Friday - 25 October 2024 - 9:20 PM

गांधी पूजा के भाजपाई अनुष्ठान में पार्टी के लिए खतरे

केपी सिंह

भाजपा ने पीपुल कनेक्ट के लिए गांधी जयंती से संकल्प यात्रा शुरू की थी। जिसमें पार्टी के सांसद, विधायक सहित पदाधिकारियों और अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं ने गांव-गांव पैदल भ्रमण किया।

31 अक्टूबर को इस यात्रा का समापन हो चुका है लेकिन पार्टी ने इसे एक्सटेंड करने का फैसला लिया है। अब यह यात्रा तीन महीने और चलेगी और 31 जनवरी को इसका समापन होगा।

दूसरे चरण के लिए तमाम प्रचार सामग्री की व्यवस्था की गई है। जिसे सभी जिलों में भिजवाया जायेगा। दूसरे चरण की शुरूआत गुजरात में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली में पार्टी मुख्यालय से अन्य शीर्ष नेता करेगें। यात्रा को कामयाब बनाने के लिए राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह की अध्यक्षता में एक दस सदस्यीय समिति गठन कर दी गई है।

तकनीकी तौर पर सचमुच है भाजपा वृहद पार्टी

भाजपा ने सांगठनिक व्यवस्था में देश की सभी पार्टियों को काफी पीछे छोड़ दिया है जबकि मूल रूप से यह कोई मिशनरी पार्टी नही है। पार्टी का तो दावा यह है कि भाजपा ऐसी पार्टी है जिसके सदस्य दुनियां में किसी भी पार्टी से बहुत ज्यादा हैं। सदस्य संख्या को लेकर भाजपा के दावे में अतिश्योक्ति हो सकती है लेकिन इसमें संदेह नही है कि भाजपा की सदस्य संख्या सचमुच बेहद विराट हो चुकी है। इतने बड़े पार्टी परिवार के होते हुए भाजपा को कितनी भी खिलाफ हवा बन जाने पर कई दशकों तक पीछे छोड़ना बहुत मुश्किल रहेगा।

संगठन की गर्माहट बनाये रखने के नुस्खों में पारंगत

संगठन की गर्माहट बनाये रखने के लिए भाजपा अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को निरंतर कार्यक्रम देती रहती है। एक कार्यक्रम खत्म नही हो पाता तब तक दूसरे कार्यक्रम का सर्कुलर पार्टी के निचले स्तर तक के जिम्मेदारों के पास आ जाता है। इस वर्ष गांधी जी की डेढ़ सौ वीं जयंती मनायी जा रही है।

गांधी के बारे में भाजपा में एक वर्ग लगातार जहर घोलने का काम करता आया है। लेकिन इसके बावजूद पार्टी का वर्तमान नेतृत्व उनके वैश्विक कद और स्वीकार्यता से परिचित है। इसलिए वह गांधी को लेकर किसी गफलत में नही रहना चाहता। गांधी को कांग्रेस से अलग कर कैश कराना उसका मकसद है।

गांधी को लेकर विस्तृत कवायद इसी का नतीजा है। साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण है कि गांधी जी गुजराती थे और इस राज्य के लोगों की भावनाएं उन्हें लेकर कोमल हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इन भावनाओं को खुरचने को जोखिम मोल नही ले सकते।

गांधीवाद और कट्टरता की संजीवनी का केर-बेर जैसा मेल

बावजूद इसके गांधीवाद की चर्चा कराने में पाटी के लिए मुश्किलें हैं। इससे पार्टी की कटटरता में ढील देनी पड़ सकती है। पार्टी गांधी के नाम पर ईश्वर अल्लाह एक ही नाम का राग नही अलाप सकती क्योंकि इससे कटटरता के कारण पार्टी को जो संजीवनी मिलती है वह बाधित हो जायेगी। इसीलिए संकल्प पद यात्रा के जरिये उसने गांधी पूजा के अनुष्ठान को पूरा करने का इरादा बनाया है। इस बहाने पार्टी के सांसदों और विधायकों को गगन बिहारी बनकर धरातल से रोकने की कोशिश की जा रही है। पार्टी को अंदाजा है कि सत्ता के ग्लैमर में आज हर कोई भाजपा का सदस्य बनने को तैयार है लेकिन इसे स्थायी जुड़ाव नही कहा जा सकता। पार्टी की चमक जरा सी भी फीकी पड़ी तो बड़ी संख्या में मौसमी सदस्यों के दूसरी जगह शिफ्ट हो जाने में देर नही लगेगी। इस आंकलन की झलक महाराष्ट्र और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में देखने को मिल भी चुकी है।

नही फटे माननीयों के कपड़े, गनीमत नही संकट की निशानी

2 अक्टूबर को जब पद यात्रा शुरू हुई थी उस समय यह भी अंदेशा था कि कई जगह सांसदों और विधायकों के कपड़े फाड़े जायेगें क्योकि न केवल अल्प समय में ही वे पर्याप्त बदनाम हो चुके हैं, साथ-साथ उनकी संवेदनहीनता भी बहुत क्षोभ उत्पन्न कर चुकी है। संघ के साथ समन्वय बैठकों में इन कपूतों के लिए कितने गुबार निकाले गये लेकिन इनमें कोई सुधार नही हुआ। भाजपा का यह सच सामने आ चुका है कि न तो उसे रोज मर्रा के प्रशासनिक कामों में भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोई दिलचस्पी है और न ही उसे पार्टी के जनप्रतिनिधियों में लोकलाज की भावना भरने का ख्याल है। कोढ़ में खाज की स्थिति यह है कि पार्टी उन्हें जनप्रतिनिधि बनने का अवसर दे रही है जिनमें कोई नेतृत्व प्रतिभा नही है। इसलिए वे प्रशासन से जनहित के अनुकूल काम नही ले पा रहे हैं जबकि आम आदमी को दिल्ली, लखनऊ में बैठी सरकार से कम, स्थानीय नेताओं की ज्यादा जरूरत पड़ती है।

पनप रहा है साइलेंट किलर जैसा रोग

पर आश्चर्य हुआ कि कहीं संकल्प पद यात्रा के दौरान जनप्रतिनिधियों से लोगों का टकराव नही हुआ। यह बीमारी खत्म हो जाने का मामला नही है। कई बार बीमारी साइलेंट किलर बन जाती है जो दर्द देने वाली बीमारी से ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में भी इसकी झलक सामने आ चुकी है। यहां भी लोगों का असंतोष साइलेंट किलर के मोड़ में गहरा रहा है जिससे भाजपा को चुनाव नतीजों में झटका झेलना पड़ा है।

पद यात्रा के विस्तार के पीछे कहीं यही डर तो नही

क्या पद यात्रा कार्यक्रम को विस्तार इसी के मददेनजर दिया गया है। अगर ऐसा है तो पार्टी को पद यात्रा के अगले चरण के लिए कार्य योजना बदलनी पड़ेगी। बेहतर होगा कि पद यात्रा के दौरान कुछ जगह नेताओं को गांव में ही रात्रि विश्राम के लिए मजबूर किया जाये। साथ ही सांसद क्षेत्र विकास निधि और विधायक विकास क्षेत्र निधि से कामों के प्रस्ताव गांव-गांव में साथ-साथ लिए जायें। जनप्रतिनिधियों की व्यक्तिगत कार्यशैली को लेकर जो असंतोष है उसके गुबार लोग इस मौके पर निकाल सकें। इसकी मैकेनिज्म बनाई जाये। यह किया जा सकता है कि हर जिले में कुछ गांवों में वरिष्ठ नेता पर्यवेक्षक के रूप में पहुंचकर रात्रि चौपाल करें और लोगों को अपने जनप्रतिनिधि से शिकायतों के बावत कहने का भी मौका दें। भाजपा दुनियां की सबसे बड़ी पार्टी के घमंड में राजनीति के धूमकेतु की नियति को प्राप्त न हो जाये इसके लिए ऐसे प्रबंधन आवश्यक हैं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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