न्यूज डेस्क
शरणार्थियों की पीड़ा वही समझ सकता है जिसने उन परेशानियों को झेला हो। शरणार्थियों को एक टीस हमेशा सालती है कि जिस देश में वर्षों से रह रहे हैं वहां उनसे गैरों की तरह व्यवहार किया जाता है। फिलहाल पश्चिमी पाकिस्तान के करीब सवा लाख शरणार्थियों को इस टीस से मुक्ति मिलने वाली है कि वह गैर हैं।
जम्मू-कश्मीर से जब धारा 370 निष्प्रभावी किया गया था तो ये लोग बहुत खुश हुए थे, लेकिन गुरुवार को ये लोग खुशी से झूम उठे। जम्मू-कश्मीर के लिए गुरुवार का दिन ऐतिहासिक था। 31 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) बनते ही स्टेट सब्जेक्ट की व्यवस्था भी खत्म हो गई। ऐसे में इन परिवारों को मतदान, शिक्षा संस्थानों में दाखिले, राज्य सरकार की योजनाओं के लाभ आदि मिलने की उम्मीद जगी है।
पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों के नेता लब्बाराम गांधी के मुताबिक, यहां शरणार्थियों के करीब बीस हजार परिवार हैं और इनकी आबादी सवा लाख है। ये लोग सीमावर्ती इलाके में बसे हुए हैं।
कठुआ के कीडिय़ां गंडियाल से लेकर अखनूर के पलांवाला सेक्टर में गुजर बसर कर रहे परिवारों की पहली बार सुध ली गई है।
गांधी ने कहा कि हम लोगों को विधानसभा चुनावों में मतदान का अधिकार नहीं था। यहां संपत्ति खरीदने व सरकारी नौकरी के अधिकार भी नहीं थे। अब उन्हें उम्मीद है कि सरकार उन्हें भी पाकिस्तान अधिकृत जम्मू कश्मीर के शरणार्थियों की तर्ज पर प्रति परिवार साढ़े पांच लाख की मुआवजा राशि भी मुहैया करवाएगी।
वहीं गृह मंत्रालय की अधिसूचना में स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र (स्टेट सब्जेक्ट) के रद्द होने के साथ जम्मू जिले में स्टेट सब्जेक्ट की करीब पांच सौ फाइलें खारिज हो जाएंगी। जिला प्रशासनिक कार्यालय में अलग-अलग अधिकारियों को क्षेत्र के हिसाब से स्टेट सब्जेक्ट देने का काम बांटा गया था। लेकिन, जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के साथ नई व्यवस्थाओं से स्टेट सब्जेक्ट प्रक्रिया खत्म हो गई है।
वहीं अब दूसरे राज्यों की तर्ज पर यहां डोमिसाइल व्यवस्था की मांग उठने लगी है। इसमें एक दशक से अधिक समय तक रहने वाला नागरिक स्थायी नागरिकता का हकदार बन जाता है।
हाल ही में मंडलायुक्त प्रशासन की ओर से एक आदेश में पुलिस में भर्तियों के लिए उम्मीदवारों को स्टेट सब्जेक्ट जारी करने की व्यवस्था की गई थी, लेकिन नई व्यवस्था से स्टेट सब्जेक्ट को खत्म कर दिया गया है।
जिला प्रशासनिक अधिकारियों के अनुसार अभी कोई नया एसआरओ जारी नहीं हुआ है, लेकिन डोमिसाइल व्यवस्था को शुरू किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में 15 वर्ष तक रहने वाले को स्थायी नागरिकता का अधिकार मिल जाता है। इसी तरह महाराष्ट्र में 13 साल रहने वाले को स्थायी नागरिकता का अधिकार मिलता है।
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से गोरखा और वाल्मीकि समाज को भी उम्मीद जगी है। जम्मू-कश्मीर में कई सालों से रहने के बावजूद ये समाज नागरिकता, सरकारी नौकरी, उच्च शिक्षा सहित कई अधिकारों से वंचित है। इन लोगों का कहना है कि आजादी के बाद पहली बार उन्हें उनके अधिकार मिलेंगे।
वाल्मीकि समाज के करतार सिंह के मुताबिक 1952 और 1993 में हमारे पूर्वज पंजाब से जम्मू-कश्मीर आए थे। उस समय तो हमें कहा गया था कि हमें सभी नागरिकता अधिकार मिलेंगे, लेकिन कुछ नहीं मिला। सिंह ने कहा, अभी तक तो हमें झाडू मारने वाले तक सीमित रखा गया है। हमारे बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिलती। बुआ सिंह कहते हैं, बेटे को नौकरी मिली थी, लेकिन स्टेट सब्जेक्ट नहीं होने से नियुक्ति नहीं हो पाई।
बुआ सिंह कहते हैं हमारे बच्चे सेकेंडरी के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए उनके पास जरूरी सरकारी प्रमाणपत्र नहीं होते हैं। अब हमें हमारे अधिकार मिलेंगे। राजू के मुताबिक नगर निगम में सफाई कर्मचारी की नौकरी के अलावा हमारे बच्चों को किसी अन्य विभाग में नौकरी मिलना मुश्किल था, लेकिन अब हमें अपने अधिकार मिलेंगे।
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