के पी सिंह
स्वच्छ और संवेदनशील प्रशासन के मोर्चे पर योगी सरकार सिर्फ मीडिया में प्रचार के दम पर जिंदा रहना चाहती है। इसलिए वह इसके लिए उपलब्ध संस्थाओं और संसाधनों के उपयोग की बेहतर रणनीति नहीं बना पा रही है। योगी सरकार को सोचना होगा कि छलावे से बहुत दिनों तक गुजर नहीं हो सकती। आम आदमी के लिए शोषण और अपमान का पर्याय बनी हुई वर्ततान व्यवस्था को बदलने की बजाय शहरों के नाम बदलने जैसे तुष्टीकरणपरक भावनात्मक हथकंडों से जनता को बहुत दिनों तक भ्रमित नहीं रखा जा सकता इसलिए उसे ठोस काम पर ध्यान देने में दिल लगाना होगा।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गत गुरूवार को हेल्पलाइन 1076 का श्रीगणेश किया जिस पर मुफ्त कॉल करके शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी। यह सेवा 24 घंटे उपलब्ध रहेगी। इस पर की जाने वाली शिकायतों के निस्तारण को लेकर उन्होंने अधिकारियों को आगाह किया है कि अगर इसमें कपटाचार किया गया तो उनकी सीआर खराब कर दी जायेगी। निस्तारण को लेकर उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि अधिकारी की रिपोर्ट इसे मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। शिकायतकर्ता को लगातार फॅालो किया जायेगा।
जब तक शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होगा तब तक निस्तारण को पूर्ण नहीं माना जायेगा। देखने सुनने में यह घोषणाएं बहुत सुहावनी लगती हैं लेकिन योगी सरकार के ट्रैक रिकार्ड के मददेनजर कोई अनुमान किया जाये तो यह अंदेशा घर करने लगेगा कि शायद यह घोषणाऐं भी ढ़कोसलेबाजी की भेंट न चढ़ जायें। कारण यह है कि इस तरह की पहल पहली बार नहीं हो रही। जिलाधिकारी के रूप में राजशेखर और आईजी के रूप में आशुतोष पाण्डेय द्वारा किये गये प्रयोग इसके उदाहरण हैं कि अगर अधिकारियों ने ही जिनका दायरा सीमित होता है।
इस दिशा में कोई कटिबद्ध प्रयास किया तो काफी हद तक स्थितियां सुधरती देखी गई हैं। सरकार के स्तर पर डायल-100 का प्रयोग पुलिस के मामले में बेहद कामयाब साबित हुआ जिसे अखिलेश सरकार ने लागू किया था। दूसरी ओर अगर सरकार आम लोगों के हितों और अधिकारों की चिंता के मामले में गंभीर नहीं होती है तो जन शिकायत निस्तारण की व्यवस्थायें कोई छाप नहीं छोड़ पाती। 1076 के पहले से सम्पूर्ण समाधान दिवस, थाना दिवस और मुख्यमंत्री जन शिकायत पोर्टल जैसे उपक्रम काम कर रहे हैं लेकिन क्या जनता ने इनके कारण कोई राहत महसूस की है।
योगी सरकार पांच वर्ष के अपने कार्यकाल में दो वर्ष से अधिक का अपना समय पूरा कर चुकी है। क्या उसे लोकतंत्र का सही अर्थ समझते हुए इन उपक्रमों को सार्थक रूप में चरितार्थ करने की कोई चेष्टा नहीं करनी चाहिए थी। हाल ही में प्रचारित किया गया कि मौजूदा प्रदेश सरकार ने प्रशासन में भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता को दूर करने के लिए 600 अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लिया है जो अभी तक की किसी भी सरकार की तुलना में एक रिकार्ड है।
लेकिन जनमानस में यह कार्रवाइयां अदृश्य महसूस की जा रही हैं। कार्रवाई न केवल होनी चाहिए बल्कि दिखना चाहिए कि कार्रवाई हुई है तभी उसका इम्पेक्ट होता है। अगर नजीर बनाने की रणनीति के तहत किसी एक जगह भी कार्रवाई होती है तो अधिकारी और कर्मचारी महीनों तक गड़बड़ी नहीं कर पाते। चालबाजी के लिए आमतौर पर विभागों में चलने वाली अनुशासनात्मक कार्रवाइयां गिनाकर अपनी पीठ तो थपथपाई जा सकती है लेकिन इससे कोई नतीजा हासिल नहीं हो सकता।
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लोगों की शिकायतों के सही तरीके से समाधान न करने के आधार पर योगी सरकार ने अभी तक किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। उसकी कार्रवाई का आधार किन बातों से तय होता है यह मेरठ में एसएसपी नितिन तिवारी के दंडात्मक स्थानान्तरण जैसे उदाहरणों से स्पष्ट है। नितिन तिवारी कई जिलों में सफल पुलिस कप्तान की भूमिका निभा चुके हैं जिनकी कार्यदक्षता में संदेह नहीं किया जा सकता लेकिन मेरठ में वे एक वर्ग विशेष के हौसले पस्त करने में मुख्यमंत्री की निगाह में नाकामयाब रहे जिससे उनके ऊपर गाज गिरा दी गई।
अधिकारी जान चुके हैं कि यह सरकार सामान्य नार्मस के तहत काम नहीं करती। इसका विशिष्ट एजेंडा है जिसके निर्वाह में चूक हुई तो अधिकारी गया काम से। इसलिए प्रशासन की सार्वभौम प्राथमिकताओं को यूपी में अधिकारियों ने दरकिनार कर दिया है। वे वही काम कर रहे हैं जिनकी कसौटी पर खरे उतरकर ही वे मुख्यमंत्री का संरक्षण प्राप्त करते रहने की आशा कर सकते हैं।
विशिष्ट एजेंडे में अधिकारियो की काबलियत को जाति के चश्में से आंकना भी शामिल है। फील्ड की बड़ी तैनातियों में मौजूदा सरकार के एकतरफा रूख से बहुत सी चीजे साफ हो जाती हैं।
दक्षता और सक्षमता की आवश्यकता
इंटैलीजेंस, विजीलैंस, ईओडब्ल्यू, एंटीकरप्शन ऐसे विभाग आरक्षण से आये अधिकारियों के लिए आरक्षित कर दिये गये हैं जबकि इन विभागों में फील्ड की पोस्टिंग से ज्यादा दक्षता और सक्षमता की आवश्यकता है। अगर इन विभागों के लिए इच्छुक अधिकारियों के आवेदन मांगकर पोस्टिंग की जाये तो स्थिति बदलने में काफी मदद मिल सकती है। अभी इन विभागों में तैनाती का परिचय देकर अधिकारी अपने को अपमानित महसूस करते हैं जबकि होना यह चाहिए कि लूप लाइन कहे जाने वाले इन विभागों में तैनात अधिकारी गर्व से अपना परिचय दें और यह तभी होगा जब स्वैच्छिक अधिकारी इनमें नियुक्त होगे।
भगवान राम सीएम के आदर्श
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भगवान राम को अपना आदर्श मानते हैं। भगवान राम रात में भेष बदलकर यह जानने के लिए निकलते थे कि राज्यकर्मी कैसा काम कर रहे है और लोग उनके राजकाज से कितना संतुष्ट हैं। आज मुख्यमंत्री को खुद रात में निकलने की जरूरत नहीं है। लूप लाइन वाले विभागों की अहमियत अगर वे पहचान ले और इन्हें यातना गृह के रूप में देखने की बजाय सबसे कारगर शाखाओं के रूप में इन्हें स्थापित करने के लिए दृढ़ हो जाये तो स्वच्छ प्रशासन की दिशा में सचमुच एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं।
रिश्वत का रेट पिछली सरकार से कहीं ज्यादा
आज रिश्वत का रेट पिछली सरकार से कहीं ज्यादा हो गया है और डीएम और एसपी जैसे स्तरों पर भी जिस तरह बेधड़क लेनदेन और बोलियां लगाकर पोस्टिंग देने का काम चल रहा है अगर उसकी जानकारी मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच रही है तो यह उनकी विफलता की पराकाष्ठा है। वे इंटेलीजेंस से नियमित तौर पर भ्रष्ट अधिकारियों की रिपोर्ट मंगाकर उनके खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दे तो इसका असर निश्चित रूप से बहुत प्रभावी होगा।
1076 उनका एक और झुनझुना साबित न हो
एंटीकरप्शन, ईओडब्ल्यू और विजीलैंस का सही तरीके से इस्तेमाल प्रशासन को एकदम साफ सुथरा कर सकता है लेकिन इन विभागों को उदासीनता का शिकार बनाकर योगी आदित्यनाथ भी किसी सदिच्छा का प्रमाण नहीं दे रहे। बहरहाल 1076 उनका एक और झुनझुना साबित न हो यह देखना होगा और अगर अपनी घोषणा के अनुरूप वे इस सेवा का संचालन करने में सफल हुए तो उनसे लोगों की अभी तक की शिकायतें काफी हद तक दूर हो जायेंगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )
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