जुबिली स्पेशल डेस्क
हम मेहनत कर इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे एक बाग नहीं … एक खेत नहीं हम सारी दुनियां मांगेंगे… ये गाना मशहूर फिल्म मजदूर का है लेकिन यह गाना मौजूदा स्थिति में बहुत कुछ बयां करता हुआ नजर आ रहा है।
इस फिल्म में दिलीप कुमार और राज बब्बर जैसे बड़े कलाकारों ने शानदार अभिनय किया है लेकिन इस गाने ने बहुत कुछ संदेश भी दिया है। देश का अन्नदाता इस समय सड़क पर है।
कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन अब और तेज हो गया है। मोदी सरकार के मंत्री लगातार किसानों से आंदोलन को लेकर अपील कर रहे हैं, लेकिन मामला कृषि कानूनों की वापसी पर अटका है। इतना ही नहीं कड़ाके की सर्दी में भी किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं।
मौसम चाहे जितना भी खराब हो लेकिन किसान अपने हक के लिए पीछे नहीं हटेंगे। अब आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए किसानों को बर्फीली ठंड का सामना करना पड़ेगा।
कड़कड़ाती ठंड में किसानों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। किसान संगठनों की माने तो आंदोलन के दौरान अब तक 20 किसानों की मौत हुई है।
तापमान तेजी से घट रहा है लेकिन केंद्र की सरकार भी मानने को तैयार नहीं है और उसने साफ कर दिया है कि कृषि कानूनों को मोदी सरकार वापस नहीं लेगी।
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कोरोना की वजह से देश की आर्थिक स्थिति पहले से चौपट थी और अब किसानों को यह आंदोलन सरकार के लिए गले की हड्डी बनता नजर आ रहा है।
किसानों के आंदोलन से देश का उद्योग धंधा भी एक बार फिर पटरी से उतर गया है। किसानों का आंदोलन कब खत्म होगा ये कहना जल्दीबाजी होगा, क्योंकि सरकार अपनी बात पर अड़ी है और उसके कदम पीछे हटते नजर नहीं आ रहे हैं।
इतना ही नहीं इस आंदोलन को खत्म करने के लिए कुछ नेताओं ने दूसरी चीजों का सहारा लिया है। पहले इस आंदोलन को पाकिस्तान और चीन से जोड़ा गया है। इससे बात नहीं बनी तो इससे बात नहीं बनी तो इसमें टुकड़े-टुकड़े गैंग की एंट्री करा दी गई लेकिन किसानों का आंदोलन पर किसी तरह का असर नहीं पड़ा है।
इसके आलावा कोरोना का हवाला देकर भी इस आंदोलन को खत्म कराने की कोशिश जरूर की गई है। इस आंदोलन को अब 20 दिन का वक्त हो गया है। सरकार केवल बातचीत से मुद्दा सुलझाने की बात कह रही है।
सरकार ने किसानों से पांच बार बातचीत की है लेकिन उसका नतीजा जीरो रहा है। इसके आलावा अमित शाह ने भी किसानों के साथ बैठक की है लेकिन उसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला है।
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किसानों के तेज होते आंदोलन का असर अब देश की आर्थिक स्थिति पर पड़ता दिख रहा है। जानकारी के मुताबिक किसान आंदोलन से इकॉनोमी को बड़ा खतरा हुआ है। किसान तस से मस नहीं हो रहे हैं।
किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक सरकार इन कानूनों को वापस नहीं लेती, तब तक वो दिल्ली बॉर्डर से नहीं हटेंगे। वहीं किसानों के प्रदर्शन के कारण देश की
इकॉनोमी को हर रोज हजारों रुपयों का घाटा उठाना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि हर रोज 3500 करोड़ रुपये का नुकसान होता दिख रहा है।
जाने माने राजनीतिक विश्लेशक मनीष हिंदवी कहते हैं कि लोकतंत्र में शान्तिपूर्वक धरना प्रदर्शन करना उसका अधिकार होता है। जहां तक किसान आंदोलन की बात है तो सरकार को जल्द इसपर बातचीत करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि अगर आप किसी के बिल ला रहे हैं तो इसपर बातचीत करना जरूरी है। आपने जीएसडी लाई लेकिन व्यापारियों से बातचीत नहीं की।
अब जब कृषि कानून को लेकर आये तो आपने इसपर किसानों से बातचीत नहीं की। लोकतंत्र में सरकार अगर इसी तरह की मनमानी करती रहेगी तो इसी प्रकार की स्थिति आपको देखने को मिलेगी।
देश के प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने किसानों के आंदोलन को लेकर बड़ा दावा किया है और बताया है कि किसानों का यह आंदोलन की देश को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
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एसोचैम ने कहा है कि मोटे तौर पर किसान आंदोलन के कारण देश को हर रोज 3,000 से 3,500 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
किसानों का आंदोलन करीब तीन हफ्तों से चल रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि 21 दिनों में करीब 75 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
एसोचैम के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, हिमाचाल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की इकॉनोमी मिलाकर करीब 18 लाख करोड़ रुपये की है।
उन्होंने बताया कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन, सड़क, टोल प्लाजा और रेल सेवाएं बंद होने से आर्थिक गतिविधियां ठहर गई है।
कपड़ा, वाहन कलपुर्जा, साइकिल, खेल का सामान जैसे उद्योग क्रिसमस से पहले अपने निर्यात ऑर्डर को पूरा नहीं कर पाएंगे, जिससे वैश्विक कंपनियों के बीच उनकी छवि प्रभावित होगी।
वहीं भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भी ऐसे ही बात कही है। उसके अनुसार किसान आंदोलन के कारण आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। इतना ही नहीं आने वाले दिनों में इसका असर इकॉनोमी पर दिखेगा।
इसके साथ ही बहादुरगढ़ की फुटवेयर इंडस्ट्री भी इस आंदोलन की वजह से काफी नुकसान में है। फुटवियर, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, ऑटो-पार्ट्स और केमिकल की इकाइयां सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
सर्दी के मौसम में पहने जाने वाले फुटवेयर के ट्रांसपोर्टेशन में और देरी हो रही है। ट्रांस्पोर्टर माल लेने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनके गोदाम भरे हुए हैं।
कुल मिलाकर किसानों का आंदोलन अब और तेज हो गया है। इस वजह से मोदी सरकार भी टेंशन में है लेकिन आंदोलन कब और कैसे खत्म होगा इसका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है।