उत्कर्ष सिन्हा
सबसे पहले बीते कुछ दिनों की हेडलाइन्स
1 . ईद के दिन मोदी ने दिया मुस्लिम छात्रों को 5 करोड़ स्कालरशिप का तोहफ़ा
2 . नई संसद के पहले सत्र में आया तीन तलाक बिल
3 . मॉब लॉन्चिंग की घटना से प्रधानमंत्री दुःखी
अब संसद में नरेंद्र मोदी के भाषण का यह अंश
“आज संविधान के सामने सर झुका कर जब आपके सामने खड़ा हूं तो आपसे आग्रह करता हूं कि हमें इस छल को विच्छेद करना है. हमें विश्वास जीतना है. जो हमें वोट देते हैं वह भी हमारे हैं और जो घोर विरोधी हैं वह भी हमारे हैं. पंथ के आधार पर, जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिये. हम उनको हैंडओवर करके बैठे रहें यह मंज़ूर नहीं है. हम चुप रहते हैं वह इसी का फायदा उठा रहे हैं और इसलिये हम इस जिम्मेवारी को उठायेंगे.”
अपनी पुरानी छवि के ख़िलाफ़ खड़े होते नरेंद्र मोदी की एक नई तस्वीर उभर रही है। मोदी 2.0 के भीतर खुद की पहचान को बदलने की एक ललक भी दिखाई दे रही है। सबका साथ सबका विकास के पुराने नारे में “सबका विश्वास” का पुछल्ला भी इसी ललक कड़ी है।
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लेकिन ये सब इतना अजीब क्यों लग रहा है ? किसी भी प्रधानमंत्री के लिए यह सारी बाते सामान्य होनी चाहिए लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए इसे सामान्य मानने में इतना संदेह क्यों ? ये सवाल तो है ही।
यह बदलाव नोटिस इसलिए किया जाने लगा है क्यूंकि पिछली मोदी सरकार में जब अचानक मॉब लॉन्चिंग की घटनाएं तेजी से बढ़ी तो प्रधानमंत्री एक रहस्यमयी चुप्पी साधे हुए थे। अख़लाक़ से ले कर पहलू खान तक की हत्याओं पर मोदी ने कभी मुंह नहीं खोला , मगर इस बार तबरेज की ह्त्या के बाद मोदी ने इसे जघन्य कार्य बताया। गुजरात के दंगो के बाद उनके बयान याद कीजिये या फिर उनका वो बयान जिसमे सड़क पर किसी पिल्ले के कुचल कर मरने की बात की थी।
सामान्य तौर पर देखने पर मोदी 1.0 के इस रुख से मोदी 2.0 का रुख अलग दिखाई दे रहा है।
अब भाजपा और आरएसएस के उस रुख को भी समझा जाए जिसके कारण उन्हें मुसलमानो का दुश्मन बताया जाता है। आरएसएस के प्रमुख रहे गोलवलकर ने अपनी किताब में मुसलमानों को भारत में दोयम दर्जे के नागरिकता को स्वीकार करने की सलाह दे थी. बाद मे आरएसएस ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की स्थापना भी कर दी।
ज़रा ये भी सोच कर देखिए मुसलमानो के बच्चो के लिए एक साथ 5 करोड़ स्कालरशिप की घोषणा अगर किसी दूसरे दल की सरकार ने की होती तो क्या भाजपा और संघ परिवार उसे “मुस्लिम तुष्टिकरण” के खांचे में रख कर बवाल नहीं काटता ? मगर मोदी ने इसे “सबका विश्वास” के खांचे में रखने में कामयाबी हासिल कर ली। प्रचंड हिन्दुत्ववादी भी इस पर खामोश ही रहे। कुछ साधू संतो ने जरूर इसका विरोध किया मगर ऐसे विरोध को हवा देने वाला संघ का तंत्र निरपेक्ष हो गया, सो विरोध परवान नहीं चढ़ सका।
तीन तलाक का विरोध करने वाले अब तक अपने विरोध को मजबूत आधार नहीं दे सके हैं। मुस्लिम रहनुमाओं को लगता है कि इसके जरिये पर्सनल लॉ को निशाने पर रखा जा रहा है , मगर वे कठमुल्ले मौलवियों पर रोक लगाने में कामयाब नहीं हो पा रहे और इस कानून के जरिये मुस्लिम महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा खुद को सुरक्षित भी समझने लगा है।
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कट्टर हिंदुत्व और मुस्लिम विरोध पर अपनी राजनीतिक नीव बनाने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रदेश में भी अब मुस्लिमो को भाजपा से जोड़ने की मुहीम तेज हो रही है। यूपी भाजपा मुख्यालय के एक बाहरी कोने चुपचाप पड़ा रहने वाला अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ फिलहाल गुलजार है। फिलहाल 10 लाख मुस्लिमो को सदस्य बनाने का अभियान शुरू हो चुका है। इसके लिए कुछ मुद्दे भी चुने गए हैं। फोकस यहाँ भी मुस्लिम महिलाएं हैं।
यूपी बीजेपी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैदर अब्बास चांद कहते हैं – “बीजेपी मुस्लिमों के लिए कभी अछूत नहीं रही है. हमने इस समुदाय के लोगों को पार्टी से जोड़ा है. बड़ी संख्या में खुद लोग अब हमसे जुड़ रहे हैं. साथ ही और लोगों को जोड़ने का भी निर्णय लिया गया है.”
निशाना साफ़ है – मुस्लिम युवा और मुस्लिम महिलाएं अगर भाजपा से जुड़ने लगते हैं तो भारतीय राजनीती में बड़ा बदलाव आएगा। साफ़ ही मौलवियों का असर भी मुस्लिम वोटो से दरकने लगेगा तो वे भी अपना असर बनाए रखने के लिए भाजपा से करीब होना चाहेंगे।
मोदी की इस छवि बदलने के पीछे एक बड़ी वहज है। अपने शबाब पर आने के बावजूद भाजपा अब भी पूरे भारत में अपने पैर नहीं जमा पाई है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में जहां राजनीतिक लड़ाई उत्तर-बनाम दक्षिण की है वहां मुसलमानों को साथ लाए बिना बीजेपी का विस्तार मुश्किल है।
इसके अलावा अब मोदी अपनी ग्लोबल छवि को भी और बड़ा करने में लगे हैं। मोदी 2.0 का फोकस पश्चिम एशिया होना तय है और ये पूरा इलाका इस्लामिक प्रभुत्व वाला है। इस इलाके में पैर पसारने के की कवायद में सबसे जरूरी चीज है खुद पर मुस्लिम विरोधी होने का ठप्पा हटाना।
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लेकिन मोदी की इस राह में सबसे बड़ा संकट उग्र हिंदुत्ववादी लोगो की एक बड़ी जमात हैं जिन्हे आरएसएस ने बीते 30 सालों में हवा दी है और जिनके जरिये हिन्दू वोटो को एकतरफा बनाया गया है। आरएसएस ने कुछ जेबी संगठनो के जरिये मुसलमानो में अपनी पैठ बनाने की कोशिस जरूर शुरू की है , मगर उसका मूल सिद्धांत ही इस कवायद से मेल नहीं खाता।
एक रिपोर्ट बताती है कि 2014 से अबतक मुस्लिम समाज के 138 लोग मॉब लांचिंग में मारे गये है, 2015 से अब तक 2019 के बीच 68 मुस्लिम मॉब लांचिंग के शिकार हुए, इनके अलावा बहुत से ऐसे लोग है जिनकी दाढ़ी नोची गई और पीटा गया।
भाजपा के बड़बोले नेताओं की जुबान भी बंद नहीं हुई है। बीजेपी विधायक अर्जुन सिंह वीडिओ वायरल हुआ जिसमे वे कह रहे हैं – ‘‘100-150 के झुंड मे चलो पैसा मै दूंगा जहाँ मुसलमान दिखे मार दो।’’
अब नरेंद्र मोदी के सामने नई चुनौती है ” सबका विश्वास” वाले अपने उस नारे को विश्वसनीय बनाना। अगर वे ऐसा करने में नाकामयाब हुए तो स्कालरशिप और तीन तलाक जैसे कदम चर्चा और प्रचार का हिस्सा तो बन सकते हैं मगर उसका वास्तविक प्रभाव शून्य ही रहेगा।
” किसी भी समुदाय के लिए पैसो से ज्यादा आत्मसम्मान और सुरक्षा महत्वपूर्ण है” ये बात मोदी को याद भी रखनी होगी और उसके लिए ठोस काम भी करने होंगे।