जुबिली न्यूज डेस्क
यूपी में भारत जोड़ो यात्रा में उमड़ा जनसैलाब जहां चर्चा में है, वहीं इससे विपक्ष की दूरी के भी खास मायने हैं। यही वजह है कि अखिलेश यादव, मायावती और जयंत चौधरी ने अपनी शुभकामनाएं तो दीं पर यात्रा का हिस्सा नहीं बने। ओमप्रकाश राजभर ने भी दूरी बनाए रखना ही उचित समझा।
जिस तरह से श्रीराममंदिर तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय ने भी राहुल की यात्रा की प्रशंसा की, उससे समझा जा सकता है कि सत्ता पक्ष भी इसे हल्के में नहीं ले रहा है। वहीं भाजपा ने जमकर हमला बोला है, भाजपा नेता ने कहा कि यूपी का इतिहास बताता है कि यहां सपा, बसपा या अन्य क्षेत्रीय दल कांग्रेस के पैर पर पैर रखकर ही आगे बढ़े हैं। जहां कांग्रेस इसे हमेशा मन में रखती है, वहीं विपक्षी दलों के रणनीतिकार भी यह अच्छी तरह से समझते – बूझते हैं। विपक्षी दल उस अंतरविरोध को भलीभांति समझते हैं, जिसमें भाजपा को परास्त करने के लिए एकता जरूरी है, पर उस कीमत पर नहीं कि खुद के वजूद के लिए ही खतरा पैदा हो जाए।
कांग्रेस ने मुलायम सरकार को बचाया
बता दे कि 1990 में कांग्रेस ने जनता दल के टूटने के बाद अल्पमत में आई मुलायम सरकार को बचाया था और कांग्रेस के रणनीतिकार आज तक इसे अपनी पार्टी की भूल मानते हैं। उनका कहना है कि अगर उस वक्त मुलायम सरकार न बचती तो जनता के बीच स्पष्ट संदेश जाता कि क्षेत्रीय दल स्थायी सरकार नहीं दे सकते। कांग्रेस के साथ ने जहां इनकी जमीन तैयार की, वहीं उसके खुद के लिए इसने खाई का काम किया। उसके बाद हुए चुनावों में तो सपा या बसपा तो बढ़ते गए, पर कांग्रेस का ग्राफ नीचे आता गया। कुछ और छोटे दल भी यहां अपनी जगह दिखाने लायक जगह बनाने में सफल रहे।
अंतरविरोध में उलझी बीजेपी
इस अंतरविरोध पर दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. लक्ष्मण यादव कहते हैं कि आज का मतदाता मुख्य रूप से दो हिस्सों में बंटा है। वह या तो भाजपा के पक्ष में है या विपक्ष में। जो भाजपा के विपक्ष में हैं, उनका बड़ा हिस्सा सपा, कांग्रेस, रालोद या बसपा जैसे दलों की ओर ही जाएगा। मतलब साफ है कि कांग्रेस का शेयर बढ़ेगा तो उनका घटेगा।
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सत्ता पाने के लिए साथ आना जरूरी है, लेकिन भविष्य में कोई संकट न पैदा हो, यह देखना भी जरूरी है। अब इस अंतरविरोध का कैसे समाधान होता है। होता भी है या नहीं, यह तो भविष्य मेंं ही सामने आएगा।
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