नेपाल सीमा से यशोदा श्रीवास्तव
यूं तो विधानसभा के चुनाव भारत के पांच प्रदेशों में हो रहा है लेकिन सभी की निगाह यूपी के विधानसभा चुनाव पर टिकी हुई है और इसके पीछे सबके अपने-अपने निहितार्थ है।
दिलचस्प यह है कि नेपाल के हिंदूवादी संगठनों की निगाह यूपी के विधानसभा चुनाव पर खासतौर पर है और वे हरहाल यूपी में योगी की वापसी चाहते हैं जिसके खास कारण भी है।
बता दें कि विश्व के फलक पर नेपाल की पहचान हिंदू राष्ट्र की थी। लोकतंत्र बहाली के बाद नेपाल में उसकी यह खास शिनाख्त मिटा दी गई है और अब यह संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की श्रेणी में शामिल हो गया। योगी आदित्यनाथ ने नेपाल के तत्तकालीन सरकार के इस निर्णय को हिमालयी भूल कहते हुए इसे नेपाल के विभिन्न समुदाय के करीब 95 प्रतिशत हिंदुओं का अपमान कहा था।
योगी तब गोरखपुर से केवल सांसद भर थे। बतौर सांसद नेपाल पर योगी के इस कथ्य का असर यह था कि 2017 के आम चुनाव में नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा को यह कहने को मजबूर होना पड़ा था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे नेपाल के हिंदू राष्ट्र के स्वरूप को बहाल करेंगे। देउबा सरकार सत्ता में वापसी नहीं कर पाई इसलिए यह सवाल जहां का तहां रह गया।
2017 के आम चुनाव के पहले तक नेपाली कांग्रेस और प्रचंड गुट के माओवादी केंद्र की मिली-जुली सरकार थी। चुनाव की घोषणा तक चर्चा तेज थी कि नेपाली कांग्रेस और प्रचंड गुट की कम्युनिस्ट पार्टी मिलकर चुनाव लड़ेंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अप्रत्याशित ढंग से प्रचंड ने ओली के नेतृत्व वाली एमाले कम्युनिस्ट पार्टी से हाथ मिला लिया और दोनों मिलकर चुनाव लड़े। ओली की एमाले और प्रचंड के माओवादी केंद्र की मिली-जुली सरकार सत्ता रूढ़ हुई।
दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों की मिली-जुली सरकार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और दूसरे आम चुनाव के करीब डेढ़ साल पहले ही प्रचंड और ओली अलग-अलग हो गए। इस वक्त फिर नेपाली कांग्रेस और प्रचंड साथ साथ हैं। दूसरे आम चुनाव में अभी साल भर का वक्त है लेकिन नेपाली कांग्रेस और प्रचंड साथ साथ रह पाएंगे,इसकी गारंटी नहीं है।
खैर नेपाल में लोकतंत्र की बहाली के बाद नेपाल में न तो लोकतंत्र मजबूत हो सका और न ही आंदोलन और धरना प्रदर्शन से मुक्त हो सका। नेपाल के मौजूदा लोकतंत्र वादी जनता को किसी भी तरह की परिवर्तन की अनुभूति कराने में विफल रहे।
हां इस बीच यह जरूर रहा कि कम्युनिस्ट पार्टियां जिसका प्रभाव पहाड़ तथा पहाड़ी लोगों तक था,अब भारत सीमा से सटे नेपाली भूभाग तक फ़ैल गया है। भारत की चिंता यह है कि ओली की कम्युनिस्ट हो या प्रचंड की सभी का भारत सीमा तक तेजी से फैलाव हो रहा है और इसमें वे तमाम हिंदू भी शामिल हो रहे हैं जिन्हें भारत परस्त की दृष्टि से देखा जाता रहा।
नेपाल में हिंदुत्व की लड़ाई नेपाल जनता पार्टी जिसका गठन भारतीय जनता पार्टी की तर्ज पर हुआ है, नेपाल हिंदू युवा वाहिनी जिसका गठन योगी की हिंदू युवा वाहिनी की तर्ज पर हुआ और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी जिसे राजावादी पार्टी माना जाता है”लड़ रहे हैं।
नेपाल सीमा पर यूपी के सात जिले महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, बहराइच,खीरी लखीमपुर,गोंडाऔर श्रावस्ती स्थित है। इन जिलों के करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा तथा पांच लोकसभा क्षेत्र के चुनाव को दोहरी नागरिकता धारी नेपाल के लाखों मतदाता प्रभावित करते हैं।
यूपी के इन जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र तक नेपाल के कम्युनिस्ट पार्टियों का विस्तार भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए तो कत्तई मुनासिब नहीं है, नेपाल के मैदानी इलाकों के लिए भी इनका विस्तार ठीक नहीं है।
नेपाल के हिंदू वादी संगठनों की दर असल यही चिंता है और इसीलिए वे यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार चाहते हैं। कहना न होगा नेपाल सीमा को स्पर्श कर रहे यूपी के सातों जिलों के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में नेपाल के हिंदू वादी संगठन खुलकर सक्रिय हो गया है। नेपाल जनता पार्टी के युवा नेता पुनीत पाठक की यह बात काबिले गौर है कि योगी आदित्यनाथ ही वापस दिला सकते हैं नेपाल को हिंदू राष्ट्र का गौरव।