जुबिली न्यूज डेस्क
मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध-प्रदर्शन अब भी जारी है। आज किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच आठवें दौर की बैठक होनी है और प्रस्तावित बातचीत से पहले केंद्र सरकार पूरी तरह सतर्क है।
सोमवार को होने वाली बैठक को लेकर रविवार को सरकारी खेमे में काफी गहमागहमी रही। पीएमओ ने भी मंत्रियों से इस बारे में फीडबैक लिया। जहां सरकार को भरोसा है कि आज की बातचीत से जिद की दीवार टूट जायेगी तो वहीं किसान नेताओं को इस पर संशय है।
इस बैठक से पहले पंजाब के बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) (बीकेयू-यू) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह ने कहा कि भाजपा सरकार के जिद्दी स्वभाव को देखते हुए कृषि क़ानूनों को रद्द करने को लेकर कोई रास्ता निकलने की बहुत कम उम्मीद है।
रविवार को जोगिंदर सिंह ने अंग्रेजी अखबार द द हिंदू से कहा, “जिस तरह से सरकार में मौजूद नेता नए कृषि कानूनों के समर्थन में बयान
दे रहे हैं और इसे किसानों के लिए फायदेमंद बता रहे हैं तो मुझे चार जनवरी की बातचीत से कोई सकारात्मक नतीजा आने की बहुत कम उम्मीद है।
उन्होंने कहा कि हमारा स्टैंड बिल्कुल साफ है- हम तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी चाहते हैं। अगर हमारी मांगे नहीं मानी जाती हैं तो हम अपना विरोध प्रदर्शन अनिश्चितकाल तक जारी रखेंग।.”
मालूम हो 30 दिसंबर को किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ सातवें दौर की बैठक हुई थी। बैठक के बाद दोनों पक्षों की ओर से कहा गया था कि आधी बात बन गई है।
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जोगिंदर सिंह ने कहा कि पिछली बैठक में केंद्र सरकार ने बिजली कानून और पराली जलाने को लेकर जुर्माने के मामले में किसानों को आश्वासन दिया है, लेकिन, जब तक हमारी मुख्य मांग नहीं मानी जाती तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा और हम उसे और तेज करेंगे।
किसान नेता सिंह ने कहा कि सरकार को समझने की जरूरत है कि पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी के तहत मौजूदा मंडी सिस्टम बहुत अच्छी तरह काम कर रहा है और इसे चलते रहना चाहिए। यहां तक कि नए कानून लागू होने से पहले ही अनुबंध पर खेती की जा रही थी। इसे वैसे ही रहने दें।
केंद्र सरकार ये कहते हुए नए कानूनों को सही ठहरा रही है कि कई किसान संगठनों ने इसका समर्थन किया है लेकिन ये सिर्फ हमारे आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश है। जो सगंठन कृषि क़ानूनों का समर्थन कर रहे हैं वो सिर्फ कागजों पर हैं। असल में उनका कोई वजूद नहीं। सरकार बस एक समानांतर मंच बनाकर मौजूदा विरोध प्रदर्शन को कमजोर करना चाहती है।
बीकेयू के अध्यक्ष ने यह भी कहा कि भले ही हम पंजाब के 32 किसान संगठनों के समूह का हिस्सा नहीं हैं लेकिन सभी संगठन नए कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए काम कर रहे हैं।
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वहीं सरकार किसानों के साथ आज के बातचीत को लेकर आशान्वित है। सरकार के अधिकारी के अनुसार आज की बातचीत के तुरंत बाद आंदोलन खत्म तो नहीं होगा, लेकिन बीच की राह पर बढऩे का फॉम्र्यूला मिल सकता है। उन्होंने दावा किया कि इस बार सरकार के प्रस्ताव से किसान इनकार नहीं कर पायेंगे।
सूत्रों के मुताबिक सरकार एमएसपी पर लिखित भरोसा देने के विकल्प पर विचार कर रही है। वहीं तीनों कानून रद करने की मांग पर कानूनों की समीक्षा के लिए कमेटी बनाने पर विचार कर सकती है।