न्यूज डेस्क
पिछले महीने की पांच तारीख को जब केन्द्रीय गृहमंत्री ने राज्यसभा के पटल पर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने का बिल रखा था तो खूब हंगामा बरपा। पूरे देश में अनुच्छेद 370 की चर्चा हो रही थी साथ अनुच्छेद 371 की भी चर्चा हो रही थी। उस समय कई लोगों ने सवाल उठाया था कि क्या सरकार देश के उत्तर-पूर्व के राज्यों से धारा 37 खत्म करेगी?
फिलहाल इस सवाल का जवाब गृहमंत्री अमित शाह ने दे दिया है। रविवार को उन्होंने स्पष्ट किया कि आर्टिकल 371 के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जायेगी।
दरअसल शाह का यह बयान उस अफवाह पर विराम लगाम लगाने की कोशिश है जिसमें कहा जा रहा था कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद सरकार उत्तर-पूर्व में भी आर्टिकल 371 को खत्म करने को लेकर भी विचार कर रही है।
भले ही अमित शाह ने इन अटकलों पर विराम लगा दिया है, लेकिन लोगों में आर्टिकल 371 को लेकर एक बार फिर दिलचस्पी पैदा हो गई है।
क्या है अनुच्छेद 371
अब भले ही एक देश और दो संविधान नहीं रह गए हैं, मगर धारा 371 जैसा कानून अब भी मौजूद है। इसके भीतर एक नहीं बल्कि अनेक व्यवस्थाएं हैं। आलम यह है कि किसी राज्य के लोग इस अनुच्छेद को वरदान मानते हैं तो वहीं दूसरे राज्य के लोग उसे अभिशाप मानते हैं।
देश के करीब 11 राज्यों में ऐसी ही धारा लागू है जो केंद्र सरकार को विशेष ताकत देती है। अनुच्छेद 371 की बदौलत केंद्र सरकार उस राज्य में विकास, सुरक्षा, सरंक्षा आदि से संबंधित काम कर सकती है।
महाराष्ट्र/ गुजरात : आर्टिकल 371
महाराष्ट्र और गुजरात, इन दोनों राज्यों के राज्यपाल को आर्टिकल-371 के तहत ये विशेष जिम्मेदारी है कि वे महाराष्ट्र के विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ के अलग विकास बोर्ड बना सकते हैं। इन क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए बराबर फंड दिया जाएगा। राज्यपाल टेक्निकल एजुकेशन, वोकेशनल ट्रेनिंग और रोजगार के लिए उपयुक्त कार्यक्रम की विशेष व्यवस्था कर सकते हैं।
नगालैंड – आर्टिकल 371ए
नागालैंड, नाम से ही पता चलता है कि यह किसी खास वर्ग के लोगों के लिए है। नगा जनजाति के लोगों के लिए 1963 में नया प्रदेश नागालैंड बनाया गया। इसके बनने के साथ ही इसे संविधान की ओर से विशेष अधिकार के रूप में अनुच्छेद 371-ए का प्रावधान मिला था। यह आर्टिकल नगा जनजाति के लोगों को सुरक्षित और उनके हितों को बचाए रखने के लिए लगाई गई थी।
जमीन के मालिकाना हक को लेकर नगा समुदाय के पारंपरिक प्रथाओं, शासकीय, नागरिक और आपराधिक न्याय संबंधी नियमों को संसद बदल नहीं सकता। केंद्र सरकार इस पर तभी फैसला ले सकती है जब राज्य की विधानसभा कोई संकल्प या कानून न लेकर आए। ये कानून तब बनाया गया जब भारत सरकार और नगा लोगों के बीच 1960 में 16 बिंदुओं पर समझौता हुआ।
असम-मेघालय : आर्टिकल 371बी
असम को अनुच्छेद 371 बी के अनुसार विशेष प्रावधान है। इसी के जरिए ही अलग से मिजोरम का गठन किया गया है। इन राज्यों में भी राष्ट्रपति राज्य के आदिवासी इलाकों से चुनकर आए विधानसभा के प्रतिनिधियों की एक कमेटी बना सकते हैं। यह कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की विवेचना करके राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौपेंगे।
मणिपुर: आर्टिकल 371 सी
मणिपुर को 1972 में बनाया गया। मणिपुर को विशेष प्रावधान देने के लिए अनुच्छेद 371 सी लाया गया। इस राज्य के लिए राष्ट्रपति चाहे तो राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी देकर चुने गए प्रतिनिधियों की कमेटी बनवा सकते हैं। ये कमेटी राज्य के विकास संबंधी कार्यों की निगरानी करेगी। सालाना इसकी रिपोर्ट राज्यपाल राष्ट्रपति को सौंपते हैं।
आंध्र प्रदेश-तेलांगाना : आर्टिकल 371डी
इन राज्यों के लिए राष्ट्रपति के पास अधिकार होता है कि वह राज्य सरकार को आदेश दे कि किस जॉब में किस वर्ग के लोगों को नौकरी दी जा सकती है। इसी के साथ शिक्षण संस्थानों में राज्य के लोगों को आरक्षण दिया जाता है। राष्टï्रपति नागरिक सेवाओं से जुड़े पदों पर नियुक्ति से संबंधित मामलों को निपटाने के लिए हाईकोर्ट से अलग ट्रिब्यूनल बना सकते हैं।
सिक्किम : आर्टिकल 371एफ
सबसे आखिर में 1975 में सिक्किम भारतीय संघ में शामिल हुआ। इसी के साथ अनुच्छेद 371 के तहत राज्य सरकार को पूरे राज्य की जमीन का अधिकार दिया गया है, चाहे वह जमीन भारत में विलय से पहले किसी की निजी जमीन ही क्यों ना हो। सिक्किम की विधानसभा का कार्यकाल चार साल का है, जो इसी प्रावधान के तहत हैं।
मिजोरम : आर्टिकल 371 जी
मिजोरम में भी अनुच्छेद 371 जी प्रभावी है। इस अनुच्छेद के मुताबिक, मिजोरम में सिर्फ वहां के आदिवासी ही जमीन के मालिक होंगे। बता दें कि यहां प्राइवेट सेक्टर उद्योग करने के जमीन ले सकता है, लेकिन वो सिर्फ राज्य सरकार मिजोरम (भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनसर्थापन) एक्ट 2016 के तहत ऐसा कर सकते हैं।
अरुणाचल प्रदेश: आर्टिकल 371एच
अरूणाचल प्रदेश में आर्टिकल 371 एच प्रभावी है। इसके तहत राज्यपाल को राज्य के कानून और सुरक्षा को लेकर विशेष अधिकार मिलते हैं। वह मंत्रियों के परिषद से चर्चा करके अपने फैसले को लागू करा सकते हैं, लेकिन इस चर्चा के दौरान मंत्रियों का परिषद राज्यपाल के फैसले पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। राज्यपाल का फैसला ही अंतिम फैसला होगा।
कर्नाटक : आर्टिकल 371 जे
अनुच्छेद 371 जे के तहत हैदराबाद और कर्नाटक क्षेत्र में अलग विकास बोर्ड बनाने का प्रावधान है। इनकी सालाना रिपोर्ट विधान सभा में पेश की जाती है। बताए गए क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए अलग से फंड मिलता है लेकिन बराबर हिस्सों में। इस क्षेत्र के लोगों को सरकारी नौकरियों में बराबर हिस्सेदारी मिलती है। इसके तहत राज्य सरकार के शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में हैदराबाद और कर्नाटक में जन्मे लोगों को तय सीमा के तहत आरक्षण भी मिलता है।
शाह क्यों नहीं हटाएंगे अनुच्छेद 371
गृहमंत्री अमित शाह रविवार को गुवाहाटी में आयोजित पूर्वोत्तर परिषद की बैठक में कहा कि-जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने की आलोचना हो रही है। लोकतंत्र में ऐसा करने का सबको हक है। लेकिन इससे अनुच्छेद 371 को भी जोड़ा जा रहा है और पूर्वोत्तर के राज्यों के नागरिकों को भ्रमित किया जा रहा है। लोगों को पता होना चाहिए कि अनुच्छेद 370 और 371 में बहुत अंतर है।
शाह ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 स्पष्ट रूप से अस्थायी था और अनुच्छेद 371 में पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए विशेष प्रावाधान की व्यवस्था की गई है। मैंने संसद में भी इसे लेकर स्पष्ट कर दिया था। मैं मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी में एक बार फिर से आश्वस्त करना चाहता हूं कि 371 को कभी टच नहीं किया जाएगा।’
गौरतलब है कि अमित शाह पूर्वोत्तर परिषद के चेयरमैन भी हैं। रविवार को हुई परिषद की बैठक में पूर्वोत्तर के आठ राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री शामिल हुए थे।