राजीव ओझा
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार जल्द ही ट्रस्ट बनाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए तीन महीने का समय दिया है। उसमें जिन संगठनों को रखा जाएगा, उसी के माध्यम से मंदिर निर्माण की शुरुआत होगी। ट्रस्ट में स्थान पाने के प्रयास में साधु-संत व्याकुल हो गए हैं। इस बीच विश्व हिंदू परिषद ने लोगों को सावधान किया है कि मंदिर निर्माण के नाम पर किसी तरह का चंदा न दें और अगर कोई धन की मांग करे तो तुरंत सूचित करें। मंगलवार को सोशल मीडिया पर जनहित में पुनः सूचना विहिप की तरफ से जारी की गई है।
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने निष्पक्ष और संतुलित फैसले को जनता ने इसे खुले मन से स्वीकार किया। लेकिन उन लोगों को यह फैसला पच नहीं रहा जो अयोध्या विवाद पर अब तक अपनी राजनितिक करते आये थे। इसमें मुस्लिम पक्ष भी है और हिन्दू पक्ष भी। एक तरफ साधु-संत मंदिर निर्माण ट्रस्ट में प्रतिनिधित्व चाहते हैं तो दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष भी रिव्यू पेटीशन पर एकमत नहीं है।
राम मंदिर में भागीदारी की होड़
राम मंदिर ट्रस्ट के लिए नाम केंद्र सरकार तय करेगी। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास पहले ही राम मंदिर ट्रस्ट में अपनी भागीदारी का दावा प्रस्तुत कर चुके हैं। अब निर्मोही अखाडा भी चाहता है कि ट्रस्ट में उसे भी शामिल किया जाये।
अयोध्या के साधु-संत और अखाड़े फैसले केबाद ट्रस्ट में स्थान पाने के लिए ताल ठोके हुए हैं। वृन्दावन के संतों-महंतों का कहना है कि राम मंदिर ट्रस्ट में वृन्दावन के उन संतों को ही स्थान मिले जिन्होंने राम जन्मभूमि आन्दोलन में भाग लिया था। इधर अयोध्या में तपस्वीजी की छावनी के महंत पद से निष्कासित पूर्व महंत परमहंस दास ने श्रीराम जन्मभूमि न्यास के मीडिया के सामने अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास पर अत्यंत गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें कैकई तक कह डाला।
उन्होंने छोटी छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमलनयन दास को मंथरा कहा। परमहंस दास का आरोप है कि इनके गुरु सर्वेश्वर दासजी ने नेक संत और पूज्य हैं लेकिन इस समय दशरथ की स्थिति में हैं और दबाव में आकर मुझे महंत पद से हटा दिया। परमहंस दास ने आरोप लगाया की जब रामचन्द्र परमहंस जीवित थे तब महंत नृत्यगोपाल दास, रामचन्द्र परमहंस का विरोध करते थे और अब मेरे पीछे पड़े हैं। उनका आरोप है कि महंत नृत्यगोपाल दास के पास पैसा और बहुबल दोनों है। वह अच्छे संतों को आगे नहीं बढने देना चाहते।
ओवैसी और जिलानी अब रिव्यू पेटीशन दायर करेंगे
राम जन्मभूमि विवाद ख़त्म हो गया लेकिन राजनीति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। रिव्यू पेटीशन हो या न हो, इस पर भी राजनीति हो रही। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कह है कि बाबरी मस्जिद के बदले दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन नहीं चाहिए। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द भी जिलानी जैसी ही राय रखता। हालांकि इनके महासचिव मौलाना महमूद मदनी लखनऊ की बैठक में काफी पहले ही बिना कुछ बोले ही निकल गए। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी भी इस बैठक में शामिल थे।
ओवैसी ने सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई थी। ओवैसी और जिलानी फैसले के पहले तक लगातार कह रहे थे कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा, उन्हें मंजूर होगा। लेकिन अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला समझ नहीं आ रहा। उन्हें लग रहा की अगर विरोध नहीं करेंगे तो उनकी राजनीति ठंडी पड जाएगी।
मुस्लिम कारसेवक मंच आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रिव्यू पेटीशन के फैसले का विरोध कर रहा है। तंजीम उलमा इस्लाम का भी कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अब राजनीति कर रहा है। जफरयाब जिलानी एक माह के भीतर पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे। दूसरी तरफ मुख्य पक्षकार इकबाल अंसारी और सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका के पक्ष में नहीं। सुन्नी वक्फ बोर्ड 26 की बैठक में चर्चा करेगा की 5 एकड़ जमीन लेगा या नहीं। वैसे पुनर्विचार याचिका दायर करना संविधान सम्मत है लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेन्द्र गिरि ने तो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कदम को देशद्रोह तक बता दिया है। सब मौका देख अपनी राजनीती चटकाने में जुट गए हैं। इसमें मुस्लिम पक्ष के लोग भी पीछे नहीं हैं। अब अयोध्या में रामजन्म भूमि पर कोई विवाद नहीं। अब बस राजनीति हो रही है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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