Saturday - 2 November 2024 - 5:00 PM

क्या बचेगी इमरान की कुर्सी ? या फिर इतिहास दोहराएगा पाकिस्तान ?

न्यूज डेस्क

भारत से लड़ने के मूड में आए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री  इमरान खान  फिलहाल अपने ही मुल्क की लड़ाई में उलझ गए हैं । उनकी राजधानी में लाखों लोग जुटे हैं और “गो सेलेक्टर गो ” के नारे लगा रहे हैं ।

भीड़ का चेहरा भले ही मौलाना फजलुर रहमान दिखाई दे रहे हों मगर उनके साथ पाकिस्तान का पूरा विपक्ष है । इमरान इस भीड़ को “सियासी यतीमों की जमात” बताने में लगे हैं और विपक्ष इमरान को  एक ऐसा बेईमान पीएम कह रहा है जिसने मुल्क को गरीबी और कर्जे में धकेल दिया है और जिसके पीछे आवाम की ताकत नहीं बल्कि फौज की ताकत है ।

आवाम मार्च ने इमरान को गद्दी छोड़ने की जो मोहलत दी वो भी अब खत्म होने की कगार पर है । अब तकरीबन ये तय हो चल है कि सुलह की गुंजाईश नहीं बची और मामला आर पार ही होगा ।

अब इमरान खान इस पूरे मामले को भारत से जोड़ने के अपने पुराने पैंतरे पर आ गए हैं । उन्होंने कहा – मौलाना असल में भारत की मदद कर रहे हैं ।

तो क्या पाकिस्तान में एक बार फिर वही हालात बन चुके हैं जो हमेशा से पाकिस्तान को फौजी हाथों में जाने की वजह बनती रही है । मुशर्रफ के बाद पाकिस्तान में लोकतंत्र लौट तो जरूर मगर उसकी जड़े नहीं जम सकी । करीब डेढ़ साल पहले हुए आम चुनावों में इमरान की जीत हुई मगर विपक्ष ने इसे फौज की करतूत माना ।

आर्थिक मोर्चे पर बदहाली इमरान को विरासत में मिली थी मगर विदेशी कूटनीति के मामले में इमरान ऐसा उलझे कि वे इसे पटरी पर नहीं ला सके । आम आवाम के इस गुस्से का फायदा बिखरे विपक्ष को मिला ।

फिलहाल पाकिस्तान में ऊथल-पुथल का माहौल है। पाक प्रधानमंत्री इमरान खान अपने देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अलग-थलग पड़ गए हैं।

फिलहाल इमरान खान के इस्तीफे के लिए दी गई समयसीमा रविवार रात समाप्त हो गई, जिस पर जमीयत उलेमा ए इस्लाम फजल (जेयूआई-एफ) के प्रमुख रहमान ने इस्लामाबाद में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि उद्देश्य पूरा होने तक प्रदर्शन जारी रहेगा।

मीडिया रिपोटर््स के अनुसार रहमान ने कहा कि ‘ये साफ है कि शासक (इमरान खान) को जाना होगा और लोगों को निष्पक्ष चुनाव के जरिए नया शासक चुनने का मौका देना होगा। इससे अलावा और कोई विकल्प नहीं है।’

गौरतलब है कि प्रमुख धर्मगुरु रहमान ने पीएम खान पर इस्तीफे का दबाव बनाने के लिए पिछले हफ्ते इस्लामाबाद तक अपने समर्थकों के ‘आजादी मार्च’ का नेतृत्व किया था।

रहमान का दावा है कि 2018 में हुए चुनाव में धांधली हुई थी और पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना ने इमरान खान को समर्थन दिया था। हालांकि सेना ने इन आरोपों से इनकार किया है। उधर, इमरान खान ने कहा है कि उनकी इस्तीफा देने की कोई योजना नहीं है.

मौलाना का कहना है कि “पाकिस्तानी गोर्बाचौफ़ अपनी नाकामी को स्वीकार करके कुर्सी छोड़ दे। मीडिया से पाबंदी नहीं हटाई तो हम भी किसी पाबंदी के पाबंद नहीं होंगे।”

पाकिस्तान एक बार फिर उसी दोराहे पर खड़ा है जहां इसका इतिहास रहा है । फिलहाल दुनिया की नजर पाकिस्तान पर इसलिए भी है कि क्या इस बार कोई नया रास्ता निकलेगा ?

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