केपी सिंह
उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिमंडल के पहले विस्तार से भाजपा के अंदरखाने की कई गुत्थियां उजागर हो गई हैं। पहले समझा जा रहा था कि लोकसभा चुनाव के बाद मोदी-शाह का पार्टी में एकछत्र वर्चस्व स्थापित हो चुका है जिसकी वजह से शिखर स्तर पर पार्टी में अंर्तद्वंद की गुंजाइश अब बिल्कुल नहीं देखी जानी चाहिए। लेकिन लगता है कि अभी भी मोदी-शाह की जोड़ी का आपरेशन खत्म नहीं हुआ है।
इस जोड़ी के राष्ट्रीय राजनीति में उभरने के समय जो लोग प्रतिद्वंदिता की हैसियत में थे उन्हें बोनसाई करके छोड़ देने तक का ही आपरेशन नहीं है बल्कि प्रतिद्वंदियों को जड़ से खत्म करने तक उनका आपरेशन जारी रहने वाला है। अपने विराट दर्शन के लिए मोदी-शाह की जोड़ी को ऐसा करना अनिवार्य लग रहा है भले ही यह कुछ लोगों को यह निर्मम भी लगे। दरअसल सत्ता संघर्ष में वे ही लोग पार पाते हैं जिनका कलेजा निष्ठुरता की हद तक निर्मम हो।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह का नाम अंतिम क्षणों तक मंत्री बनाये जाने के तौर पर चर्चाओं में रहा। पंकज सिंह पार्टी के कई प्रदेश अध्यक्षों के साथ महामंत्री के रूप में काम कर चुके हैं इसलिए उनका कद वरिष्ठता की श्रेणी तक पहुच चुका है। जाहिर है कि इस नाते उनको मंत्री बनाये जाना सिर्फ वंशबेल को पोषित किया जाना भी नहीं कहा जा सकता था।
दूसरी ओर लालजी टंडन के पुत्र आशुतोष टंडन को नगर विकास विभाग का पुश्तैनी कब्जा भी इस विस्तार में उपलब्ध करा दिया गया जिसमें कोई हिचक महसूस नहीं की गई। अकेले पंकज सिंह को मंत्री बनाने से छोड़ दिये जाने की गुत्थी ही इस विस्तार में नहीं है और भी गुत्थियां भी हैं। प्रदेश में भी एक समय जो नेता पार्टी के मठाधीशों में शुमार रहे उनकी जड़ें हिलाने की नीयत भी इस विस्तार में झलकी है।
दिवंगत रामप्रकाश त्रिपाठी की पुत्री अर्चना पाण्डेय को अपना इस्तीफा मांगे जाने का मलाल कम नहीं है। सूत्रों के अनुसार उनकी शिकायत यह है कि अगर स्टिंग आपरेशन में नाम आ जाने की वजह से उन्हें हटाना पड़ा तो यह फार्मूला कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह के लिए क्यों भुला दिया गया।
मेजर सुनील दत्त द्विवेदी को छोड़ दिये जाने पर भी ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं। उनके पिता स्व0 ब्रह्मदत्त द्विवेदी कल्याण सिंह के सबसे सशक्त प्रतिद्वंदी पार्टी के अंदर माने जाते थे जिनकी हत्या हो गई थी और यह मामला आगरा क्षेत्र की पट्टी में ब्राह्मण बनाम बैकवर्ड की लड़ाई में बदल गया था जिसकी चिंगारियां अभी तक बुझी नहीं हैं। क्या सुनील दत्त को भी कल्याण सिंह की इच्छा भी भेंट चढ़ा दिया गया।
आगरा पट्टी से ब्राह्मण प्रतिनिधित्व के लिए भोगांव से पहली बार चुने गये विधायक रामनरेश अग्निहोत्री को सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया गया है क्योंकि ब्राह्मणों के नाम पर शायद विशेष सतर्कता की जरूरत पार्टी के वर्तमान नेतृत्व में में झलकी इसलिए निरापद नाम तलाशे गये।
रामशंकर अग्निहोत्री की उम्र भी 60 वर्ष हो चुकी है। जाहिर है कि ऐसे में उनके कद का इतना विस्तार नहीं हो सकता कि वे नेतृत्व की दावेदारी तक उठ सकें। बुंदेलखण्ड में रवि शर्मा का नाम चर्चा के बावजूद शायद इसीलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि उन्होंने बुंदेलखण्ड में स्वतंत्र पहचान बनाने की अग्रसरता दिखा दी थी। उनकी बजाय बुंदेलखण्ड से यह कोटा 69 वर्षीय चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय से भरा गया।
चित्रकूट से विधायक चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और डाक्टर मुरली मनोहर जोशी जब मानव संसाधन विकास मंत्री थे तो वे उनके ओएसडी रहे हैं। ईमानदारी के धनी चन्द्रिका प्रसाद उपाध्याय के साथ भी न्याय नहीं किया गया। उनके प्रशासनिक अनुभव को देखते हुए उन्हें कैबिनेट मंत्री नहीं तो स्वतंत्र प्रभार का राज्यमंत्री तो बनाया ही जाना चाहिए था जिससे उनकी क्षमताओं का लाभ प्रदेश को मिलता।
दूसरी राजनीति उनके साथ यह की गई कि उन्हें केशव प्रसाद मौर्य के साथ लोक निर्माण विभाग से संबंद्ध किया गया है जो केर-बेर का संग साबित होगा। एक और कद्दावर नेता कलराज मिश्र के चर्चित ओएसडी विजय बहादुर पाठक की भी इंट्री मंत्रिमंडल में नहीं होने दी गई क्योंकि वे भी सत्ता के गलियारों में इतने दिन जूते घिसते-घिसते पर्याप्त घाघ हो चुके हैं जिससे वे वर्तमान सत्ताधारियों को खतरा नजर आये हों तो अस्वाभाविक नहीं है।
पंकज सिंह को बाईपास करने के चक्कर में मुख्यमंत्री अपने चहेते यशवंत सिंह को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं कर सके बल्कि उन्होंने किसी नये ठाकुर चेहरे को शपथ नहीं दिलाई। हालांकि महेन्द्र सिंह और सुरेश राणा को उन्होंने पदोन्नत करके कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलवा दी है लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि दोनों को उनकी परफारमेंस का इनाम देने के लिए यह ठीक किया गया।
इस्तीफा लेने के बाद में भी मुख्यमंत्री को दो और ठाकुर चेहरे चेतन चैहान व स्वाति सिंह को यथावत रखना पड़ा। हालांकि चेतन चैहान को महत्वहीन विभागों में शिफ्ट कर दिया गया है। दूसरी ओर विभाग परिवर्तन में स्वाति सिंह का रूतबा बढ़ा दिया गया है।
सरकार ने स्वच्छता अभियान चलाने के नाम पर मुख्यमंत्री अनुपमा जायसवाल और राजेश अग्रवाल को तो हटाने में सफल हो गये लेकिन तमाम नाराजगी के बावजूद उन्हें सिद्धार्थ नाथ सिंह और नन्दगोपाल नन्दी को ढ़ोते रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। अलबत्ता दोनों से मलाईदार विभाग छीन लिये गये हैं।
सिद्धार्थनाथ सिंह से स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग हटाकर जयप्रकाश सिंह को दे दिया गया है और उन्हें नागरिक सुरक्षा व होमगार्ड विभाग में धकेल दिया गया है। जबकि नन्दगोपाल नंदी से स्टाम्प शुल्क विभाग छीन लिया गया है।
भाजपा ने पहले ओमप्रकाश राजभर से छुटकारा पाया। अब उसने अपना दल से छुटकारा पाने की तैयारी शुरू कर दी है। अनुप्रिया पटेल को इस बार केन्द्र में मंत्री नहीं बनाया गया। इसके बाद भी वे मुखर नहीं हुई यह सोचकर कि राज्य में उनके पति आशीष पटेल को कैबिनेट मंत्री बनाने की उनकी इच्छा पूरी कर दी जायेगी पर यह नहीं हो पाया।
हालांकि उनके दल के जयकुमार जैकी अभी जूनियर मंत्री बने हुए हैं। भाजपा कुर्मी वोट बैंक को अपने मौलिक वोट बैंक के रूप में सहेजने में सफल हो रही है इसलिए उनके मामले में किसी बिचवानी को वह नहीं रखना चाहती। फिर भले ही वह अनुप्रिया हो या बिहार में नीतीश कुमार।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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