शबाहत हुसैन विजेता
इमरती देवी को आइटम कहे जाने पर महिलाओं के सम्मान में बीजेपी एक बार फिर मैदान में आ गई है. मौन की गूँज मुखर होने लगी है. इमरती देवी खुद भी आंसू बहा रही हैं और आंसुओं की इस रसधार को वोटों में बदलने की पुरजोर कोशिश में बीजेपी जुटी हुई है.
चुनाव गुज़र जायेगा. आइटम वोटों में कितना बदलेगा इसका जवाब आने वाला वक्त देगा मगर महिलाओं के सम्मान का मुद्दा अपनी जगह पर बदस्तूर कायम रह जायेगा. महिलाओं के सम्मान में सड़कों पर कितने भी मार्च होते नज़र आते रहें मगर महिलाओं की आँखों से निकलने वाले आंसुओं की कमी नहीं हो पायेगी.
जिस मध्य प्रदेश में इमरती देवी के बहाने महिला सम्मान के नाम पर नेता घड़ियाली आंसू बहाने के लिए मौन ब्रत रख रहे हैं उस मध्य प्रदेश के आपराधिक आंकड़ों पर नज़र डाल ली जाए तो शायद वोटों को व्यापार समझने वालों और वोट डालने के लिए लम्बी-लम्बी लाइनें लगाने वालों दोनों की आँखें खुल जाएँ.
मध्य प्रदेश के थानों में दर्ज ब्यौरे को ही अगर अपराध की वास्तविक घटनाएं मान लिया जाए तो पता चलेगा कि हर दिन राज्य की 15 महिलाओं के साथ ज्यादती की घटनाएं होती हैं. साल दर साल यह आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं. साल 2016 में 2015 के मुकाबले महिलाओं के प्रति अपराध 11.18 फीसदी बढ़े थे तो 2016 के मुकाबले 2017 में 8.76 फीसदी यह अपराध और बढ़ गए. साल 2014 में 2013 के मुकाबले महिलाओं के प्रति अपराधों में 17 फीसदी इजाफा हुआ था.
महिला अपराधों का ग्राफ देखें तो यह ग्राफ लगातार ऊपर की तरफ जा रहा है. कोई सरकार अपनी पीठ ठोंकना चाहे तो इस बात के लिए ठोंक सकती है कि पिछले साल 17 फीसदी अपराध बढ़े तो इस साल सिर्फ 11 फीसदी बढ़े.
महिलाओं के प्रति अपराधों का सिलसिला पूरे देश में चल रहा है. कहीं बहुत ज्यादा तो कहीं थोड़ा कम. नेताओं से कहीं बदजबानी हो जाती है तो महिला सम्मान के पहरुए उठ खड़े होते हैं अपने झूठ और अपने आडम्बर के साथ.
याद करिये बीजेपी के उत्तर प्रदेश के उपाध्यक्ष दयाशंकर के बयान को जो उन्होंने मायावती को लेकर दिया था. मायावती के अपमान का बदला लेने के लिए बसपा किस अंदाज़ में सड़क पर उतरी थी. बसपा नेता नसीमुद्दीन ने लखनऊ के सबसे बड़े चौराहे पर बसपा कार्यकर्ताओं से नारे लगवाये थे कि दयाशंकर की बेटी को पेश करो, दयाशंकर की बहन को पेश करो.
चौराहे पर जब नारे लग रहे थे तब दयाशंकर फरार हो गए थे, बीजेपी ने उनका साथ छोड़ दिया था. दयाशंकर को उपाध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया था. तब उनकी पत्नी स्वाती सिंह ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने के बाद प्रेस कांफ्रेंस की थी. इस घटना ने स्वाती सिंह को बतौर नेता स्थापित किया. स्वाती सिंह मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. दयाशंकर भी फिर से उपाध्यक्ष बन गए हैं.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी बसपा छोड़कर उस कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं जिस कांग्रेस के कमलनाथ ने इमरती देवी को आइटम बताया है.
राजनीति के हमाम में सभी राजनीतिक दलों की कमोवेश एक जैसी हालत है. नेता तो वही हैं. अपने फायदे नुक्सान के गणित को देखते हुए वह इस पार्टी से उस पार्टी में घूमते रहते हैं. बिलकुल उसी तरह से जैसे कारपोरेट में नौकरी बदलने का सिलसिला चलता रहता है.
राजनीति में एक महिला को आइटम कहे जाने पर हंगामा मच रहा है क्योंकि चुनाव चल रहा है. चुनाव निबट जायेगा तो यही नेता आपस में गलबहियां करते नज़र आयेंगे. इमरती को जलेबी कहे जाने वालों को फिर से लोग भूल जायेंगे.
महिलाओं की जो हालत आज हुई है उसे लेकर खुद महिलाओं को मंथन की ज़रूरत है. महिलाओं के सम्मान में कोई सियासी दल कुछ करने वाला है यह सिर्फ ग़लतफ़हमी का मुद्दा है.
महिलाओं के खिलाफ जो अपराध हो रहे हैं उन पर नज़र दौड़ाई जाए तो सत्तापक्ष का नेता इसमें ज्यादा इन्वाल्व दिखेगा. सत्ता का सुख भोग रहे नेता हमेशा से महिला को आइटम ही मानते रहे हैं. यह शब्द सुनने में अटपटा लग सकता है मगर यकीन मानिए कि चुनाव में आइटम कितना कैश हो सकता है सारी मगजमारी इसी बात की है.
सत्ता का सुख भोग रहे नेता महिलाओं का वस्तु की तरह इस्तेमाल करते हैं. महिला राजी न हो तो उसे पैसों से, ताकत से, धमकी से या फिर ज़बरदस्ती राजी होना पड़ता है. शिकार महिला मुंह खोले तो नतीजा उन्नाव में विधायक सेंगर ने दिखाया. शाहजहांपुर में सांसद चिन्मयानन्द ने दिखाया.
महिला अपराध का शिकार होती है तो उसे विरोध का हक़ नहीं होता. विरोध करने पर उसे मरना पड़ता है. उसके घर को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. घरबार छोड़कर भागना पड़ता है.
महिला को आइटम बताने वाले और समझने वाले हर सियासी पार्टी में हैं. विरोध से कोई फायदा भी नहीं है. इसके लिए तो समाज की मनोदशा बदलनी होगी. लोगों की सोच में बदलाव लाना पड़ेगा. यह प्रोसेस चलाने में कई साल लग सकते हैं. पूरी सदी भी लग सकती है. एक-दो दिन में कुछ भी बदलने वाला नहीं है.
सियासत में इस्तेमाल होती औरत सिर्फ एक दिन का मुद्दा नहीं है. इंटरनेट पर खंगालिए. वीडियो क्लिप्स देखिये. थानों में दर्ज मुकदमे पढ़िए, सीखचों में कैद नेताओं की शक्लें देखिये. खूब ध्यान से देखिये. खूब रिसर्च करिए. आपको हर सरकार में, हर सियासी पार्टी में औरत आइटम ही मिलेगी.
अमर मणि त्रिपाठी याद हैं. कवियत्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के बाद अमर मणि और उनकी पत्नी मधुमणि गिरफ्तार हुए थे. उम्रकैद काट रहे हैं. अमर मणि कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में रहे हैं. कई बार मंत्री रहे हैं. जेल में रहते हुए गोरखपुर से चुनाव जीतते रहे हैं.
इन्हीं अमर मणि का बेटा अमन मणि त्रिपाठी पर भी पत्नी की हत्या का मुकदमा दर्ज है. विधायक है. बीजेपी से जुड़ा है. पत्नी की हत्या का मुकदमा चलते हुए दूसरी शादी कर चुका है क्योंकि अमन मणि के लिए भी पिता अमर मणि की तरह औरत सिर्फ आइटम है.
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कमलनाथ ने सिर्फ आइटम कह भर दिया तो कमल कुम्हलाने लगा. हकीकत यह है कि कुम्हलाते कमल को फिर से खिलाने के लिए आइटम का इस्तेमाल हो रहा है. सियासी दलों ने अपनी तस्वीर स्पष्ट दिखा दी है कि उनकी नज़र में औरत सिर्फ आइटम है. कोई कह रहा है कोई साबित कर रहा है. आइटम बनती औरत जब तक आइटम वाले ग्राफ से खुद बाहर नहीं निकलेगी तब तक नौटंकियों का सिलसिला रुकने वाला नहीं है.