जुबिली न्यूज डेस्क
पांच जनवरी को चेन्नई की एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करने वाली एक 20 साल की युवती की हत्या हो गई थी। युवती का शव मिलने के बाद इसी फैक्ट्री में काम करने वाली करीब दो दर्जन महिलाएं सामने आई और सबने यौन दुर्व्यवहार की शिकायत की।
इन महिलाओं ने बताया कि वह किन परिस्थितियों में काम करती है। किस तरह कंपनियां उनकी मजबूरी का फायदा उठाती हैं।
भारत में महिला कर्मचारियों के साथ दोयम दर्जे के व्यवहार नया नहीं है, खासकर गारमेंट फैक्ट्रियों में। इसके पहले भी ऐसी शिकायते आती रही हैं।
फिलहाल गारमेंट फैक्ट्री में हुई 20 साल की युवती की हत्या फैशन जगत की काली परछाई को फिर सामने ला रही है।
जिस फैक्ट्री में युवती की हत्या हुई उसमें ग्लोबल फैशन रिटेलटर एच एंड एम के लिए कपड़े बनाए जाते हैं। पुलिस के अनुसार हत्या का आरोपी फैक्ट्री का एक कर्मचारी है, जिसे गिरफ्तार कर लिया गया है।
वहीं एच एंड एम पर सप्लायर के साथ करार रद्द करने का दबाव पड़ रहा है। एशिया, यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे महाद्वीपों में कपड़े बेचने वाली कंपनी एच एंड एम ने तीसरे स्वतंत्र पक्ष से जांच कराने की बात कही है।
एच एंड एम ने अपनी सफाई में एक बयान जारी करते हुए कहा, “सप्लायर के साथ भविष्य में किसी भी तरह का रिश्ता इसी जांच के नतीजे पर निर्भर करेगा। ” कंपनी ने यह भी कहा है कि वह फैक्ट्रियों में किसी भी तरह का दुर्व्यवहार बर्दाश्त नहीं करेगी।
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पुलिस की नजर में यह एक सामान्य मामला
युवती की हत्या पुलिस की नजर में एक सामान्य मामला है। इस हत्याकांड को पुलिस प्रेम प्रसंग का मामला बता रही है। नाम छुपाने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमारी जांच दिखाती है कि दोनों रिश्ते में थे और दोनों के बीच उपजे मतभेद हत्या की वजह हैं।”
पुलिस अधिकारी के अनुसार गारमेंट फैक्ट्री की किसी कर्मचारी या उनकी यूनियन ने कभी यौन दुर्व्यवहार की शिकायत नहीं की, लेकिन स्थानीय मानवाधिकार संगठनों के अनुसार कई महिलाएं ऐसी शिकायतें कर चुकी हैं।
नया नहीं है गारमेंट फैक्ट्रियों में महिलाओं का शोषण
भारत का कपड़ा उद्योग कई करोड़ डॉलर का है। भारत में करीब 1.2 करोड़ लोग इस सेक्टर में काम करते हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं।
लंबे समय तक तमिलनाडु के गारमेंट उद्योग पर बाल मजदूरी के आरोप लगते रहे। अब यौन शोषण और दुर्व्यवहार के मामले सामने आ रहे हैं।
श्रमिक अधिकारों के लिए लडऩे वाले संगठनों के अनुसार बड़े ब्रांड, सप्लायरों पर तेजी से सस्ते कपड़े बनाने का दबाव डालते हैं। सप्लायर यह दबाव अपने कर्मचारियों पर लादते हैं और अंत में ऐसी स्थिति बनती है, जिसमें बाथरूम जाने की इजाजत भी नहीं दी जाती। मौखिक और शारीरिक सेक्स दुर्व्यवहार भी होता रहता है।
भारत में गारमेंट कर्मचारियों के हितों के लिए काम करने वाली संस्था, एशिया फ्लोर एलायंस की इंडिया कॉर्डिनेटर नंदिता शिवकुमार के अनुसार, “युवती की मां और उसकी सहकर्मियों के अनुसार उसने दुर्व्यवहार के बारे में बताया था।”
नंदिता कहती हैं, “कम से कम 25 अन्य कर्मचारियों ने हमें बताया कि फैक्ट्री में उनके साथ किस तरह का दुर्व्यवहार होता है। और हमें लगता है कि ब्रांड और निर्माता ऐसा माहौल बनाने में नाकाम रहे हैं जिसमें कर्मचारी शिकायत कर सकें।”
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बदले की कार्रवाई का डर
2013 में लागू किए गए कानून के मुताबिक ऐसी कोई भी जगह जहां 10 लोग काम करते हैं वहां महिलाओं की अगुवाई में एक शिकायत समिति होनी चाहिए और इस समिति के पास दुर्व्यवहार के दोषी पर जुर्माना लगाने या उसे नौकरी से निकालने का अधिकार होना चाहिए।
नंदिता शिवकुमार कहती हैं, “दरअसल अधिकतर मामलों में बदले की कार्रवाई का डर सताता है और कुछ मामलों में इस कानून का इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसे लेकर जागरूकता का अभाव है।”
शिवकुमार के अनुसार इस फैक्ट्री में भी कुछ ऐसा ही हुआ, “इस फैक्ट्री के सुपरवाइजरों से मौखिक शिकायत की गई, जिन्हें न तो गंभीरता से लिया गया और ना ही आंतरिक शिकायत समिति को भेजा गया।”
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