जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सपा और प्रसपा जरूर अलग-अलग पार्टी है लेकिन दोनों पहले समाजवादी विचार धारा से जुड़े हैं। अखिलेश सत्ता में दोबारा मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं लेकिन सपा को मालूम है कि ऐसा तभी होगा जब पूरा सपा कुनबा एक हो और मजबूती से चुनाव में उतरे। हालांकि अखिलेश यादव ने पिछले चुनाव से सबक लेते हुए किसी भी बड़े दल के साथ मिलकर चुनाव नहीं लडऩे का फैसला किया है।
उन्होंने बीते चुनावों में गठबंधन की हालत का हवाला देते हुए कहा कि राजनीति में कई बार सीखने को बहुत कुछ मिलता है। अखिलेश छोटे दलों को लेकर इशारा किया था और कहा था कि छोटे दलों के साथ गठबंधन किया जा सकता है।
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हालांकि चाचा शिवपाल यादव के साथ आने के सवाल पर अखिलेश ने दो टूक कहा था कि उनकी पार्टी से जसवंतनगर सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा। दूसरी ओर शिवपाल यादव का सपा प्रेम कम होने का नाम नहीं ले रहा है। शिवपाल अक्सर सपा के साथ जाने की बात इशारों में करते हैं।
उन्होंने तीन दिन पहले ही बड़ा बयान दिया और कहा कि वे चाहते हैं कि 2022 के चुनाव तक सभी समाजवादी एक साथ हों। शिवपाल यादव ने पूर्व सीएम अखिलेश यादव का नाम लिए बिना ही इशारों में कहा कि वे हमेशा से सपाइयों को एकजुट रखने का प्रयास करते रहे हैं। वे चाहते हैं कि एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव से सभी समाजवादी एक मंच पर दिखें।
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इसके लिए वे हर कुर्बानी देने का तैयार हैं। हालांकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे अपनी पार्टी को मजबूत करेंगे और जनता के फैसले का स्वागत करते हुए उम्मीदवारों को मैदान में उतारेंगे। हालांकि शिवपाल के इस बयान पर अभी तक सपा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
उधर उत्तर प्रदेश में बीजेपी सत्ता में दोबारा लौटने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगी। इतना ही नहीं मायावती भी दोबारा सक्रिय नजर आ रही है। दूसरी ओर कांग्रेस में भी प्रियंका गांधी के आने से नई जान आ गई और यूपी में दोबारा जिंदा होती नजर आ रही है।
ऐसे में सपा का कुनबा चुनाव में एक साथ मजबूती से उतरता है तो अखिलेश के लिए आगे की राह आसान हो सकती है लेकिन शिवपाल का क्या रोल होगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।