न्यूज डेस्क
14 फरवरी 2019 के बाद से देश के माहौल में सेना के पराक्रम और राष्ट्रवाद की चर्चा ज्यादा है। पुलवामा आतंकी हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक चुनावी मुद्दा है।
चुनावी रैलियों में आए दिन सेना के जवानों के पराक्रम की बात हो रही है और उनकी शहादत और वीरता के नाम पर वोट मांगा जा रहा है, लेकिन जवान जिन समस्याओं से जूझ रहे हैं उसका जिक्र नहीं हो रहा है। जवान सरहद पर नक्सली इलाकों में अनेकों समस्याओं से दो-चार होते हैं, लेकिन इसका जिक्र नहीं हो रहा है।
हाल के दिनों में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवानों की मौत नक्सली हमलों की तुलना में दिल के दौरे, अवसाद (डिप्रेशन) व मच्छर जनित बीमारियां जैसे मलेरिया व डेंगू से अधिक हो रही है।
सीआरपीएफ कर्मचारियों की इन कारणों से मौत नक्सली हमले में मारे गए कर्मियों की तुलना में 15 गुना ज्यादा है। इस रिपोर्ट में नक्सल प्रभावित सभी 11 राज्यों का आंकड़ा लिया गया है। सीआरपीएफ में अधिकारियों सहित 3.5 लाख जवान हैं।
14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के बस पर आतंकी हमला हुआ था जिसमें 40 जवान शहीद हो गए थे। इस हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। देशवासियों ने इन जवानों के परिवारों से सहानुभूति हुई, लेकिन इसको लेकर कोई बहस या आंदोलन नहीं हुई कि आखिर ऐसी घटनाएं होती ही क्यों हैं।
एक मई को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सीआरपीएफ के जवानों की गाड़ी पर नक्सली हमला हुआ था जिसमें 15 जवान शहीद हो गए थे। नक्सली हमला तो अब सामान्य बात हो गई है। क्सली इलाकों में सीआरपीएफ के जवानों पर हमले और शहीद होने की खबरें अखबारों की सुर्खिया बनती ही रहती हैं।
जनवरी 16 से जुलाई 18 के बीच बीमारियों की वजह से हुई 1,294 सीआरपीएफ जवानों की मौत
रिपोर्ट के अनुसार एक जनवरी 2016 से 30 जुलाई 2018 के बीच कुल 1,294 सीआरपीएफ जवानों की मौत अवसाद, दिल के दौरे, आत्महत्या, मलेरिया या डेंगू व अन्य कारणों से हुई। हालांकि इस दौरान 85 जवान नक्सली हमलों में शहीद हो गए। साल 2016 में 416, 2017 में 635 और 30 जुलाई 2018 तक 183 मौतें विभिन्न बीमारियों की वजह से हुई।
साल 2016 का हाल
साल 2016 में दिल के दौरे की वजह से 92 जवानों की मौत हुई तो पांच की मलेरिया व डेंगू की वजह से। वहीं अवसाद की वजह से 26 जवानों ने आत्महत्या कर ली तो 352 जवानों की मौतें अन्य कारणों से हुईं। नक्सली हमलों में 2016 में बिहार में 11, छत्तीसगढ़ में 18 और झारखंड में दो सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे।
साल 2017 का हाल
साल 2017 में दिल के दौरे से 156 जवानों की मौत हुई तो मच्छर जनित बीमारियों (मलेरिया व डेंगू) से छह। 38 जवानों ने अवसाद की वजह सेआत्महत्या कर लिए तो 435 जवानों की मौतें अन्य कारणों की वजह से हुई। इस साल में नक्सली हमलों में शहीद हुए जवानों की संख्या 40 रही। इनमें 39 जवान छत्तीसगढ़ और एक महाराष्ट्र में शहीद हुए थे।
जुलाई 2018 का हाल
2018 में (30 जुलाई तक) दिल के दौरे की वजह से 39, मलेरिया व डेंगू से एक, अवसाद की वजह से आत्महत्या करने वाले 19 जवानों और अन्य कारणों से 12 मौतें हुईं।
हालांकि, नक्सली हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ कर्मियों की संख्या 2016 में 31 रही। साल 2017 में 40 और साल 2018 में एक जनवरी से 30 जुलाई 2018 के बीच 14 जवान ऐसे हमलों में शहीद हुए थे।
ये हैं नक्सल प्रभावित राज्य
देश में नक्सल प्रभावित राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के 90 जिले शामिल हैं।
इनमें तेलंगाना के 30 जिले सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं तो वहीं झारखंड के 13 जिले सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़ के आठ और बिहार के चार जिले आते हैं।
सबसे बड़ी विडंबना है कि जिनके हाथों में देश की सुरक्षा की बागडोर है उन्हीं की उपेक्षा की जा रही है। उपेक्षा से जवानों का मनोबल टूटता है। जब मनोबल नहीं होगा तो निश्चित ही वह अवसाद में जायेंगे और अनेक बीमरियों की चपेट में आयेंगे, जो कि देश के लिए ठीक नहीं है।