सैय्यद मोहम्मद अब्बास
भारतीय राजनीति में मोदी की धमक लगातार बढ़ रही है। बीजेपी जो पहले अटल-आड़वाणी के सहारे कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को चुनौती देती थी वो अब पूरी तरह से बदल चुकी है।
अटल-आड़वाणी का युग खत्म हो गया है और अब मोदी-शाह की जोड़ी की बदौलत बीजेपी राजनीति की पिच पर शानदार बल्लेबाजी कर रही है। आलम तो यह है कि बीजेपी अब मोदी-शाह के चेहरे के बल पर एक नहीं कई राज्यों में अपनी सरकार बना चुकी है।
इस दौरान उसने कांग्रेस को हाशिये पर ढकेल दिया। इतना ही नहीं मोदी शाह की जोड़ी ने देश के कई राज्यों में कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया। मोदी की बदौलत बीजेपी लगातार मजबूत हो रही है।
मोदी के लिए कुछ फैसले गले की हड्डी बन गये हैं
जनता ने उसे सर आंखों पर बैठा दिया है। ऐसे में मोदी सरकार को प्रचंड बहुमत जनता ने दिया है। इस वजह से मोदी के हर फैसले पर कोई ऊंगली नहीं उठती है लेकिन कहा जाता है कि जब तक आपका फैसला सब मान रहे हैं तो सबकुछ ठीक है।
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कभी-कभी आपका फैसला आप पर भारी पड़ सकता है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है। मौजूदा दौर में मोदी सरकार ने कभी नहीं सोचा था कि उसको कभी जनता का इतना बड़ा विरोध झेलना पड़ेगा।
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मोदी की दूसरी पारी में कुछ फैसले उनके लिए गले की हड्डी बनते नजर आ रहा है। उनमें सबसे पहले नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी ने बीजेपी सरकार की मुश्किले बढ़ा दी थी।
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नागरिकता संशोधन कानून को आए हुए एक साल हो चुका है। केंद्र सरकार ने पिछले साल 11 दिसंबर को सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) पास किया था। हालांकि इसके बाद पूरे देश में धरना प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया था।
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दिल्ली के शाहीन बाग और देश के कई अन्य हिस्सों में भी शाहीन बाग की तर्ज पर धरना प्रदर्शन किए गए। उत्तर प्रदेश में भी लखनऊ के घंटाघर, अलीगढ़ विश्वविद्यालय और इलाहाबाद पार्क में लोगों ने इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन किया।
कोरोना की आड़ में NRC-CAA के आन्दोलन को खत्म करवाया गया
सरकार ने इस आंदोलन को खत्म कराने के लिए बल प्रयोग भी किया लेकिन सरकार इसमें पूरी तरह से फेल हो गई. सैकड़ों लोगों के खिलाफ किये गए मुकदमे भी लोगों को हटा नहीं पाए. हालांकि बाद में इसे कोरोना की आड़ में इसे आनन-फानन में खत्म करवा दिया गया है। केन्द्र सरकार कोरोना को ही एक बार फिर हथियार बनाना चाहती है.
कुल मिलाकर नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी का मामला अभी के लिए फिलहाल ठंडा पड़ गया है लेकिन कृषि कानून को लेकर किसानों का प्रदर्शन अब सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।
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किसानों के आंदोलन में भी कोरोना की एंट्री
हालांकि सोशल मीडिया पर अब चर्चा हो रही है क्या कोरोना की आड़ में किसानों का आंदोलन का खत्म करा दिया जाएगा। लोगों को अब डर लग रहा है कि कोरोना की मार से इस आंदोलन को कमजोर किया जा सकता है।
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इसका ताजा मामला तब देखने के मिला जब शुक्रवार को किसान आंदोलन में सिंघु बॉर्डर पर तैनात 2 आईपीएस अफसर कोरोना पॉजिटिव पाये गए है। ऐसे में हालात और खराब न हो जाये इसके लिए सरकार कोई सख्त कदम उठा सकती है।
चाहे कोई भी साजिश कर ली जाये कमजोर नहीं होगा आंदोलन : कांग्रेस
कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत ने कहा कि सरकार चाहे कोई साजिश कर ले लेकिन यह आंदोलन कमजोर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आंदोलन को कमजोर करने की साजिश जरूर हो रही है।
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पहले पाकिस्तान और चीन को इस आंदोलन में घसीटा गया लेकिन चाहे सरकार या फिर सरकार के समर्थक की कोई भी साजिश कामयाब नहीं होने दी जाएगी है।
जब तक देश के अन्नादाता को न्याय नहीं मिलता तब तक आंदोलन जारी रहेगा। कांग्रेस देश के किसानों के साथ मजबूती से खड़ी है।
आंदोलन को ख़त्म कराने के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है : SP
उधर समाजवादी पार्टी की युवा नेता पूजा शुक्ला ने जुबिली पोस्ट को बताया कि जहां पर चुनाव होता है वहां पर बीजेपी के लिए कोई कोरोना नहीं होता है। सरकार कोरोना की आड़ में जनता की आवाज को दबाना चाहती है।
उसने इससे पहले नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी के मुद्दे को कुचलने के लिए इस तरह का हथकंडा अपना चुकी है। बेरोजगारी जैसे आंदोलन को भी कोरोना की आड़ में दबा दिया गया।
अब सरकार किसानों की आवाज भी दबा सकती है और एक फिर कोरोना का हवाला देकर इस आंदोलन खत्म कराने के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है।
पूजा शुक्ला ने कहा कि बीजेपी का जहां पर फायदा है वहां कोई कोरोना नहीं होता है। इतना ही नहीं कोरोना के नियमों का पालन नहीं किया जाता है।
ऐसे में सरकार केवल जनता की आवाज दबाना चाहती है जबकि सच्चाई यहीं कि जनता ने ही आपको चुना है और आपका फर्ज है कि आप उसकी बात सुने।
दूसरी ओर सरकार इस आंदोलन को खत्म कराने के लिए सरकार ने कई जतन किया है। इसके साथ ही किसानों के साथ पांच बार मुलाकात हुई लेकिन नतीजा जीरो रहा है। किसान अपनी बात पर अड़े हुए है और आंदोलन खत्म नहीं करेगी।
हालांकि आंदोलन को साजिश के तहत खत्म करने की कवायत तेज हो गई है। किसान आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ तक बता डाला है। इतना ही नहीं बीजेपी के कुछ नेता खुलेआम इस आंदोलन को चीन और पाकिस्तान से जोड़कर देख रहे हैं।
कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दो हफ्ते से किसानों का आंदोलन जारी है लेकिन शुक्रवार को इस आंदोलन में उस समय विवाद देखने को मिला जब ब भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) ने अपने स्टेज पर एक कार्यक्रम किया और इसमें उमर खालिद, शरजील इमाम, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और आनंद तेलतुंबडे जैसे एक्टिविस्ट के पोस्टर-बैनर नजर आए।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने टिकरी बॉर्डर पर शरजील इमाम के पोस्टर का मसला उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि एमएसपी, एएमपीसी और अन्य मुद्दे किसानों से संबंधित हैं, लेकिन ये पोस्टर किसान का मुद्दा कैसे हो सकते हैं।
यह खतरनाक है और यूनियनों को इससे खुद को दूर रखना चाहिए। यह सिर्फ मुद्दों को हटाने और विचलित करने के लिए है। इससे एक बात साफ हो गई कि आंदोलन को कमजोर करने के लिए कुछ लोग इस तरह की हरकत कर सकते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर अब चर्चा हो रही है क्या कोरोना की आड़ में किसानों के आंदोलन का खत्म करा दिया जाएगा।