उत्कर्ष सिन्हा
कोरोना संकट के बीच मदद की सियासत जोर पकड़ चुकी है । कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के फेंके गए पासे को समझने में योगी सरकार एक बार फिर चूक गई । हालात ये हैं कि 1000 बसों का इस्तेमाल होने की बजाए ये बसें सियासत में टेबल टेनिस की गेंद में तब्दील हो गई है ।
कांग्रेस एक के बाद एक लेटर लिख रही है और सरकार उसे नए नए तरीके से उलझा रही है। पहले फिटनेस और ड्राईवरों की डीटेल मांगी गई फिर बसों को लखनऊ पहुंचाने को कहा गया और फिर 19 बसों के नंबर पर सवाल उठे।
सरकार की तरफ से ये बताया गया कि ये नंबर बसों के हैं ही नहीं बल्कि दूसरी गाड़ियों के हैं ।
सियासत का मैदान बन चुके सोशल मीडिया पर इसके बाद एक नई जंग शुरू हो गई। दोनों तरफ समर्थकों ने मोर्चा सम्हाल लिया। स्क्रीन शाट्स वायरल होने लगे । इन सबके बीच यूपी में सत्ता बनाम विपक्ष की लड़ाई में कांग्रेस एक बार फिर दूसरी पार्टियों से आगे निकल गई ।
सरकार इस मामले में कितने दबाव में है, इसका अंदाज बस इस बात से लगाया जा सकता है कि मंगलवार को एक के बाद एक सूबे के तीन बड़े कैबिनेट मंत्रियों ने प्रेस कांफ्रेंस कर प्रियंका को निशाने पर ले लिया।
ये पहली बार नहीं है जब प्रियंका की किसी पहल के बाद सरकार दबाव में आई है।
2019 की जुलाई में सोनभद्र में हुए दलितों के नरसंहार के बाद प्रियंका अचानक सोनभद्र के लिए निकल पड़ी थी । तब यूपी की सियासत में प्रियंका की सक्रिय एंट्री नई नई थी। उनके इस कदम के बाद सरकार सक्रिय हुई और प्रियंका को मिर्जापुर में ही रोक दिया गया ।
वहाँ से लौटने की बजाए प्रियंका गेस्ट हाउस में ही धरने पर बैठ गई और तब तक नहीं उठी जब तक पीड़ित ग्रामीणों को उनसे मिलने नहीं दिया गया। सरकार के लिए ये एक बहुत ही असहज स्थिति थी।
वो पहला मौका था जब सूबे में मरणासन्न पड़ी कांग्रेस अचानक सक्रिय हुई दिखाई देने लगी। इस मामले ने तूल पकड़ लिया और सरकार को फौरन कार्यवाही करनी पड़ी।
इसके बाद एक बार फिर प्रियंका ने सरकार को घेरा, जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए आंदोलन में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं गिरफ़्तारी होने लागी। बुजुर्ग मानवाधिकार कार्यकर्ता दारापुरी से मिलने के लिए प्रियंका फिर सड़क पर निकल गई। पुलिस ने जब उनके गाड़ियों को रोका तो वे स्कूटर पर बैठ कर दारापुरी के घर गई। जिस तरह सरकार ने उन्हे रोकने की उसने प्रियंका की स्कूटर सवारी को सुर्खियों में ला दिया।
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बंद कमरों की पालिटिक्स के लिए बदनाम हो चुकी कांग्रेस को प्रियंका ने सड़क पर उतार दिया है । इस बीच उनकी सोशल मीडिया टीम भी सक्रिय हुई है जिसका नतीजा सोशल मीडिया पर छिड़े युद्ध में दिखाई देने लगा है।
समाजवादी पार्टी के नेता योगेश यादव इसे दूसरे तरह से देखते हैं । योगेश का मानना है कि भाजपा और योगी सरकार जानबूझ कर प्रियंका को तवज्जो देती है। वो जानती है कि प्रदेश की राजनीति में उसका जमीनी मुकाबला समाजवादी पार्टी से होना है लेकिन प्रियंका को तवज्जो देने से वो एक भ्रम पैदा करने की कोशिश करती है कि लड़ाई भाजपा बनाम कांग्रेस हो सके ।
एक बात यह भी सही है कि अखिलेश यादव के किसी ऐसे बयान पर सरकार उस तरह कि प्रतिक्रिया नहीं देती दिखाई देती है जैसी प्रियंका पर, लेकिन ये भी सही है कि बीते तीन सालों में सिर्फ एक बार सपा सुप्रीमो उन्नाव के माखी कांड के बाद पीडिता के घर जाने के रास्ते में रोके गए थे ।
बीते एक साल में प्रियंका ने तीन बार योगी सरकार से सीधा मोर्चा लिया और हर बार सरकार के बड़े मंत्री उनके खिलाफ मोर्चे पर उतारे गए।
बसों की सियासत से पैदा हुई ताजा लड़ाई फिलहाल उफान पर है और इस बीच मजदूर प्रदेश की सीमाओं पर फंसे पड़े हैं ।
दोनों पार्टियां कह रही हैं कि संवेदना के मामले में हम राजनीति नहीं करना चाहते , लेकिन राजनीतिक पार्टियों की कोई पहल और उत्तर गैर राजनीतिक हो, क्या आपको ऐसा संभव दिखता है ?
कोरोना के खिलाफ लड़ाई और मजदूरों की बदहाली पर होने वाली बहस फिलहाल हाशिये पर है और राजनीतिक युद्ध अपने चरम पर।