अरुण सिंह
कोई भी रेप काण्ड कोई अकेली घटना नहीं होती है ।यह किसी गैंग की कारिस्तानी नहीं है और इसे न तो कोई मुख्यमंत्री रोक सकता है , न कोई प्रधानमंत्री। यह आइसोलेशन में घटी घटना नहीं है।
रिक्शावाला जब किसी महिला सवारी को बिठाता है तो देखिए, उसकी आँखों में लालच का पानी। एक ऑटो ड्राइवर जब किसी युवती या बच्ची को बिठाता है तो देखिए, उसकी नजर। वह आधा वक्त मिरर में ही देखता रहता है। बस कंडक्टर, ड्राइवर को देखिए, हवस होती है उनकी आँखों में। न न। जो रेप नहीं करता या नहीं किया, वह भी रेपिस्ट होता है। स्त्रियाँ समझती हैं।
दूर मत जाइए, अपने पास के बाजार में सब्जी वाले लौंडो की बातें सुनिए, फल बेचने वाले लड़कों की बातें सुनिए, उनके द्विअर्थी संवाद सुनिए, केला, बाबूगोशा, नासपाती, संतरा के कई-कई मायने बनाये होते हैं। वे रिपीटेडली रेप करते हैं, बातों से, नज़रों से। स्त्रियाँ रोज़ झेलती हैं।
स्कूल की बच्चियों से पूछिए, कैसे देखता हैं उन्हें गार्ड, स्कूल बस का कंडक्टर, ड्राइवर, माली और उनका टीचर भी। स्कूल टीचर से पूछिए, कहाँ-कहाँ कैसे-कैसे बचती हैं वे। काम वाली बाइयों से पूछिए।बैंक में काम करने वाली स्मार्ट वुमेन से पूछिए, पुलिस में काम करने वाली एम्पावर्ड वुमेन से पूछिए, सब टारगेट हैं।और उन्हें कोई एलियन टारगेट नहीं कर रहा।
एक बार ट्रेन में यात्रा कर रहा था…ट्रेन थोड़ी खाली सी थी। एक अकेली लड़की भी लौट रही थी। पूरा ट्रेन उसे ऐसे घूर कर देख रहा था मानो चबा जायेंगे, पी जायँगे। चार चार डिब्बे दूर तक खबर पहुँच चुकी थी कि एक लड़की अकेली है। फेलो-पैसेंजर की छोड़िए, पेंट्री वेंडर तक की नजरें स्कैन कर रही थी उसे। वह ऊपर वाली सीट में लगभग दुबकी ही रही। यह किसी रेप से कम नहीं होता।
अपने आसपास देखिए।रेल में देखिए। मेट्रो में देखिए। हवाईअड्डे पर देखिए। किसी अकेली लड़की को घूरती नज़रों को देखिए।शरीफ लोग स्कैन कर लेते हैं उन्हें। ये सब एक तरह से रेप ही है। स्त्रियां रोज़ गुज़रती हैं इस पीड़ा से।
देखिए, कभी अपनी पुलिस को भी। स्त्रियों के प्रति उनका नजरिया कभी अनौपचारिक बातचीत में सुनिए। घर से निकलने वाली हर औरत उनके लिए ख़राब है, और घर के भीतर वाली औरतें चीज़।
यह समस्या क़ानून व्यवस्था की नहीं है। यह शिक्षा की भी नहीं है। यह समस्या सोशल कंडीशनिंग की है। जहाँ चारो ओर केवल यही सिखाया जाता है कि स्त्री केवल स्त्री है। माल है, उपभोग की चीज़ है। इसका न किसी पोलिटिकल पार्टी से सम्बन्ध है, न किसी राज्य से। सब जगह एक ही सोच है। स्त्री एक चीज़ है। रोज़ ही बुलंदशहर, रोज़ ही निर्भया काण्ड होता है हमारे बीच। यह कोई ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम नहीं है कि पुलिस पेट्रोलिंग, मुखबिर से, इंटेलिजेंस के सपोर्ट से रोक लेंगे आप।
और हाँ, कभी लोकल संगीत को देख लीजिए, किसी भी भाषा में देख लीजिए, उत्तर से दक्खिन तक, पूरब से पश्चिम तक, कितना गन्दा है वह, कितना हिंसक है वह । साथ ही , कितनी सहजता से उपलब्ध है पोर्न। ये सब कॉकटेल बना रहे हैं। समाज को हिंसक बना रहे हैं और बलात्कारी पैदा कर रहे हैं।
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सरकार कठोर क़ानून बनाकर लोगों के मन में भय बैठा सकती है। उसके लिए आरोपी की सही पहचान करके बीच चौराहे पर लटकाना होगा लेकिन हमारे देश में यह मुमकिन नहीं है क्यूँकि यहाँ राजनीतिक गिद्ध बहुत है। रेप हुआ तो क्यूँ हुआ और रेप करने वालों को मार दिया तो क्यूँ मारा…मौक़ापरस्त राजनीतिज्ञ/लेफ़्ट/लिबेरल/दामपंथी/वामपंथ/ समाजवादी/ राष्ट्रवादी लॉबी अपने फ़ायदे के लिए दोनों तरफ़ से बेट्टिंग करती है।
उफ्फ्…..
इसे मैंने नहीं लिखा है, यह उस हर किसी से वाबस्ता है, सन्नद्ध है, जो इसे समझ सकता है। मानिए कि किसी ने मुझे भेजा है। सोचिए कि आपको भी इसे किसी को भेज सकते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं. यह लेख उन्होंने सोशल मीडिया के लिए लिखा. लिखा इसलिए ताकि रेपिस्ट मानसिकता का पोस्टमार्टम हो सके.)