जुबिली न्यूज डेस्क
इस कोरोना महामारी में गरीबों के लिए सरकारी खाद्यान्न सहायता जीने-मरने का सवाल बन चुकी है। उनके लिए यह कितना अहम है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बिहार के मुजफ्फरपुर के कई लोग इसके लिए जेल भी जा रहे हैं।
जी हां, बिहार की राजधानी पटना से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड के अतरार गांव के 9 लोग जेल में हैं।
ये लोग जेल कैसे पहुंचे यह भी जानिए। इनकी गलती इतनी थी कि इन्होंने अनाज मांगा था और इस भ्रष्ट व्यवस्था ने इन्हें जेल पहुंचा दिया।
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अतरार के ग्रामीणों के अनुसार स्थानीय डीलर की अनाज की कालाबाजारी की शिकायत ब्लॉक स्तर पर की गई थी जिसके बाद अनाज को जब्त करके स्थानीय स्कूल में रखा गया था। 19 मई को प्रशासनिक अधिकारियों ने आकर उस अनाज को दूसरी जगह ले जाने की कोशिश की, जिसके बाद गांव में पुलिस और ग्रामीणों के बीच में भिडंत हुई, जो बाद में पुलिस की लाठीचार्ज में तब्दील हो गया।
उस दिन वहां क्या हुआ था, अतरार गांव के रमाशंकर चौधरी की जुबानी सुनिए। चौधरी बिहार सरकार के अनुसूचित जाति/ जनजाति अत्याचार निवारण पर्यवेक्षण समिति के सदस्य है। वह कहते हैं, हमारे गांव में तीन लोगों की भूख से मौत हो चुकी है। उस दिन तकरीबन 200 की संख्या में पुलिसकर्मी थे। पुलिस ने बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं, बच्चों को पीटा। वे लोग ग्रामीणों के मोबाइल तक छीनकर ले गए। अब पुलिस ने 9 लोगों को जेल भेज दिया है जिसमें नाबालिग भी है।
चौधरी कहते हैं, हमने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बीडीओ को निलंबित करने, घटना की जांच और निर्दोषों को जेल से रिहा करने की मांग की है।
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जन वितरण दुकानदारों का अपना है पक्ष
बिहार में तकरीबन 55 हजार जन वितरण या पीडीएस दुकानदार है। इसके लिए सरकार बकायदा रिक्तियां निकालती है। इसमें आरक्षण का भी प्रावधान है। पीडीएस दुकानदारों का कहना है कि सरकार ही पीडीएस दुकानदारों को चोरी करने को मजबूर कर रही है।
पीडीएस दुकानदार कई परेशानियां झेल रहे हैं। पहला बॉयोमैट्रिक मशीन जिसमें लाभुक के अंगूठे का मिलान जरूरी है, दूसरा खाद्यान्न की माप तौल और तीसरा पीडीएस दुकानदारों का कमीशन।
दरअसल सरकार अनाज के कम वजन के नाम पर पीडीएस दुकानदारों का लाइसेंस कैंसिल करती रहती है जबकि दुकानदारों का कहना है कि सच्चाई ये है कि राज्य खाद्य निगम से ही कम अनाज मिलता है। इसके अलावा उन्हें क्विंटल अनाज पर 70 रुपये कमीशन मिलता है। बिहार की फेयर प्राइस डीलर्स एसोसिएशन कई बार मांग कर चुकी है कि उन्हें केरल की तर्ज पर 30 हजार रुपये का मानदेय दिया जाए, लेकिन सरकार कुछ कर ही नहीं रही है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के दायरे में 85 प्रतिशत आबादी
कोरोना संकट में गरीबों तक राहत पहुंचाने में यूपीए सरकार के कार्यकाल की दो योजनाएं, मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, बहुत प्रभावी जरिया साबित हो रहे है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून (एनएफएसए) 2013 में बना, जिसके तहत 2 रुपये प्रति किलो गेहूं और 3 रूपए किलो चावल गरीबों को देना था।
इस कानून के तहत बिहार की 85 फीसदी आबादी को इस कानून के तहत सुरक्षा मिलनी चाहिए, लेकिन सरकार 15 फीसदी आबादी को छांटने की बजाए 85 फीसदी को गिनने में लगी हुई है, जो उल्टा काम है।
कोरोना की आपदा को देखते हुए सरकार ने लाभुकों को तय कोटे के अलावा तीन माह यानी अप्रैल, मई, जून में प्रति यूनीट पांच किलो मुफ्त चावल और 1 किलो दाल देने की घोषणा भी की है।
वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार, “राज्य में अब तक 15 लाख 76 हजार सुयोग्य परिवारों के राशन कार्ड बन चुके है। साथ ही 1 करोड़ 42 लाख राशन कार्डधारियों के खाते में 1000 रुपये की सहायता राशि भेजी जा चुकी है। साथ ही बाकी बचे परिवारों के राशन कार्ड बनाने की प्रक्रिया जारी है। ”
इसके अलावा केंद्र सकरार ‘वन नेशन, वन राशन कार्ड’ लागू करने की भी तैयारी में है जिसके तहत लाभार्थी किसी भी पीडीएस दुकान से अनाज ले सकता है। ऐसे में बिहार की एक बड़ी आबादी खासतौर पर प्रवासी मजदूरों के लिए ये सवाल अहम है कि क्या किसी दूसरे राज्य में रह रहे बिहारी मजदूर और बिहार के किसी जिले में रह रहे उसके परिवार दोनों को अनाज मिलेगा?