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झटका : योगी के फैसले को मोदी सरकार ने बताया ‘असंवैधानिक’

न्यूज डेस्क

यूपी की योगी सरकार को बडा झटका लगा है । खास बात ये है ये झटका और किसी ने नही बल्कि केंद्र की मोदी सरकार ने दिया है।

पिछले दिनों योगी सरकार ने प्रदेश में 17 अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल कर एक बड़ा वोट बैंक साधने की कोशिश की थी। फिलहाल योगी के इस फैसले पर केन्द्र सरकार ने रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है।

केंद्र सरकार ने मंगलवार को योगी सरकार को निर्देश दिया कि वह 17 अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) का प्रमाणपत्र जारी करना बंद कर दे।

राज्यसभा में बोलते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि राज्य सरकार का कदम ‘उचित नहीं’ है और ‘असंवैधानिक’ है

गहलोत ने कहा, ‘ओबीसी जातियों को ऐसी सूची में शामिल करना संसद के अधिकार में आता है। उन्होंने इसके लिए राज्य सरकार को प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए कहा।’ 

गौरतलब है कि योगी सरकार द्वारा 24 जून को जारी निर्देश के अनुसार, जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात कही गई थी, उनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी व मछुआ शामिल हैं।

मालूम हो कि साल 2017 के इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे जांच और नियमों के अनुसार दस्तावेजों पर आधारित 17 ओबीसी जातियों को एससी प्रमाणपत्र जारी करें।

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह फैसला लेकर एक तीर से कई निशाना साधा था। एक ओर बसपा व सपा के पिछड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की थी तो वहीं दूसरी ओर योगी मंत्रीमंडल से बर्खास्त किये गये मंत्री ओमप्रकाश राजभर को भी हासिए पर लाने की कोशिश की थी। फिलहाल केन्द्र सरकार द्वारा इस फैसले पर रोक लगाने से सपा-बसपा ने राहत की सांस ली होगी।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस फैसले को प्रदेश में एक बड़े वोट बैंक को साधने के मास्टर स्ट्राक के तौर पर देखा जा रहा था। इससे जहां मायावती का अनुसूचित जाति वर्ग के वोटों पर से एक छत्र प्रभाव कम होता वहीं भाजपा से इन जातियों के सहारे एक बड़ा वोट बैंक जुड़ता जिसका आने वाले चुनावों में बीजेपी को लाभ मिलता।

मायावती ने जताया था विरोध

योगी सरकार के इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बसपा प्रमुख मायावती ने इसे असंवैधानिक करार दिया था। उन्होंने कहा था, ‘चूंकि राज्य सरकार एससी सूची में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए इन जातियों को न तो ओबीसी का लाभ मिल पाएगा और न ही एससी का।’

पहले भी हो चुकी है कवायद

यह पहला मौका नहीं है कि जब राज्य में पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कवायद की गई है। योगी सरकार से पहले की सरकारों ने भी ऐसा करने की कोशिश की थी लेकिन वो सफल नहीं हो पायी। इससे पहले जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी इन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी कराया था, लेकिन कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।

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कुछ महीने पहले कोर्ट ने लगायी गयी रोक हटा दी थी जिसके बाद ये सरकारी आदेश जारी हुआ है। इस पर अभी अंतिम फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट से आना बाकी है।

मुलायम ने भी की थी कोशिश

2004 में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रीत्व काल में भी एक प्रस्ताव पेश कर तत्कालीन सपा सरकार ने पिछड़े वर्ग की 17 जातियों को अनुसूचित वर्ग में शामिल करने के लिए उप्र लोक सेवा अधिनियम, 1994 में संशोधन किया था, लेकिन किसी भी जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है।

उस समय केंद्र सरकार की सहमति नहीं मिलने के कारण मुलायम सरकार का फैसला निरर्थक साबित हुआ था। बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को असंवैधानिक और व्यर्थ घोषित कर फैसले को रद्द कर दिया।

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