Saturday - 2 November 2024 - 4:49 PM

पूर्व जजों ने सुप्रीम कोर्ट की क्यों की आलोचना

न्यूज डेस्क

असम में एनआरसी मुद्दे से निपटने में सुप्रीम कोर्ट के तरीके की आलोचना हो रही है। यह आलोचना सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के पूर्व जजों के साथ नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के समूह ने की है।

मालूम हो कि असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी हुई जिसमें 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया। हालांकि असम सरकार ने दावा किया था कि कई वास्तविक भारतीय एनआरसी की अंतिम सूची से छूट गए हैं लेकिन उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि उनके पास विदेशी न्यायाधिकरण (एफटी) में अपील करने का विकल्प उपलब्ध है। वहीं विदेश मंत्रालय ने भी कहा था कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की अंतिम सूची से बाहर रह गए लोग ‘राष्ट्रविहीन नहीं हैं’।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार शीर्ष न्यायालय के पूर्व जजों मदन बी. लोकुर, कुरियन जोसेफ और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह सहित नागरिकों के निर्णायक मंडल ने असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) मुद्दे से निपटने में शीर्ष अदालत के तरीके की सख्त आलोचना की।

जजों क जूरी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के जिस फैसले ने एनआरसी प्रक्रिया को शुरू किया वह असत्यापित और अप्रमाणित डाटा पर आधारित था, जिसके अनुसार बाहरी आक्रोश के कारण भारत में प्रवासन हो रहा है। यही कारण था कि अदालत ने प्रवासियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया और उनके स्वतंत्रता एवं सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन किया।

जूरी ने कहा कि, ‘इतने बड़े पैमाने पर चलाए गए अभियान के बावजूद न्यायपालिका की समय सीमा तय करने की जिद ने प्रक्रिया और इसमें शामिल लोगों दोनों पर दबाव बढ़ा दिया।’

जूरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जब कोर्ट इस तरह की प्रक्रियाओं का ‘कार्यभार’  संभालती है, तो गलतियों को ठीक करने में समस्या आती है।

गौरतलब है कि पीपुल्स ट्रिब्यूनल जनसुनवाई की एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें संवैधानिक प्रक्रियाओं और मानवाधिकारों पर सुनवाई के लिए नागरिक समाज के लोगों को जूरी में शामिल किया जाता है।

इस पीपुल्स ट्रिब्यूनल का आयोजन नागरिक समाज के समूहों ने शनिवार और रविवार को किया था। जूरी ने असम के लोगों की व्यक्तिगत गवाही और कानूनी विशेषज्ञों को सुना जिन्होंने एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया में भाग लिया था। इसमें अधिवक्ता अमन वदूद, गौतम भाटिया, वृंदा ग्रोवर और मिहिर देसाई शामिल थे।

जूरी ने जोर देकर कहा कि नागरिकता अधिकारों के होने का अधिकार है और यह आधुनिक समाज में सबसे बुनियादी, मौलिक मानवाधिकारों में से एक है।

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जस्टिस लोकुर, जस्टिस जोसेफ और जस्टिस शाह के अलावा, ट्रिब्यूनल जूरी में नाल्सार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के कुलपति प्रो. फैजान मुस्तफा, योजना आयोग के पूर्व सदस्य सैयदा हामिद, बांग्लादेश में पूर्व राजदूत, देब मुखर्जी, इंडियन राइटर्स फोरम की संस्थापक-सदस्य गीता हरिहरन और जामिया मिलिया इस्लामिया में सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज एंड पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष प्रोफेसर मोनिरुल हुसैन शामिल थे।

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