केपी सिंह
प्रियंका गांधी वाड्रा का उत्तर प्रदेश में एक कार्यक्रम फिर मीडिया की सुर्खियों में छा गया है। उन्हें यह सुनहरा मौका किसी और ने नही योगी सरकार की पुलिस ने ही उपलब्ध कराया।
योगी सरकार उन पर क्यों इतनी मेहरबान है यह समझ में नही आता। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में वैंटीलेटर पर पर है। जिसमें नये प्राण फूंकने के लिए प्रियंका दिल्ली छोड़कर कई महीनों से लखनऊ में हाथ-पैर मारने में लगीं हैं।
उन्होंने तो लखनऊ में ही आशियाना बनाने की घोषणा भी कर डाली है। उनकी सरगर्मी से प्रदेश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल को कुछ संबल मिला है लेकिन वह वास्तविक रूप से सत्तारूढ़ दल को चुनौती देने में सक्षम हो सकें यह तो तभी होगा जब प्रियंका बहुत बड़ी करिश्मेबाज हों। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में फिर से अपने पैरों पर खड़ा करना एक असंभव लक्ष्य को साधने की जुर्रत की तरह है।
फिर भी योगी सरकार उन्हें जितना नोटिस में ले रही है वह कांग्रेस की औकात से परे है। अपुन समझते हैं कि इससे सरकार या सत्ता दल को कोई फायदा होने वाला नही है। अलबत्ता कांग्रेस के लिए राज्य सरकार की कार्रवाइयां उसे अयाचित मदद पहुंचाने की तरह है।
इसी 28 दिसम्बर को कांग्रेस ने अपना 135वां स्थापना दिवस समरोह मनाया। जिसके सिलसिले में लखनऊ में प्रियंका ने अपना एक सामान्य कार्यक्रम निर्धारित किया था चूंकि उनके पास पार्टी में उत्तर प्रदेश प्रभारी का दायित्व है।
तय था कि इस दिन प्रियंका पहले माल एवेन्यू स्थित कांग्रेस कार्यालय में वरिष्ठ नेताओं से मंत्रणा करेगीं। इसके बाद कार्यालय के बाहर आकर मैदान में प्रदेश भर से जुटे कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेगीं लेकिन नाटकीय ढंग से उन्होंने अपने कार्यक्रम में एक ट्विस्ट दे दिया। जिसके तहत वरिष्ठ नेताओं के साथ प्रियंका गांधी अचानक कुछ बड़े नेताओं के साथ अपनी गाड़ी में बैठकर कहीं चल दीं। कार्यकर्ताओं से कहा गया कि 10 मिनट बाद वे वापस लौटेगीं। दरअसल वे सेवानिवृत्त आईपीएस और दलितों के मुददे पर क्रांतिकारी कार्रवाइयों के लिए विख्यात हो चुके एसआर दारापुरी के घर की ओर कूंच कर रहीं थीं जिन्हें नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया था। जैसे ही प्रियंका के उनके निवास पर जाने की खबर सत्ता के गलियारों में पहुंची तो जैसे इंद्रासन डोल गया हो ऐसी स्थिति पैदा हो गई। पुलिस एकदम हरकत में आ गई। गोमती नगर में फन माल के सामने प्रियंका की गाड़ी को रोक लिया गया।
प्रियंका ने पूंछा उन्हें क्यों रोका जा रहा है, वे कोई जुलूस तो निकाल नही रहीं हैं जो निषेधाज्ञा का उल्लंघन हो। वे किसी से मिलने जाना चाहती हैं तो इससे उन्हें कैसे रोका जा सकता है। प्रश्न तो बाजिब था इसलिए जबाव के नाम पर पुलिस अधिकारियों के मुंह सिल गये। लेकिन फिर भी पुलिस उन्हें आगे न जाने देने पर आमादा रही तो प्रियंका कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव धीरज गुर्जर की स्कूटी पर बैठकर चल पड़ीं। जगह-जगह किये गये रोकने के प्रयास को नकारते हुए वे पालीटैक्निक चौराहे पर पहुंचीं जहां वे स्कूटी से उतर गईं और आगे पैदल चल पड़ीं। क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि मामला गर्मा गया है जिसका मौका वे नही चूंकना चाह रहीं थीं।
इसी बीच दो महिला सीओ उनसे जबर्दस्ती करने आ गईं। उन्होंने प्रियंका के साथ लगभग हाथापाई की। लेकिन तब तक कांग्रेस समर्थकों की पर्याप्त भीड़ उनके साथ जुट गई थी और वे उत्साह के साथ भीड़ को साथ लिए 6 किलोमीटर पैदल चलकर इंदिरा नगर स्थित दारापुरी के आवास तक पहुंच गईं। इससे एक बड़ा राजनैतिक शो बिना प्रयास के प्रियंका की झोली मे आ गिरा।
बाद में पत्रकारों से चर्चा करते हुए प्रियंका ने अरोप जड़ा कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की और गला तक दबाने का प्रयास किया। हो सकता है कि इसमें अतिश्योक्ति हो लेकिन सवाल यह है कि प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में क्या है जो वे कहीं चलीं जायें तो तूफान आ जायेगा। कुछ महीने पहले सोनभद्र में जब भूमि विवाद में दबंगों ने आदिवासियों के साथ खून की होली खेली थी तब भी उनसे मिलने के लिए निकलीं प्रियंका के साथ ड्रामा किया गया था। उन्हें मिर्जापुर के पास रोकने का प्रयास किया गया। जब वे आगे बढ़ने की जिद पर अड़ी रहीं तो प्रशासन ने उन्हें गिरफ्तार करने की घोषणा कर दी और अधिकारी नजरबंद करने के लिए उन्हें चुनार के किले में ले गये जहां उन्होंने रात भर कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर धरना दिया। जिससे मीडिया में जमकर उन्हें प्रचार मिला। सरकार की इससे बड़ी किरकिरी हुई थी। मिर्जापुर के प्रशासन को उनकी गिरफ्तारी की बात से मुकरना पड़ा था। फिर भी राज्य सरकार ने सबक नही सीखा।
बार-बार प्रियंका गांधी से राज्य सरकार के दमनात्मक व्यवहार की वजह क्या है। या तो यह कि योगी सरकार के प्रशासन की प्रियंका से कोई साठ-गांठ हो गई है जिससे अन्य विपक्षी पार्टियों को पीछे करके कांग्रेस को विपक्ष की कतार में सबसे आगे लाने के लिए उन्हें बार-बार रोका जाता है अथवा सत्ताधारियों की कोई हीन भावना है जो गांधी परिवार को मिलने वाले बड़प्पन को देख कुंठा में तब्दील हो गई है। जिससे प्रिंयका के कोई कार्रवाई करते ही सरकार और सत्तारूढ़ दल को करंट लग जाता है। जो भी हो लोकतंत्र में यह रवैया उचित नही है।
कांग्रेस नागरिकता संसोधन विधेयक का विरोध करके सही कर रही है या गलत यह बहस का विषय हो सकता है लेकिन प्रियंका तोड़फोड़ की किसी कार्रवाई में संलग्न नही हो रहीं थी तो उन्हें विरोध करने देना चाहिए था। सरकार में इतना आत्मविश्वास होना चाहिए कि अगर उसका पक्ष और नीयत सही है तो लोग उसके फेवर में रहेगें और विपक्ष जितना विरोध करेगा उतना ही अपने लिए बदनामी मोल लेगा।
उत्तर प्रदेश में इस समय एक संत मुख्यमंत्री के पद पर विराजमान है जिनसे राजनीतिक कार्य-व्यवहार में अलग माडल प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। क्रोध और अति प्रतिक्रियाशीलता पर सभी मनोविकारों के साथ पूर्ण नियंत्रण संत होने की पहली शर्त है पर योगी ने यह प्रदर्शित किया है कि किसी पीठ का अधिष्ठाता होने से कोई संत नही बोला जाता। संत कोई मुंह बोली पदवी नही है एक स्वभाव है।
महात्मा गांधी का कार्यक्षेत्र अध्यात्म का नही था लेकिन वे सच्चे संत थे। जिसकी वजह से लोगों ने स्वतः स्फूर्त से महात्मा की उपाधि में उनके व्यक्तित्व को खोज लिया था। योगी जी की भाषा में जितना आवेश रहता है उतना तो किसी तानाशाह में नही होता। श्रीमान अजय सिंह विष्ट को सोचना होगा कि संत के नाते उनकी बहुत बड़ी गरिमा है जो सरकार के मुखिया जैसे सांसारिक पद से बहुत ऊंची है। उन्हें इस गरिमा का निर्वाह करना चाहिए। प्रतिपक्ष तो विरोध की कार्रवाइयां ही करेगा सरकार की आरती तो नही उतारने लगेगा। उन्हें अटल जी की तरह ही हंसकर और निर्मल रहकर प्रतिपक्ष के विरोध को झेलना सीखना चाहिए।
महत्वपूर्ण यह भी है कि प्रियंका ने इस दौरान यह भी कहा कि अन्य विरोधी दल सरकार के खिलाफ इसलिए मुखर नही हैं क्योंकि वे डर चुके हैं लेकिन कांग्रेस नहीं डरेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अकेल चुनाव लड़ेगी। उनकी इस गर्वोक्ति में भरोसे का पुट झलका जिसकी प्राप्ति उन्हें योगी प्रशासन के रवैये के ही बूते हो रही है।