जुबिली न्यूज डेस्क
तमिलनाडु ऐसा दूसरा राज्य बन गया है जिसने “बैठने का अधिकार” कानून लागू कर दिया है। इससे पहले यह कानून केरल लागू कर चुका है।
तमिलनाडु की दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कर्मचारियों खासकर महिला कर्मचारियों के लिए “बैठने का अधिकार” फायदेमंद साबित हो रहा है।
व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिला कर्मचारी कई-कई घंटों तक खड़े होकर दुकानों और रिटेल स्टोर में काम करती हैं।
चेन्नई के एक रिटेल स्टोर में काम करने वाली एस लक्ष्मी को हर रोज करीब 10 घंटे खड़े होना पड़ता था। जब वह घर लौटतीं तो वह थकान से चूर हो जातीं और उनकी एडिय़ों में दर्द होता है।
पिछले महीने ही तमिलनाडु दूसरा भारतीय राज्य बना जो कानूनन रिटेल स्टोर और दुकानों में कर्मचारियों को “बैठने का अधिकार” देता है।
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इस कानून के मुताबिक स्टोर मालिकों से कहा गया है कि वे कर्मचारियों की बैठने की व्यवस्था करें और कर्मचारियों को काम के दौरान जब भी संभव हो आराम करने का मौका दें।
भारत में कई दुकानों और रिटेल स्टोर्स में काम करने वाले कर्मचारियों को खड़े होकर काम करना होता है। यह एक ऐसा नियम है जो समान रूप से सभी कर्मचारियों पर लागू होता है।
दक्षिण के राज्यों में बड़े परिवार द्वारा आभूषण, साड़ी और कपड़ों के रिटेल स्टोर चलाए जाते हैं। वे महिला ग्राहकों की सेवा के लिए कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को काम पर रखते हैं।
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साल 2018 में करेल ने इसी तरह का कानून लागू किया था। दरअसल टेक्सटाइल स्टोर में काम करने वाले कर्मचारियों ने इस अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया था।
अधिकार समूहों का कहना है कि श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह देर से उठाया गया स्वागत योग्य कदम है।
कामकाजी महिला समन्वय के तमिलनाडु राज्य संयोजक समिति की एम धनलक्ष्मी कहती हैं, “यह लंबे समय से लंबित मांग थी।” वह कहती हैं, “जब से वे काम पर जाने के लिए बस में चढ़ती हैं, तब तक 12-14 घंटे की शिफ्ट के बाद घर लौटती हैं वे मुश्किल से बैठ पाती हैं। वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती हैं और उन्हें लगातार तनाव में काम करना पड़ता है। यह नियम लंबे समय से लंबित था।”
केरल से शुरू हुआ यह आंदोलन
पेशे से दर्जी पी विजी ने केरल में बैठने का अधिकार आंदोलन को शुरू किया है। उन्होंने यूनियन का गठन किया, यह खासकर ऐसे कर्मचारियों के लिए था, जो असंगठित क्षेत्र जैसे कि दुकानों में सहायक के तौर पर काम करते हैं।
विजी कहती हैं, “चूंकि महिलाओं को काम पर बैठने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, इसलिए वे अपने सिर पर कुर्सियां लेकर विरोध में चल पड़ीं।” वे तमिलनाडु के नए कानून को लेकर उत्साहित हैं।
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