जुबिली न्यूज डेस्क
पश्चिम बंगाल में तीसरी बार टीएमसी को जीत दिलाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना राजनीतिक कद बढ़ा लिया है। इसके अलावा एक नई बहस को भी जन्म दे दिया है कि क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता विपक्ष की अगुवाई कर सकती हैं।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की शानदार वापसी के बाद ऐसा सोचना स्वाभाविक है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राह इतनी आसान नहीं है। भाजपा को परास्त करने के बाद विपक्ष की राजनीति में ममता का रुतबा बढ़ा है। वह विपक्ष की एक मजबूत नेता के तौर पर उभरकर आई हैं। उनमें भाजपा के विरुद्ध लड़ने की क्षमता भी नजर आती है। उनकी पार्टी संसद में भी सरकार के खिलाफ सर्वाधिक मुखर रहती हैं।
इसके अलावा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, यूपी के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चन्द्र बाबू नायडू जैसे नेता ममता बनर्जी के साथ मंच साझा कर चुके हैं। ऐसा माना जाता है कि ममता बनर्जी इन सभी नेताओं को एक साथ लेकर चल सकती हैं। और केंद की मोदी सरकार को कड़ी टक्कर दे सकती हैं।
हालाकिं, इसके बावजूद ममता की राह में कई अड़चनें हैं। कांग्रेस कभी भी ममता के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगी
पहली बात यह है कि कांग्रेस कभी भी ममता बनर्जी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगी। आज बेहद खराब स्थिति में चल रही कांग्रेस यह मानती है कि वह राष्ट्रीय पार्टी है। अभी भी वह देश में भाजपा के बाद सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।
2019 से चुनावों से पूर्व विपक्षी एकता की जितनी भी कोशिशें हुई हैं, उनमें कांग्रेस ने किसी दल को आगे नहीं आने दिया। हाल में यह मांग उठी कि यूपीए की कमान शरद पवार के हाथों सौंपी जानी चाहिए, लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है।
जानकारों का मानना है कि आगे भाजपा के खिलाफ विपक्ष की कोई भी रणनीति बने कांग्रेस उसकी कमान अपने पास ही रखेगी। कांग्रेस को छोड़कर विपक्ष का एकजुट होने का कोई मतलब नहीं बनता है।
दूसरे, ममता बनर्जी की शानदार जीत पर भले ही वामदल खुश दिख रहे हों, लेकिन वह भाजपा को जितना बड़ा दुश्मन मानते हैं, उतना ही तृणमूल को भी। इसलिए वह कभी भी ममता के नेतृत्व में केंद्रीय राजनीति में आगे बढ़ने को तैयार नहीं होंगे।
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तीसरे, जब तक शरद पवार सक्रिय हैं, तब तक ममता का दांव चल पाना मुश्किल है। आम चुनावों में अभी तीन साल हैं, लेकिन पवार के सक्रिय रहते ममता को समूचे विपक्ष का नेता मान लिया जाएगा, यह संभव होता नहीं दिखता है। मान लीजिए कभी कांग्रेस भी तैयार हो जाती है तो पहला नाम पवार का आएगा।