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राजनीतिक दलों के लिए इतना अहम क्यों हुआ उत्तर प्रदेश?

जुबिली न्यूज डेस्क

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में करीब सवा साल का समय है, लेकिन प्रदेश में जो माहौल है उससे तो ऐसा लग रहा है जैसे अगले साल ही चुनाव होना है। राजनीतिक दलों में विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से संग्राम छिड़ गया है। पिछले कुछ ही दिनों में दूसरे राज्यों की कई राजनीतिक पार्टियां यूपी में चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं।

उत्तर प्रदेश से पहले देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है। जिन राज्यों में चुनाव होना है उसमें पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और पुडुचेरी शामिल हैं। लेकिन इन राज्यों में छोटे दलों को जो शिद्दत दिखानी चाहिए वह उन राज्यों में न दिखाकर उत्तर प्रदेश में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

सवाल उठता है कि आखिर राजनीतिक दलों के लिए उत्तर प्रदेश इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है। पिछले दिनों हुए कुछ राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर दौड़ाते हैं।

कुछ दिनों पहले पहले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी यूपी की राजधानी लखनऊ पहुंच और यूपी के कुछ खास जिलों
में एक जाति विशेष पर असर रखने वाली पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से मुलाकात की।

ओमप्रकाश राजभर की पार्टी 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी। योगी सरकार में राजभर
मंत्री भी बने थे लेकिन 2019 के चुनाव के समय इस पार्टी ने अपना रास्ता अलग कर लिया। फिलहाल ओवैसी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के साथ मिलकर यूपी की विधानसभा में ताल ठोकेंगे।

ओवैसी के बाद ही आम आदमी पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव लडऩे का ऐलान किया और अब बिहार में असर रखने वाली दो पार्टियों-जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी के स्थानीय नेताओं ने 2022 में अपने उम्मीदवार उतारने की बात कही है।

दरअसल यूपी में ओवैसी की पार्टी की नजर मुस्लिम ध्रुवीकरण पर है तो केजरीवाल दिल्ली मॉडल के जरिये 2014 से पूर्वांचल में स्थापित बीजेपी के वर्चस्व को तोड़ना चाहते हैं।

गैर बीजेपी दलों दिख रहा स्पेस

उत्तर प्रदेश में दूसरे राज्यों के गैर भाजपा दलों की बढ़ती सक्रियता पर वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं कि दूसरे राज्यों की पार्टियों को यूपी में अपने लिए बड़ी जगह दिखाई दे रही है। इसका कारण है समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजपार्टी का बौना साबित होना।

वह कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा। बीजेपी ने इन दोनों से राज्य की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा छीन लिया। कांग्रेस तो वैसे भी अंतिम सांसे ले रही है। अब किसी के लिए लड़ाई आसान नहीं है। इसलिए अन्य राज्यों के दलों को लग रहा है कि वह अपना विस्तार कर सकते हैं।

मालूम हो कि 2017 के विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी जहां 50 का आंकड़ा नहीं छू पाई, वहीं लोकसभा के चुनाव में बीएसपी से गठबंधन के बावजूद उसके महज पांच एमपी ही जीत सके। बसपा की भी हालत कुछ ऐसी ही रही। विधानसभा के चुनाव में बसपा जहां केवल 19 सीटें जीतने में सफल रही तो वहीं लोकसभा के चुनाव में 10 सीटों तक ही पहुंची।

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एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी का गणित यह है कि एसपी और बीएसपी दोनों ही मुस्लिम वोटों की बदौलत ही राज्य में ताकत दिखाती आई हैं। ऐसे में अगर मुस्लिम वोटों तक अपनी पहुंच को बढ़ाया जा सके और राज्य में छोटी-छोटी जातियों के बीच सक्रिय दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरा जाए तो राज्य में उनके लिए जगह बन सकती है।

इसके अलावा ओवैसी की रणनीति का दूसरा हिस्सा यह है कि अगर राज्य में अभी से सक्रियता बनाई जाए तो सपा और बसपा पर दबाव भी बनाया जा सकता है।

बिहार में मिली सफलता के बाद से ओवैसी के हौसेले बुलंद हैं। बिहार में वह बीएसपी के साथ वह गठबंधन का हिस्सा थे और यूपी में भी वह ऐसा ही करना चाहते हैं, लेकिन बसपा इसके लिए तैयार होगी इसमें थोड़ा संशय है।

भले ही बिहार में बीएसपी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने को राजी हो गई हो लेकिन यूपी में ऐसा वह करेगी यह मुश्किल है।  इस पर अभी उसकी प्रतिक्रिया नहीं आई है।

आप की क्या है रणनीति

यूपी के अगले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ताल ठोकेगी। इसके लिए आप के पदाधिकारी कार्यकर्ता तैयारियों में जुट गए हैं।

दरअसल आप के चुनाव लडऩे की वजह चुनाव दर चुनाव कांग्रेस के कमजोर होने और एक तरह से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर पहुंच जाने से जो स्पेस खाली हुआ है, उस पर वह काबिज होने का मौका देख रही है।

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दरअसल उत्तर प्रदेश में अपर कास्ट का एक ऐसा वोट बैंक माना जाता है जो भाजपा को भी वोट नहीं करना चाहता और एसपी-बीएसपी भी उसकी पसंद नहीं होते। यह वोट कांग्रेस के साथ जाता रहा है और आप को कांग्रेस के इस वोट बैंक को अपने पाले में शिफ्ट कराने का मौका लग रहा है।

इसी के मद्देनजर आम आदमी पार्टी राज्य में खुद को अपर कास्ट की पार्टी के रूप में पेश भी कर रही है। पार्टी ने राज्य का प्रभारी संजय सिंह को बनाया, प्रदेश अध्यक्ष पद भी अपर कास्ट के सभाजीत सिंह को बैठा दिया। आप की जो टॉप लीडरशिप है, वह भी अपरकास्ट ही है।

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फिलहाल ओवैसी की तरह आम आदमी पार्टी भी यूपी विस चुनाव लडऩे का ऐलान कर राज्य की बड़ी पार्टियों को उनके समीकरण बिगाडऩे का खौफ दिखाना चाहती हैं और आप के ऐलान के बाद ऐसा दिखा भी था। योगी सरकार और केजरीवाल के बीच स्कूलों को लेकर आमने-सामने आ गए थे।

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