राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा आख़िरकार चर्चा में आने लगी। चर्चाएं तमाम तरह की हो रही हैं। कांग्रेसियों के लिए ये मीठी भी हैं,खट्टी भी और कड़वी भी। कड़ाके की ठंड में हाफ टी-शर्ट में घूम रहे राहुल की शारीरिक क्षमताओं पर रिसर्च होने लगे। डाक्टरों से पूछा जाने लगा है कि आखिर कौन सी ताकत इतनी ठंड सहने या ठंड ना लगने की शक्ति दे सकती हैं। कुछ डाक्टर इस शक्ति को जैनेटिक बता रहे हैं। कांग्रेसी इसे तपस्वी की शक्ति कह रहे हैं। राहुल कह रहे हैं मुझे ठंड नहीं लग रही क्योंकि में ठंड से डरता नहीं। वो ये भी कह रहे हैं कि इस देश के तमाम किसानों, गरीबों और मजदूरों के शरीर पर कड़ाके की ठंड में गर्म कपड़ा नहीं नजर आता, इसपर फिक्र क्यों नहीं होती!
यात्रा से जुड़ी चर्चा को बल देने वाले रोज़ नए मुद्दे जन्म ले रहे हैं।
अयोध्या के राम मंदिर के पुजारी, राम मंदिर ट्रस्ट और संघ से जुड़ी शख्सियतों का भी राहुल और उनकी यात्रा की प्रशंसा और सराहना करना गैर मामूली बात तो है ही। यात्रा में मोहब्बत फैलाने वाले राहुल का गांधीवाद उनके आलोचकों और कथित विरोधिओं में भी नजर आना असाधारण है। मसलन राहुल भले ही प्यार के प्रसार की बात करें पर उनके दस बयानों में दो बयानों में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रति काफी कटुता होती है। वो बार-बार संघ पर आक्रामक होते हैं। ऐसे में संघ से जुड़ा कोई जिम्मेदार व्यक्ति राहुल और उनकी यात्रा की प्रशंसा और सराहना करे तो इसे संघ की गांधीगिरी ही कहा जा सकता है। राहुल आज की मीडिया पर लगातार आरोप लगाते हैं। कहते हैं कि मीडिया बिक गया है इसलिए उनकी यात्रा को नहीं दिखाता। जनसमर्थन, भीड़ और जज्बे से भरी भारत जोड़ों यात्रा को मीडिया खूब स्थान दे रही है तो लगने लगा कि मीडिया भी अपने ऊपर मढ़े गए आरोपों के विरुद्ध यात्रा की खूब कवरेज कर गांधीगीरी पर उतर आई है।
भारत जोड़ों यात्रा की चर्चा का सिलसिला भाजपा सांसद वरुण गांधी तक भी पंहुचा है। कहा जाने लगा कि वरुण और उनकी माता एवं भाजपा सांसद मेनका गांधी भी इस यात्रा में शामिल होकर कांग्रेस ज्वाइन कर सकती हैं। इन कयासों पर चुटकी तो बनती थी। कहने वाले कहने लगे कि यदि ऐसा हुआ तो भारत जोड़ों यात्रा गांधी परिवार जोड़ों यात्रा बनकर अपना लक्ष्य हासिल कर लेगी।
वरुण के कांग्रेस और भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ने की संभावना पर ये भी व्यंग्य हो सकते हैं कि राहुल के कथन के मुताबिक वो नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। तो क्या मोहब्बत की दुकान में नफरत का माल भर लेंगे !
वरुण गांधी के कांग्रेस में शामिल होने के अनुमानों पर अतीत याद दिलाया जा रहा है कि वरुण ने किस तरह मुस्लिम समुदाय पर आक्रामक होते हुए आपत्तिजनक नफरती बयान दिए थे।
बताते चलें कि भाजपा में मोदी युग के शुरुआती दौर में एक धर्म विशेष पर आपत्तिजनक बयानों के साथ वरुण का एक कट्टरवादी फायर ब्रांड युवा भाजपा नेता के तौर पर उभरे थे। साम्प्रदायिकता से भरा उनका बयान मुस्लिम समाज के दिल में चोट पहुंचाने वाला था।कभी चर्चा में बनने वाला ये युवा नेता और सांसद भाजपा में आगे उभर नहीं पाया। यूपी में उभरती भाजपा में उन्हें विशेष स्थान नहीं मिला। वो लोक-सभा चुनाव जीतते गए लेकिन मोदी के दोनों कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री भी नहीं बन सके। अंततः मां मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण हाशिए पर नजर आने लगे।
राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ों यात्रा में बेरोजगारी, ग़रीबी, मंहगाई के दर्द और नफरत के ज़हर के नुकसान का अहसास गिना रहे हैं, दूसरी तरफ उनके चचेरे भाई वरुण गांधी यात्रा से अलग कुछ ऐसा ही ख्याल दूसरे मंचों पर पेश कर रहे हैं। राहुल मोदी सरकार के विरुद्ध आक्रामक हैं ये बात तो समझ आती है क्योंकि वो सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के नेता हैं। वरुण गांधी भाजपा के सांसद हैं। और अपनी ही पार्टी भाजपा की सरकार पर आक्रामक होते जा रहे हैं। साफ साबित हो रहा है कि वो बगावत के रास्ते पर उतर आए हैं। तय मानिए कि उनकी बगावत उन्हें भाजपा में नहीं रहने देगी। अब ये क़यास गढ़ना लाज़मी है कि वो अपने पुरखों की बनाई पार्टी कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं। ऐसा हुआ तो वो अकेले नहीं उनकी माता, भाजपा सांसद और वरिष्ठ नेत्री मेनका गांधी भी कांग्रेस में घर वापसी कर सकती हैं।
ये संभावना हक़ीक़त बनी तो देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार एक हो जाएगा। लेकिन यदि वक्त के साथ अतीत के पुराने जख्म अगर फिर ताजे हो गए तो घरेलू कलह पार्टी को पुनः नुकसान पंहुचा सकती है। क्योंकि ये तो तय है कि राहुल के आगे वरुण को और सोनिया के आगे मेनका को वो अहमियत तो नहीं मिलने वाली जो गांधी परिवार के होने के नाते ये माता-पुत्र कांग्रेस में अहमियत चाहते होंगे।
एक चर्चा ये भी है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और वरुण गांधी में क़रीबी रिश्ता है। यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव में वरुण ने अपने एक खास को सपा से टिकट दिलवाया था। लेकिन सपा में जाने का अनुमान हकीकत की कसौटी पर चुनौतीपूर्ण है। अखिलेश क्या वरुण को सपा में इतनी एहमियत दे सकते हैं जितनी एहमियत वो चाहते होंगे ? दूसरा खतरा ये कि वरुण यदि सपा ज्वाइन करते हैं तो ये बात तय है कि ऐसे में भाजपा की तरफ से वरुण के अतीत के वो आडियो-वीडियो वायरल किए जाने लगेंगे जिसमें उन्होंने मुस्लिम समाज के खिलाफ नफरती जहर उगला था। ये अतीत सपा को वो नुकसान पंहुचा सकता है जो नुकसान सपा से कल्याण सिंह के मिलाप पर उठाना पड़ा था।
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ये तो तय है वरुण गांधी अब भाजपा में नहीं रहेंगे। लेकिन जाएंगे कहां ? ये बड़ा प्रश्न और चर्चा का विषय बना है। मुख्य चर्चाएं ये हैं कि कांग्रेस चले गए तो भाजपा की सोशल मीडिया तंज करेगी- राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा ने गांधी परिवार को जोड़ लिया। राहुल ने अपनी मोहब्बत की दुकान में नफरत का ऐसा आइटम रख लिया जिसने मुस्लिमों को लेकर नफरतें उगली थी। और यदि वरुण गांधी सपा में गए तो भी वरुण के वो पुराने वीडियो वायरल होंगे जिसमें उन्होंने मुस्लिम समाज को लेकर अपशब्द बोले थे। ऐसे में सपा के लिए कल्याण सिंह ना साबित हो जाएं वरुण। मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह का साथ सियासी दोस्ती की थी तब मुसलमान सपा से नाराज़ होकर कांग्रेस में चले गए थे। और लोकसभा चुनाव में सपा को भारी नुक्सान और कांग्रेस को फायदा हुआ था। कुल मिलाकर वरुण का सियासी कैरियर अधर में नज़र आ रहा है।
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