जुबिली न्यूज डेस्क
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदम्बरम ने पेगासस विवाद पर मांग की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में बयान दें और स्पष्ट करें कि देश के तमाम ताकतवर लोगों की जासूसी की गई थी कि नहीं। इसके साथ ही कांग्रेसी नेता ने कहा कि पेगासस विवाद की जांच के लिए संयुक्त संसदीय कमेटी का गठन किया जाए या विवाद की जांच सुप्रीम कोर्ट के सिर्टिग जज से कराई जाए।
एक समाचार एजेंसी से बातचीत में चिदम्बरम ने कहा कि जहां तक उनका मानना है कि विवाद की जांच के लिए जेपीसी ही सबसे सही विकल्प होगी। उन्होंने कहा कि वह यह दावे से नहीं कह सकते कि 2019 के चुनाव के पूरे नतीजे इसी गैरकानूनी जासूसी से प्रभावित हुए हैं लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसने बीजेपी को जबर्दस्त कामयाबी दिलाने में कुछ हद तक मदद की हो।
संसदीय स्थायी समिति के प्रमुख शशि थरूर के उस बयान पर भी उनकी राय मांगी गई जिसमें थरूर ने कहा था कि यह मामला समिति के एजेंडे में है और इसके लिए जेपीसी की जरूरत नहीं है। चिदम्बरम ने कहा कि इस संसदीय स्थायी समिति में भाजपा सदस्यों की संख्या अधिक है अत: मुझे संदेह लगता है कि भाजपा जांच को निष्पक्ष तरीके से होने देगी।
उन्होंने कहा कि संसदीय स्थायी समिति के नियम हालांकि सख्त होते हैं , लेकिन जेपीसी जैसे नहीं। जेपीसी को संसद यह अधिकार दे सकती है कि वह और पारदर्शी तरीके साक्ष्य ले सकती है, वह गवाहों को क्रास एग्सामिन कर सकती है और दस्तावेज समन कर सकती है। अत: मेरे विचार में जेपीसी ऐसी मामलों की जांच के लिए उपयुक्त और अधिक अधिकार सम्पन्न है।
इस संबंध में लगे आरोपों पर संसद में सरकार के जवाब पर चिदम्बरम ने कहा कि संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव बहुत चतुर हैं, अत: बयान में सधे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। वैष्णव ने इस बात से इनकार किया कि कोई अनधिकृत जासूसी की गई है। वह इससे इनकार नहीं कर रहे कि जासूसी की गई है। वह इससे भी इनकार नहीं कर रहे कि अधिकृत तौर पर जासूसी की गई है। चिदम्बरम ने कहा कि संचार मंत्री जानते हैं कि अधिकृत निगरानी और अनधिकृत जासूसी में क्या अंतर है।
चिदम्बरम ने सरकार से पूछा कि वह यह साफ करे कि किसी भी तरह की जासूसी की गई थी या नहीं। और क्या जासूसी में पेगासस का इस्तेमाल किया गया था। यदि जासूसी में पेगासस स्पआईवेयर का इस्तेमाल किया गया था तो यह किसने हासिल किया था। क्या यह सरकार ने हासिल किया है या किसी सरकारी एजेंसी ने। सरकार स्पष्ट करे कि स्पाईवेयर खरीदने के लिए भुगतान किसने किया था। जनता इस विवाद पर सरकार से स्पष्ट जवाब चाहती है। जब राष्ट्रपति इमेनुअल मेक्रान का फोन हैक करने की बात सामने आने पर फ्रांस जांच का आदेश दे सकता है। इसरायल इस विवाद की जांच नेशनल सेक्योरिटी काउंसिल से कराने की बात कर सकता है तो भारत सरकार क्यों नहीं जांच कराने को तैयार है।
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चिदम्बरम ने कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला भी है। यदि सरकार यह कहती है कि उसने किसी की जासूसी नहीं कराई है तो सवाल उठता है कि फिर जासूसी किसने कराई। मामले की जांच सप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज से कराने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ जनहित याचिका दायर की गई हैं, इसलिए इसपर वह कुछ कहना नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि अगर गृह मंत्री स्पष्ट इनकार नहीं कर पा रहे हैं कि स्पाईवेयर के जरिए भारतीय टेलीफोनों में सेंध लगाई गई है तो उनको इस कांड की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी जासूसी केवल कुछ एजेंसी ही कर सकती हैं, और ये एजेंसियां प्रधानमंत्री के अधीन हैं। अत: प्रधानमंत्री को आगे आकर बताना चाहिए कि जासूसी हो रही थी कि नहीं। और यदि हुइ है तो यह अधिकृत थी या अनिधिकृत ।