जुबिली न्यूज डेस्क
मंगलवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया कि कोरोना का टीका बनाने वाला रूस दुनिया का पहला देश बन गया है। उन्होंने कहा कि यह कोरोना वायरस के खिलाफ कारगर है। उन्होंने यह भी कहा कि यह टीका उनकी बेटी को भी लगाया गया है और वह पूरी तरह ठीक है।
रूस के वैज्ञानिकों ने जब जुलाई में टीका बनाने का ऐलान किया था तभी से इस टीके पर संदेह जताया जा रहा है। डबल्यूएचओ ने भी संदेह जताते हुए कहा था कि रूस जल्दबाजी कर रहा है। बीते दिनों जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐलान किया तो उसके बाद अमेरिका ने भी संदेह जताया है। फिलहाल रूस के टीका पर संंदेह जताया जा रहा है।
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रूस के वैक्सीन बना लेने के दावे पर विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमरीका को ही केवल भरोसा नहीं है। ख़ुद रूस में भी इन दावों पर सवाल उठ रहे हैं।
मॉस्को स्थित एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल ट्रायल्स ऑर्गेनाइजेशन (एक्टो) ने रूसी सरकार से इस वैक्सीन की अप्रूवल प्रक्रिया को टालने की गुजारिश की है। उनके मुताबिक जब तक इस वैक्सीन के फेज तीन के ट्रायल के नतीजे सामने नहीं आ जाते, तब तक रूस की सरकार को इसे मंज़ूरी नहीं देनी चाहिए।
फिलहाल संदेहों के बाद भी रूस की कोरोना वैक्सीन की दुनियाभर से मांग हो रही है। रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने दावा किया है कि 20 देशों ने वैक्सीन ‘स्पूतनिक-वी’ के लिए प्री-ऑर्डर कर दिया है। उन्होंन बताया कि दुनिया के 20 देशों ने वैक्सीन की करोड़ों डोज खरीदने में रुचि दिखाई है। रूसी डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (आरडीआईएफ) वैक्सीन को बड़ी मात्रा में बनाने और विदेशों में प्रमोट करने में निवेश कर रहा है।
रूसी वैक्सीन से संबंधित वेबसाइट के मुताबिक साल 2020 के अंत तक, 20 करोड़ कोरोना वैक्सीन के उत्पादन की योजना है। इसमें से 3 करोड़ डोज रूस खुद के लिए रखेगा। रूस के इन दावों और संदेहों के बीच सवाल उठता है कि क्या डब्लूएचओ, अमरीका और ब्रिटेन के बाद भरोसा ना करने पर भी भारत ये वैक्सीन खरीदेगा?
भारत और रूस अच्छे दोस्त हैं। हाल ही में देश के रक्षा मंत्री कोरोना के समय में रूस का दौरा करके भी लौटे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस भारत को भी ये वैक्सीन बेचना चाहता है, लेकिन भारत की तरफ से अब तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
मंगलवार को पुतिन के दावे के बाद स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा कि इस बारे में वैक्सीन पर बनी एक्सपर्ट ग्रुप ही फैसला करेगी। इस टीके को लेकर एम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि रूस की वैक्सीन खरीदने का फैसला करने से पहले भारत को दो बातों का पता लगाना होगा। पहला ये कि उनका ट्रायल डेटा क्या कहता है। मसलन कितने लोगों पर ट्राई किया गया, नतीजे क्या आए, कितने दिनों तक के लिए ये कारगर साबित होता है।
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साथ ही ये पता लगाना भी आवश्यक होगा कि ये वैक्सीन सेफ भी है या नहीं। एक निजी न्यूज चैनल को इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि इन दोनों पैमानों पर आश्वस्त होने के बाद ही भारत को रूस से वैक्सीन खरीदने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।
ये तो हो गई रूस से टीका खरीदने की बात। भारत की क्या तैयारी है यह भी जान लेते हैं। भारत में भी स्वदेशी वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटेक की वैक्सीन का फेज टू, फेज थ्री ट्रायल चल रहा है। इसके साथ ही ब्रिटेन में जिस वैक्सीन का ट्रायल तीसरे चरण में पहुंच चुका है, उसके लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड के साथ करार किया है। भारत में बड़े पैमाने पर वैक्सीन तैयार करने की क्षमता भी है। इसलिए जानकार रूस के साथ वैक्सीन के करार को लेकर बहुत उत्साहित नहीं दिख रहे हैं।
दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन की रेस
रूस अकेला देश नहीं है, जो वैक्सीन बनाने में लगा है। दुनिया भर में 100 से भी अधिक वैक्सीन शुरुआती स्टेज में हैं और 20 से ज़्यादा वैक्सीन का मानव पर परीक्षण हो रहा है।
अमरीका में छह तरह की वैक्सीन पर काम हो रहा है और अमरीका के जाने माने कोरोना वायरस विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची ने कहा है कि साल के अंत तक अमरीका के पास एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन हो जाएगी।
ब्रिटेन ने भी कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर चार समझौते किए हैं। चीन की सिनोवैक बायोटेक लिमिटेड ने मंगलवार को कोविड-19 वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण की शुरुआत की है। इस वैक्सीन का ट्रायल इंडोनेशिया में 1620 मरीजों पर किया जा रहा है। भारत में भी स्वेदशी वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि 2021 के शुरुआत में ही कोरोना का टीका आम जनता के लिए उपलब्ध होगा।