केपी सिंह
प्रदेश पुलिस सेवा के सात अफसरों की भ्रष्टाचार और नालायकी के कारण हुई बर्खास्ती के मामले में एक ऐसा खुलासा सामने आ गया है जिससे इस कदम के कारण लोगों में वाहवाही बटोरने की उम्मीद पाले उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को किरकिरी झेलनी पड़ रही है।
योगी सरकार की ढोल में पोल
योगी सरकार ने 50 वर्ष से अधिक उम्र के सभी विभागों के अधिकारियों की स्क्रीनिंग के लिए कमेटी का गठन किया था तांकि दागी और निकम्मे अफसरों से छुटकारा पाया जा सके जो कि शासन की चुस्त और स्वच्छ छवि में बाधक साबित हो रहे हैं। इस सिलसिले में पुलिस में डिप्टी एसपी स्तर पर ऐसे सात अफसर सामने आये जिनको तत्काल प्रभाव से पदच्युत करना आवश्यक माना गया।
इनमें आगरा स्थित पीएसी की 15वीं वाहिनी के सहायक सेनानायक अरुण कुमार, अयोध्या में तैनात विनोद कुमार राना, आगरा में तैनात नरेंद्र सिंह राना, झांसी स्थित 33वीं वाहिनी पीएसी के सहायक सेना नायक रतन कुमार यादव, 37वीं वाहिनी के सहायक सेना नायक तेजवीर सिंह यादव, मुरादाबाद में इंटेलीजेंस के जोनल अधिकारी संतोष कुमार, गोंडा स्थित 30वीं वाहिनी पीएसी के सहायक सेनानायक तनवीर अहमद खां शामिल हैं।
मजे की बात यह है कि इनमें पीएसी झांसी के सहायक सेना नायक रतन कुमार यादव को इसी स्वाधीनता दिवस पर डीजीपी के सिल्वर मेडल से सम्मानित किया जा चुका है। अंधेरगर्दी की इंतहा यह है कि डीजीपी कार्यालय को पहले से रतन कुमार यादव के खराब रिकार्ड की मालूमात थी। फिर भी उन्हें सम्मानित करा दिया गया। पता चला है कि रतन यादव जब सम्मानित कराये जा रहे थे तब उनके सर्विस खाते में 2 मिसकंडक्ट, 3 लघुदंड और 1 अर्थदंड दर्ज था। सम्मान के बाद वे और उत्साहित हो गये।
नतीजतन इसी 22 अक्टूबर को उन्हें एक और बेडइंट्री का प्रसाद देना पड़ा। अब इन्ही रतन कुमार यादव के लिए डीजीपी कार्यालय ने बर्खास्तगी की संस्तुति कर पाप प्रक्षालन की कोशिश की है।
यह तो था ट्रेलर भर, वैसे दृष्टांत कम नहीं
यह तो एक बानगी है। योगी सरकार में प्रशासन में छाये भ्रष्ट तत्वों की निगरानी के नाम पर जिस तरह खिलवाड़ हो रहा है उससे सीएम की पकड़ पर संदेह की उंगलियां उठ रहीं हैं। आईएएस अधिकारी अभय सिंह के यहां बुलंदशहर के डीएम रहते जब सीबीआई ने छापा मारा उस समय योगी सरकार की आलोचना हुई थी कि आखिर यह जानते हुए भी कि उनके खिलाफ अवैध खनन कराने के मामले में संगीन जांच चल रही है उन्हें डीएम बनाने की मेहरबानी क्यों की गई। जिसका उसके पास कोई जबाव नही था।
यही माजरा गोरखपुर में इस सरकार द्वारा डीएम बनाये गये राजीव रौतेला और कानपुर देहात में राकेश सिंह को लेकर था। हाईकोर्ट दोनों के खिलाफ अखिलेश सरकार के समय अवैध खनन में संलिप्तता को लेकर इन पर प्रतिकूल टिप्पणी कर चुका था फिर भी इन नगीनों को अपनाने में कोई संकोच नही किया गया था। अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग में जातिवादी मानकों को वरीयता देने का आरोप उत्तर प्रदेश मे आम है और ऐसे दृष्टांत इसको बल देते हैं।
हत्यारोपी सीओ को क्यों दी थी प्राइज पोस्टिंग
जिस दिन 7 दागी पीपीएस अफसर बर्खास्त किये जा रहे थे उसी दिन उरई में एक अदालत 16 वर्ष पहले थाने के अंदर तीन लोगों की सरकारी असलहों से हत्या के मामले में एक सीओ को दोषी ठहरा रही थी। इन सामूहिक हत्याओं से कुर्मी समाज की भावनाएं जुड़ी हुईं थीं जो कि भाजपा के मूल वोट बैंक में शुमार हैं। लेकिन योगी सरकार ने इसकी परवाह न करते हुए उक्त सीओ को कानपुर महानगर में पोस्टिंग दी थी जो बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। जबकि रूलिंग यह है कि मानवाधिकार में आरोपित पुलिस अधिकारियों और कर्मियों को लूप लाइन में रखा जाना चाहिए।
ऐसा भी नही कि सीओ की असाधारण कार्य पद्धति के कारण ऐसा किया गया हो। सीओ मूल रूप से मृतक आश्रित के कोटे से बतौर दरोगा पुलिस सेवा में शामिल हुआ था। उसे सामूहिक हत्याकांड में आरोपित होने के बाद भी लगातार प्रमोशन मिले जिसके चलते बहुत कम सर्विस में वह सीओ बन गया जबकि मृतक आश्रित कोटे से बने दरोगा को चार्ज तक देने से परहेज किया जाना चाहिए।
सभी जानते हैं कि पिछली सरकार में पुलिस में प्रमोशन के नाम पर काफी गंदगी की गई थी। ज्यादातर आउट आफ टर्न प्रमोशन विभाग के तत्कालीन अफसरों के काकस ने बड़ी रकम के बदले बेचें थे।
इसके कारण अच्छे रिकार्ड वाले नियमित पुलिस अफसरों की तरक्की बाधित हुई और वे हाईकोर्ट में अपने अधिकार के लिए मुकदमा लड़ रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि मौजूदा सरकार पुलिस सिस्टम को गड़बड़ा देने वाली इन गलतियों को सुधारती लेकिन वह ऐसा नही कर सकी। क्योंकि प्रमोशन की खरीद-फरोख्त करने वाले ज्यादातर अधिकारी जाति विशेष के हैं। इस सरकार ने आउट आफ टर्न प्रमोशन वाले अधिकारियों को पुलिस में सबसे ज्यादा मलाईदार पद सौंपकर गलत परंपरा को सीचा है।
आईपीएस अधिकारियों पर भी कार्रवाई की हिम्मत करेगी सरकार
खबरें छपी थी कि स्क्रीनिंग कमेटी ने कुछ आईपीएस अधिकारियों को भी बर्खास्तगी के लिए चिन्हित किया है लेकिन उन पर हाथ डालने की हिम्मत राज्य सरकार को नही हो रही है। आईएएस अधिकारियों के मामले में तो पहले से विदित है कि उन पर कार्रवाई का नाम आने पर सरकार कितनी सहम और सकुच जाती है। सरकार को सकीर्णताओं से उबरकर निरपेक्ष ढंग से प्रशासन में स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए तभी उसकी कार्रवाइयां सार्थक हो पायेगीं।