जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बंग जननी वाहिनी चर्चा में है। महिलाओं की इस बिग्रेड ने दीदी को दोबारा सत्ता में लाने के लिए कमर कस लिया है।
बंग जननी वाहिनी मुख्यमंत्री ममती बनर्जी के संदेशों को राज्य के कोने-कोने तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठा रही है। ममता को खुद पर जितना भरोसा है उतना ही उन्हें अपनी इस महिलाओं की टोली पर हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महिलाओं की यह बिग्रेड 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद शुरू की थी। ममता ने बहुत सोच-समझ कर इस बिग्रेड को बनाया था।
दरअसल पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ चुनावों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। चुनाव के दौरान देखा गया कि अब महिलाएं ज्यादा संख्या में मतदान के लिए निकल रही हैं जो खेल बदलने वाला साबित हो रहा है।
इन्हीं महिला मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए बंग जननी वाहिनी का गठन टीएमसी ने किया था। बंगाल में आने वाले महीनों में विधानसभा चुनाव होना है तो ममता की इस बिग्रेड ने मोर्चा संभाल लिया है।
टीएमसी का महिला विंग प्रदर्शनों की अगुआई कर रहा है जिनमें बीते साल अक्टूबर में हाथरस बलात्कार के खिलाफ प्रदर्शन शामिल था। उसमें महिलाओं ने ‘दलित महिला हमारी बेटी है’ के बैनरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया किया था।
अब यह विंग उन ग्रामीण महिलाओं को भाजपा के उन नेताओं के खिलाफ सचेत करने की तैयारी में लग गई है जो उनके घर भोजन करने के लिए आ धमकते हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बाहरी व्यक्ति कहती हैं। इसके लिए ‘रन्ना घोरे रन्ना होबे’ नामक एक कार्यक्रम शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
ममता की इस महिला ब्रिगेड के कामकाज को देखते हुए भाजपा भी सचेत हो गई है। भाजपा की योजना अपने बूथ प्रबंधन रणनीति में महिलाओं को शामिल कर उनके साथ हर बूथ और मंडल में पदयात्रा से लेकर प्रभातफेरी जैसी गतिविधियों की एक शृंखला आयोजित करने की है।
टीएमसी की तरह भाजपा भी महिला वोटरों को लुभाने के लिए हर जतन कर रही है। इसीलिए इस बार की बंगाल की लड़ाई में महिलाओं को कुछ अतिरिक्ति तवज्जो मिल रही है, तो इसके कारण भी हैं।
फिलहाल केवल महिलाओं की संख्या ही वह कारक नहीं है जो सभी राजनीतिक दलों को उनके आगे हाथ जोडऩे को विवश कर रहा है।
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मिसाल के तौर पर बिहार को ले सकते हैं जहां पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में देखा गया कि पुरुषों की तुलना में मतदान करने के लिए महिलाएं ज्यादा निकली। बिहार में 54.7 फीसद पुरुषों की तुलना में 59.7 फीसद महिलाएं ज्यादा संख्या में मतदान के लिए निकलीं।
यही वजह है कि बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और उसकी प्रबल प्रतिद्वंद्वी बीजेपी और यहां तक कि कांग्रेस ने भी अपने-अपने महिला मोर्चे को सक्रिय कर दिया है।
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ये सभी महिला सुरक्षा के मुद्दे पर दूसरे दल के खराब रिकॉर्ड को प्रस्तुत कर रहे हैं और महिलाओं के कल्याण के लिए उनकी पार्टी ने जो कुछ किया है, उसे जोर-शोर से लोगों को बता रहे हैं।
मालूम हो बंगाल में 3.59 करोड़ महिला वोटर हैं जो कुल वोटरों की लगभग आधे के बराबर हैं। अब बंगाल में वह दौर बीत चुका जब वामपंथियों की सरकार हुआ करती थी और पुरुषों को मतदान के दिन महिलाओं को घर में ही रखने के लिए धमकाया जाता था।
अब महिलाएं मुखर हो रही है। अब वे अपने अधिकारों को लेकर अधिक मुखर हैं। महिलाओं को ममता बनर्जी की रैलियों में असहमति दर्ज करते हुए देखा जा सकता है। ममता भी इन महिलाओं की बातें धैर्य से सुन रही हैं।
दरअसल, 2019 का लोकसभा चुनाव टीएमसी के लिए समय रहते नींद से जगाने वाला अवसर बना। इस चुनाव में बीजेपी ने 18 सीटें जीतीं तो टीएमसी ने 22। इस चुनाव में भाजपा को 40 फीसद वोट मिले जो टीएससी से सिर्फ तीन फीसद कम थे।
दरअसल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केवल बीजेपी से मिल रही जोरदार चुनौती से चिंतित नहीं हैं बल्कि उन्हें सत्ता-विरोधी लहर के साथ-साथ कांग्रेस-वाम गठबंधन से भी जूझने की चुनौती है।
इसीलिए ममता सभी को खुश रखने की कोशिश में लगी हुई हैं खासकर महिलाओं को। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनाव की जीत हो या बिहार विधानसभा की, वह भाजपा की सफलता के लिए महिलाओं का योगदान विशेष रूप से स्वीकार किया है।
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