उत्कर्ष सिन्हा
भारतीय राजनीति के वन मैन आर्मी कहे जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी फिलहाल नरेंद्र मोदी से बुरी तरह ख़फ़ा नजर आ रहे हैं। स्वामी फिलहाल राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी के सांसद है , लेकिन स्वामी को समझने वाले ये भी जानते हैं कि स्वामी किसी के दबाव में कभी नहीं आते।
सुब्रमण्यम स्वामी के खफा होने की वजह साफ़ दिखाई देती है। उनका कहना है की सरकार और मोदी उनकी बात नहीं सुन रहे। स्वामी को इस बात का भी मलाल है कि उनकी योग्यता को पार्टी में तवज्जो नहीं दी जा रही जबकि दुनिया के दूसरे देश उन्हें अपने यहाँ लेक्चर देने के लिए बुलाते रहे हैं।
29 जून को अपने एक ट्वीट में सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा,”चीन की प्रसिद्ध सिंघुआ यूनिवर्सिटी ने सितंबर में मुझे स्कॉलर्स की सभा में बोलने के लिए बुलाया है. विषय है- चीन का आर्थिक विकास-70 वर्षों की समीक्षा. चूंकि नमो मेरे विचारों को जानना नहीं चाहते, तो मैं चीन जा सकता हूं.”
स्वामी ने इस ट्वीट में अपनी नाराजगी सीधे तौर पर पीएम मोदी से जता दी है।
स्वामी ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की डिग्री ली है और उन्हें एक प्रखर अर्थशास्त्री माना जाता है , पिछली सरकार में वे वित्त मंत्री अरुण जेटली की तमाम नीतियों की आलोचना करते नजर आये थे।
यह भी पढे : अचानक मुसलमानों के हितैषी क्यों दिखने लगे हैं मोदी ?
स्वामी अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए हमेशा आवाज बुलंद करते रहे हैं और वे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता भी रहे हैं। राम मंदिर के लिए अपनी प्रतिबद्धता के कारण ही वे भाजपा में शामिल भी हुए।
सुब्रमण्यम स्वामी का राजनीतिक इतिहास भी बहुत दिलचस्प है और माना जाता है कि उनके सूचना स्त्रोत बहुत मजबूत है। इंदिरा गाँधी की नीतियों की आलोचना करने के वजह से उन्हें आईआई टी से बर्खास्त कर दिया गया था। उसके बाद स्वामी जनसघ से राज्य सभा पहुँच गए और फिर जब जय प्रकाश नारायण ने आपातकाल के विरोध में जनता पार्टी बनाई तो स्वामी उनके सबसे करीबी थे।
कहा तो ये भी जाता है कि स्वामी जिस नेता से खफा हो गए उसे ही सत्ता से बाहर करके दम लिया। तमिलनाडु की राजनीति में सबसे पहले उन्होंने जयललिता के खिलाफ मोर्चा खोला और उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक भेजवाया। लेकिन उसके बाद जब वे जयललिता के साथ आये तो उनके विरोधी करूणानिधि के परिवार के खिलाफ स्वामी ने ऐसी पेशबंदी कर दे कि करूणानिधि तो सत्ता से बाहर गए ही साथ ही उनके भांजो कलानिधि और दयानिधि मारन का राजनीतिक भविष्य की ख़राब हो गया और करूणानिधि की बेटी कनिमोझी को जेल जाना पड़ा।
अब स्वामी मोदी से नाराज हैं। केंद्र की सरकारों में मंत्री रख चुके स्वामी को नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों में मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली और न की सरकार ने उनके अर्थशास्त्रीय ज्ञान के अनुरूप कोई जिम्मेदारी दी।
बीते मोदी सरकार में स्वामी ने गाँधी परिवार के खिलाफ कई मोर्चे खोल दिए थे। रावर्त वाड्रा के जमीन घोटाले से ले कर नेशनल हेराल्ड तक के मामले स्वामी ने ही उठाये जिसकी वजह से गाँधी परिवार असहज हुआ।
यह भी पढे : क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कांग्रेस की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है!
अब देखना ये है कि किसी के दबाव में न आने वाली मोदी और अमित शाह की जोड़ी सुब्रमण्यम स्वामी से कैसे निपटती है। एक तरफ जहाँ स्वामी किसी की भी बेख़ौफ़ आलोचना करने वाले नेता है तो दूसरी तरफ अमित शाह आलोचको को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते। ऐसे में दक्षिण की राजनीति में पेअर ज़माने की कोशिश में लगी भाजपा को इस दक्षिण भारतीय नेता की नाराजगी भारी भी पड़ सकती है।