Friday - 25 October 2024 - 7:21 PM

बड़े अदब से : परपंच से पंचायत तक

प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव

हाल ही में कोरोना काल में पंचायत चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए। निर्मल आनंद के वास्ते आपको एक बार पुन: उस दौर में ले चलते हैं। मेरे पीछे पीछे आइये। अंग्रेजी में फाॅलो मी।

जोे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के अंतर्गत बेटी को नहीं पढ़ा पाये हैं वे कतई अफसोस नहीं कर रहे। जोड़ तोड़ हमारे ब्लड में है। उन्होंने परधानी के चुनाव में उन्हें महिला सीट पर उतारा दिया।

महिलाओं को तो पंचायत करने और परपंच करने में महारथ हासिल है, यह सरकार भी जानती है। महिलाओं की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित है। पार्टी कोई भी हो महिलाओं की सीटें कभी नहीं कटीं। बस बदली गयीं। खैर।

पर्चे भरे गये। प्रत्याशी महिलाएं अंगूठा लगाकर घर के अंदर हैं। नाम वापसी हुई। प्रत्याशी महिलाएं घर के अंदर हैं। पोस्टर चिपक रहे हैं। महिलाएं घर से झांक रही हैं।

चुनाव प्रचार जोरों पर है। महिलाएं कपड़ों पर साबुन घिस रही हैं। आचार संहिता लागू है। प्रत्याशी महिलाएं अचार बना रही हैं। मतदान का पहला चरण पूरा हो गया। महिलाएं पति के चरण दबा रही हैं।

मतदान का दूसरा चरण पूरा हुआ। महिलाएं बुकनू और चूरन बना रही हैं। तीसरे और चौथे चरण का मतदान पूरा हुआ। महिलाएं अपने चरणों में आलता लगा रही हैं।

परिणाम आने लगे हैं। प्रत्याशी महिलाओं के पतियों को बधाइयां देने वालों को तांता लगा हुआ है। जीती पत्नी है… पति हार से लदे हुए हैं। मानो उन्होंने ही चुनाव जीता है। सच्चाई भी यही है। हां, बस साड़ी नहीं पहनी।…

आइये, एक विजयी महिला प्रत्याशी से मिलते हैं। गांव का नाम है बुआ फुआ चुआ का पुरवा। सहुलियत के लिए शार्ट में इसे बचुआ का पुरवा भी कहते हैं।

महिला सुरक्षित सीट। सीट जरूर सुरक्षित है …महिला है, पता नहीं। विजयी कंडीडेट हैं राम प्यारी श्याम प्यारी जनक दुलारी। लोग इन्हें प्यार से जगदुलारी कहते हैं। उनके पोस्टरों में भी लिखा था-‘आपकी प्यारी गांव की जगदुलारी।” दरवाजे पर दस्तक देता हूं। घुटन्ना पहने एक किशोर दरवाजा खोलता है,’को आओ? का चाही?”

‘राम श्याम प्यारी जनक की दुलारी जी का घर यही है?” पूछता हूं।
‘ई को आएं?” उसने अभिज्ञता जाहिर की।

‘अरे वही जो चुनाव जीती हैं।” मैंने स्पष्ट किया।
‘वै तौ ठीक है पर तुम को हौ? अम्मा दयाखो कउनो सहरिया आवा है।” उसने कपड़े देखकर अनुमान लगाया।

‘बेटा तुम अपनी मां का नाम नहीं जानते हो?”
‘हमका का मालूम! का हम अपनी महतारी का नाव ते बुलकारित है? हम तो बस अम्मा जानित है।”

मुझे लगा कि सामने लगे पोस्टर में वह सिर्फ फोटो ही पहचान पाता होगा। उसके लिए काला अक्षर भैंस बराबर था। तभी दरवाजे की ओट से एक महिला के खड़े होने का आभास सा होता है,’कउन हो जी, का चाहत हो?” महिला का कंठ सरकारी शिक्षा

व्यवस्था के अव्यावहारिक होने की चुगली कर रहा था।
‘जी हम अखबार से आये हैं। आपका इंटरव्यू करना है।”

‘इ इंटरबू का होत है?”
‘मतलब ये कि आपकी जीत पर कुछ सवाल करने हैं।”
‘हमार जीते पे सवाल काहे उठा है?” उसके स्वर में चिंता साफ दिखायी दी।
‘अरे चुनाव के बारे में आपकी राय जानना है।”
‘पूछौ।”
‘आप थोड़ा सामने आयेंगी?”
‘नाहि!”
‘राजनीति में आपका पूर्व में क्या अनुभव रहा है?”
‘कुच्छौ नाहि।”
‘आपको पंचायत चुनाव में खड़े होने की सलाह किसने दी?”
‘हमका कौनो कछु नाहि दिहिस।”
‘मेरा मतलब है कि आप सामज सेवा के लिए कैसे आगे आयीं?”
‘अरे, अपने पड़ोसी जो खां साहेब हैं, उई घुरहू के बप्पा से हमार नाव लई के कहिन कि ई दांव हमाका खड़ा कै देओ। जितावे की गारंटी हमार है। फिर का हम बैठी रहेन, उनके कहे ते खड़ी हुई गयेन।”
‘आपने पर्चा स्वयं भरा?”
‘हमका भरे का नाहि आवत। खां साहेब भरिन रहे।”
‘आपने चुनावी सभाएं कीं? चुनाव प्रचार किया?”
‘खां साहेब सब किहीन हैं, उनहीं ते पूछो।”
‘पंचायत राज के बारे में आपका क्या कहना है?… महिलाओं को सावलम्बी बनाने के लिए आपके पास क्या योजनाएं हैं?”
‘हम का लम्बी छोट बनइबे?” फिर थोड़ा रुककर वह चिल्लाई,’अरे, घुरहू देख, भइसिया सब धनिया काड़े डाल रई। दुई डंडा मार इके पिछवाड़े!!” किशोर लाठी लेकर भैंस के पीछे दौड़ा।
‘गांव की बेहतरी के लिए आपके पास क्या प्लान हैं?”
‘खां साहेब कहत रहे कि हमार घर पक्का हुई जाई। टरेक्टर, टूबेल आैर घरे के सामने पक्की डामर रोट बन जाई। नवा कपरवओ बनि।”
‘खेती किसानी में लगी महिलाओं को पुरुषों से कम मेहनताना मिलता है। इस तरह के शोषण के मामलों में आपका क्या रुख रहेगा?”
‘हम पंचै इ सब का जानी! तुम अइस करो खां साहेब ते मिल लेओ। उई तुमका सब लिखवाय देहेें।”
तभी खां साहेब भैंस हांकते हुए प्रकट हुए। उनके हाथ में लाठी थी। भैंसे उनके इशारे पर चल रही थीं।…

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