“राजा आओ देश बचाओ” नारे के साथ राजशाही की पुनर्वापसी के लिए उमड़ा जनसैलाब,दिन भर मुसीबत में रही ओली सरकार
यशोदा श्रीवास्तव
काठमांडू। पोखरा से काठमांडू वापसी पर त्रिभुवन हवाई अड्डे पर हिंदूवादी संगठन व राजा वादी राजनीतिक दल राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के हजारों कार्यकर्ताओं और नेताओं ने पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र का जोर दार स्वागत किया।
इस दौरान “राजा आओ देश बचाओ” के नारे से आकाश गूंजायमान था। हिंदूवादी संगठन और राप्रपा के हजारों लोगों के हाथ में ज्ञानेंद्र और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बड़े बड़े पोस्टर लहरा रहे थे। काठमांडू की धरती पर योगी का पोस्टर देख ओली सरकार ही नहीं लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्ष सरकार के हिमायती दले हतप्रभ थी।
ओली सरकार में शामिल दलें और सरकार से बाहर के राजनीतिक दलों के अधिकांश नेताओं की दबे जुबान प्रतिक्रिया थी कि नेपाल में हिंदू राष्ट्र के बहाने राजशाही की पुनर्वापसी के पीछे भारत है।
बहरहाल करीब तीन हफ्ते पोखरा प्रवास के बाद पूर्व नरेश के काठमांडू पंहुचने पर जो नजारा देखा गया उससे ओली सरकार सकते में हैं। हवाई अड्डे से लेकर ज्ञानेंद्र के महराजगंज स्थित निर्मल निवास तक सुरक्षा का रेला था। भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस को कई बार लाठियां चलानी पड़ी। चूंकि कार्यक्रम में पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र को उनके पुराने राजदरबार में दाखिल कराने की भी योजना थी लेकिन ज्ञानेंद्र ने सरकार से टकराव का रास्ता छोड़ वक्त का इंतजार बेहतर समझा। देर शाम ज्ञानेंद्र जब अपने आवास में सकुशल दाखिल हो गए तब जाकर सरकार ने चैन की सांस ली।
बता दें कि पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह परिवार सहित रविवार को अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पोखरा से चार्टेड विमान से करीब एक घंटे की देरी से काठमांडू त्रिभुवन अंतरराष्ट्रिय हवाई अड्डे पर पहुंचे। देरी की वजह मौसम की खराबी बताई गई।
पूर्व राजा को विदा करते समय पोखरा हवाई अड्डे के बाहर हजारों की संख्या में उनके समर्थक बाजे गाजे के साथ विदा करने पहुंचे थे।
इस दौरान उन्हें नेपाली रीति-रिवाज के अनुसार दूब का माला पहनाया गया तथा दही भेंट किया गया। नेपाल की राजनीति में दर असल हलचल तब पैदा हुई जब 18 फरवरी को नेपाल गणतंत्र दिवस पर ज्ञानेंद्र ने नेपाल के लोकतांत्रिक सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए एक बार फिर जनता की सेवा की इच्छा जताई थी।
ज्ञानेंद्र के इस बयान पर काठमांडू के राजनीतिक गलियारों में ज्ञानेंद्र के बयानों पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया शुरू हो गई। प्रधानमंत्री ओली ने कहा कि सत्ता पर कब्जा जैसी मानसिकता छोड़ ज्ञानेंद्र को राजनीतिक दल गठन कर चुनाव में आना चाहिए।
ज्ञानेंद्र के बयान के विरोध में अन्य लोकतंत्र वादी राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं आई हैं। इस बीच नेपाल में राजशाही खात्मे के इतने दिन बाद यदि फिर राजशाही का समर्थन करने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ तो कहीं न कहीं चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों की विफलता पर चर्चा शुरू हो गई है।
पूर्व नरेश की बढ़ती स्वीकार्यता को लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा मानने वाले लोग भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को दो दशक हो चुके हैं, लेकिन क्या यह जनता के मूल अधिकारों की रक्षा करने में सफल हो पाई है? क्या यह वह वादा, जिसे जनता ने अपने खून से सींचा था, असलियत में बदल पाया है? यह सवाल आज हर जुबान पर हैं, और इसका उत्तर सरकार के पास नहीं है।
लोग मान रहे हैं कि सरकार यदि केवल कुर्सी के अदला बदली का खेल खेलती रही तो जनता का मूड बदलते देर नहीं लगेगा। यदि नेपाल के शासक चाहते हैं कि लोकतंत्र वास्तविक रूप मजबूत हो तो उन्हें वे कदम उठाने होंगे जो जनता के जीवन को बदल दें और हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने का साहस प्रदान करें। यह मौका अभी भी लोकतांत्रिक हिमायती दलों के पास है।