रूबी सरकार
कोविड 19 से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के दूसरे चरण के बाद प्रवासी मजदूरों की समस्या लगातार बढ़ती गई । देश भर के करोड़ों प्रवासी मजदूर घर की तरफ भाग रहे हैं। वे मौत की तरफ या मौत से दूर भाग रहे हैं या फिर मौत को गले लगा रहे हैं, यह कहना मुश्किल है।
किसी के पास इसका कोई उत्तर नहीं है। इन मजदूरों में विशेष रूप से महिलाओं के हिस्से में इस दौरान अतिरिक्त कष्ट और परे शा नियां आयी है। कुछ महिलाओं के नौवां महीना शुरू होने के बावजूद उन्हें पैदल, साइकिल, हाथटेले, ऑटों, छोटी-बड़ी मालवाहक गाडि़यों, ट्रकों पर लदे समान की तरह वह ढोई जा रही हैं। कितनी महिलाओं की साड़ी की आड़ में प्रसव कराया गया। फिर वह छोटे बच्चे को छाती से लगा चल पड़ी।
मजदूरों का यह सफर घोर मानवीय दुखों की दारूण कथाओं का सफर बन चुकी है । वे अपने परिवार सहित आर्थिक एवं सामाजिक जोखिम से घिर गए हैं। उनकी समस्याओं और मुद्दों को समझने में केन्द्र एवं राज्य सरकारें विफल रही हैं। यही वजह है कि उनके राहत के लिए अभी तक कोई पुख्ता गाइडलाइंस नहीं आ पाया है।
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इन मजदूरों के संकट के कारणों को समझने के लिए वेबिनार, गूगल मीट और जूम मिटिंग के जरिये देश भर के शिक्षाविद्, शोधकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार विमर्श कर रहे हैं।
विकास संवाद ने तो मध्यप्रदेश के प्रवासी मजदूरों पर त्वरित एक अध्ययन रिपोर्ट साझा किया है, जिसमें मध्यप्रदेश सरकार के हवाले से कहा गया है, कि 20 मई तक साढ़े 4 लाख से अधिक मजदूरों को अलग-अलग राज्यों से वापस लाने की व्यवस्था की गई है, . इनमें गुजरात से लगभग दो लाख, राजस्थान से एक लाख, महाराष्ट्र से एक लाख से अधिक मजदूर शामिल हैं। इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक लगभग 10 लाख मजदूर पैदल या फिर स्वयं के साधनों से वापस लौट कर आये हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं, कि यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि चूंकि कामगारों के पलायन करने के व्यवहार, पलायन के स्थान और उनकी परिस्थितियों की निगरानी करने की मध्यप्रदेश में कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए अब भी राज्य सरकार के पास यह पुख्ता जानकारी नहीं है, कि वास्तव में मध्यप्रदेश के कितने मजदूर अन्य राज्यों में पलायन करते हैं, कितने समय के लिए और कोविड19 महामारी की परिस्थितियों के बीच मध्यप्रदेश के कुल कितने मजदूर अन्य राज्यों में अभी भी शेष हैं। हालांकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत के 17 बड़े राज्यों में मध्यप्रदेश के लगभग साढ़े तीस लाख लोग पलायन कर जाते हैं।
बहरहाल कोविड19 महज एक स्वास्थ्य सम्बन्धी आपातकाल नहीं है. यह एक सामाजिक और आर्थिक आपातकाल भी है, जिसने भारत को अनिश्चितता के भंवर में फंसा दिया है। अध्ययन में प्रवासी मजदूरों का वर्गीकरण कर बताया गया, कि लगभग साढ़े 45 फीसदी मजदूर परिवार के साथ, वहीं साढ़े 54 फीसदी अकेले पलायन पर जाते हैं।
इसी तरह पलायन करने वालों में लगभग 32 फीसदी प्रवासी कामगार 18 से 25 उम्र के तथा 44 फीसदी 26 से 44 और 24 फीसदी 40 से अधिक उम्र के हैं। इन मजदूरों को किसी भी किस्म का नियुक्ति पत्र या अनुबंध पत्र नहीं दिया जाता है, जिससे उनका कोई कानूनी अधिकार तय हो सके और न ही इनके भुगतान की कोई एक तिथि है, इसलिए कोविड19 के कारण अचानक हुए लाकडाउन के कारण 47 फीसदी मजदूरों को उनकी मजदूरी का पूरा भुगतान नहीं मिला। जहां पूरा देश डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ रहा है, वहीं आज भी 86 फीसदी मजदूरों को नकद भुगतान किया जाता है।
इन्हें साप्ताहिक छुट्टि भी नहीं मिलती , यहां तक कि काम पर न आने से इन्हें उस दिन का वेतन भी नहीं दिया जाता है। कोविड-19 के संक्रमण के चलते घर वापस आये लगभग आधे मजदूर दोबारा शहर में पलायन को तैयार नहीं है, क्योंकि हाड़तोड़ मेहनत के बाद लौटते वक्त किसी के जेब में मात्र एक सौ रूपये, तो किसी के पास एक रूपये भी नहीं बचे थे। अब वे चाहते हैं, कि इस संकट से उबारने के लिए सरकार प्रत्येक परिवार में उन सभी सदस्यों को रोजगार दें,, जिनकी उम्र काम करने लायक है। इसके साथ ही सस्ता राशन उन्हें भी मिले, जिनके पास राषन कार्ड नहीं है। उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और प्रशिक्षण मिले, जिससे उन्हें दोबारा आजीविका के लिए पलायन न करना पड़े ।
समर्थन के डॉ. योगेश कुमार ने चर्चा में बताया, कि केन्द्र या राज्यों में किसी भी सरकारी प्राधिकरण को प्रवासी मजदूरों के पैमाने और प्रकार की कोई व्यापक समझ नहीं है, विशेष रूप से उन मजदूरों की, जो असुरक्षित और अनौपचारिक रोजगार और व्यवसायों में कार्यरत हैं। उन्होंने कहा, कि आज प्रवासी मजदूर हताश, क्रोधित, चिंतित और थके हुए हैं।
उन्हें अगले 3-4 महीने की अल्पावधि के लिए त्वरित सहयोग की आवश्यकता है। आने वाले समय में इन्हें आजीविका, कौशल और भावनात्मक प्रोत्साहन देने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की आवश्यकता है। एक ऐसी समन्वित नीति व कार्यवाही की तत्काल आवश्यकता है, जो इन्हें घर लौटने में मदद और घर पहुंचने के उपरांत पुनर्वास की सुविधा प्रदान कर सके।
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इस पर सरकार को तत्काल कदम उठाने चाहिए। श्री कुमार ने बताया, कि छत्तीसगढ़ मेंलगभग एक तिहाई लौटे हुए मजदूरों के घरों में पानी और शौचालय की सुविधा नहीं है। इसी तरह लगभग 70 फीसदी अपने परिवार को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम नहीं है, जबकि अधिकांश प्रवासियों के पास निर्माण कार्य संबंधी अनुभव और कौशल है। 15 फीसदी को कृषि संबंधी कार्यों की जानकारी है। इस परिस्थिति में वे अपना और अपने परिवार का पेट कैसे भर पाएंगे? मनरेगा योजना केवल कुछ प्रवासियों के लिए एक अस्थायी विकल्प हो सकती है, क्योंकि लगभग एक तिहाई के पास जॉब कार्ड नहीं हैं।
इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने कोरोना के अंधेरे काल में ये अंधेरगर्दी की इंतेहा को देखते हुए एक जनहित याचिका पर सुनवाई की और लॉकडाउन के चलते मजदूरों की घर वापसी की यात्रा के दौरान भुगत रहे अन्याय और अत्याचार पर एक आदेष भी केंद्र, केंद्र शासित प्रदेष और राज्य सरकारों को देते हुए अगली तारीख तक जवाब प्रस्तुत करने को कहा।
न्यायालय ने कहा, कि सरकारें मजदूरों का रजिस्ट्रेशन, उनके भोजन, पानी, निवास की व्यवस्था करें। न्यायालय ने उनकी घर वापसी के लिए रजिस्ट्रीकरण उनके ठहरे स्थान पर ही विशेष केंद्र बनाकर करने को कहा है। न्यायालय ने यह भी कहा, कि मजदूरों की रेल या बस से सफर पूर्णतः निःशुल्क हो और राज्य सरकारें उसका पूरा खर्च उठाये ।
मजदूर जहां है, वहीं उन्हें मुफ्त भोजन राज्य सरकार उपलब्ध कराये। रेल से सफर करने वाले प्रवासी मजदूरों को रेल में चढने के पूर्व राज्य शासन से भोजन- पानी उपलब्ध करना होगा । इसके अलावा रेल यात्रा के दौरान केंद्रीय रेल मंत्रालय द्वारा उन्हें भोजन- पानी उपलब्ध करवाया जाये और बस से सफर करने वाले मजदूरों को भी यही सुविधा अनिवार्य रूप् से मिले।
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इसके साथ ही राज्य शासनने प्रवासी मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया गतिमान व सरल हो और उसके लिए ’हेल्पडेस्क’ उन्ही जगह पर उपलब्ध हों, जहां वे रूके हैं।
शासन को नजर रखना होगा,, कि रजिस्ट्रेशन के बाद मजदूरों को जल्द से जल्द रेल या बस उपलब्ध हो जाए और उसके सफर के साधन के संबंध में पूरी जानकारी उन्हें प्राप्त हो जाये तथा जो प्रवासी मजदूर सड़क पर पैदल चलते हुए देखे जाये ,उन्हें तत्काल केंद्र या राज्य शासन या केंद्र शासित प्रदेष हर प्रकार की सेवा उपलब्ध कराये और उन्हें उनके गन्तव्य तक पहुंचाने के लिए वाहन व्यवस्था तुरंत उपलब्ध करवाये। रास्तेपर पाये सभी श्रमिकों को भोजन, पानी की सुविधा उपलब्ध की जाए और अपने राज्यों में पहुंचने के बाद हर मजदूरों की स्वास्थ की जांच व अन्य सुविधाएं मुफ्त में उपलब्ध करवाई जाये।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)