटी। नेपाल के राजनीतिक गलियारे में इन दिनों देउबा के योगी और मोदी से मधुर रिश्ते की चर्चा भी खूब है। नेपाल में राजशाही के जमाने में नेपाली कांग्रेस ही सत्ता में रही है इसलिए इस पार्टी का राजा के निकट होना स्वाभाविक है।
नेपाल में यद्धपि की राजशाही का वापस होना संभव नहीं है लेकिन लोकतंत्र की राह से हिंदुत्ववादी पार्टी का सत्ता में आना असंभव भी नहीं है। राष्ट्रिय प्रजातंत्र पार्टी हिंदुत्ववादी पार्टी है जिसकी शिनाख्त राजा वादी पार्टी के रूप में भी है।
पिछले दिनों पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र के स्वागत में उमड़े जनसैलाब को राजशाही की वापसी की दृष्टि से देखा गया जबकि यहां तख्ता पलट जैसी घटना का दूर दूर तक अंदेशा नहीं है।
जहां तक लोकतंत्र के मजबूती का सवाल है तो वह है। भले ही संविधान सभा चुनाव से लेकर आम चुनाव तक, किसी में भी एक दल को बहुमत नहीं मिल पाया। राजनीतिक दलों में बिखराव अथवा कई राजनीतिक दलों की मिली जुली सरकार का अर्थ लोकतंत्र का सफाया होना नहीं होता। इसी के साथ कटु सत्य यह भी है कि राजशाही समाप्त होने का कोई परिवर्तनकारी अनुभूति नेपाली जनता को नहीं हो पाया। इसलिए लोकतांत्रिक सरकारों के प्रति उन्हें गुस्सा है और इसीलिए राजशाही के पक्ष में उनका झुकाव बढ़ रहा है।
काठमांडू में राजा समर्थकों के भारी जुटान के बाद नेपाल की कम्युनिस्ट दलों में घबड़ाहट साफ देखी गई। चाहे प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी केंद्र हो या ओली के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ एमाले हो।
घबड़ाहट का ही नतीजा है कि प्रचंड ने जहां ढाई दशक पूर्व दरबार नरसंहार की जांच के लिए आयोग गठन की मांग उछाल दी तो प्रधान मंत्री ओली ने एक बार फिर लिपुलेख,काला पानी व लिंपियाधुरा का मामला उठा दिया।
प्रचंड दरबार नरसंहार की जांच की मांग कर पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र पर कानूनी शिकंजा कसना चाहते हैं।प्रचंड दरबार नरसंहार जिसमें राजा विरेंद्र विक्रम शाह के संपूर्ण परिवार सहित कुछ सैनिकों की हत्या हुई थी,मामले में ज्ञानेंद्र को दोषी मानते हैं।
जबकि काला पानी का मुद्दा उठाकर ओली स्वयं को देश भक्त साबित करना चाहते हैं। कहना न होगा नेपाल की राजनीति इन दिनों हिंदू राष्ट्र बनाम राष्ट्र भक्त के बीच उलझी हुई है।
लिंपियाधुरा,लिपुलेख और काला पानी नेपाल से लगी उत्तराखंड की सीमा पर भारतीय भू भाग का हिस्सा है। पिछले वर्ष भारत ने इस हिस्से का इस्तेमाल मानसरोवर मार्ग को सुगम बनाने के लिए किया है।
भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह इस मार्ग का उद्घाटन भी कर चुके हैं। इसे लेकर तब भी प्रधानमंत्री रहे ओली ने काफी बवाल काटा था। उन्होंने इस भू क्षेत्र पर अपना दावा ठोंकने के लिए नेपाल का नया मानचित्र तक जारी कर दिया जिसमें इस भू-क्षेत्र को शामिल किया गया है। इसी मुद्दे पर ओली भारत पर तोहमत मढ़कर खुद को राष्ट्र भक्ति का लबादा ओढ़ने की कोशिश करते रहते हैं।
हाल ही नेपाल की प्रतिनिधि सभा में नेपाल के परिवर्तित मानचित्र के मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए ओली ने कहा कि 1962 ई. तक जो क्षेत्र नेपाल के अधीन था, उसका वर्तमान मानचित्र ही असली है।
2017 से पहले देश का नक्शा वैसा ही था जैसा अब है। उन्होंने कहा नेपाल अपने हिस्से के भू-क्षेत्र पर दावा कभी नहीं छोड़ेगा। नेपाल का दावा है कि काला पानी,लिपुलेख और लिंपियाधुरा सुदूर पश्चिम उसके धारचुला जिले का हिस्सा है।
नेपाल,ब्रिटिश और भारत के बीच 1815 में हुई सुगौली संधि के अनुसार काला पानी क्षेत्र से होकर बहने वाली महाकाली नदी को दोनों देशों के बीच की सीमा माना गया था। यह क्षेत्र चीन(तिब्बत) से लगी भौगोलिक रूप से भारत और नेपाल दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल तैनात हैं।
आम तौर पर भारत नेपाल के बीच सौहार्द पूर्ण संबंध रहे हैं। यहां तक की दोनों देशों के बीच रोटी बेटी का रिश्ता है। लेकिन इधर जबसे चीन का नेपाल में प्रभाव बढ़ा है तबसे दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ा है।
जब जब किन्हीं कारणों से भारत चीन के बीच तनाव हुआ है तब तब चीन इसका फायदा उठाने की कोशिश से बाज नहीं आया। अभी नेपाल में राजा वादी और हिंदू संगठनों द्वारा यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ की तस्वीर के साथ जो प्रदर्शन हुआ है,उसे भारत का शह माना गया। और फौरन ही एक एनजीओ के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम में एमाले नेताओं ने चीन को माई बाप बताते हुए उसके पक्ष में खूब कसीदे पढ़े।
चीन की मंशा सदैव से रही है कि नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार रहे। वेशक ओली उसके ज्यादा करीब हैं लेकिन प्रचंड भी उससे बहुत दूर नहीं हैं। नेपाल राजनीति के जानकारों का कहना है कि हिंदुत्व वादी संगठनों की सक्रीयता देख चीन की कोशिश होगी कि वह प्रचंड और ओली को एक साथ ले आए ताकि नेपाल में उसका दबदबा और मजबूत हो।