- कोरोना संक्रमण बढ़ाने में मदद करेगा मानसून
- आईआईटी मुंबई की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
जुबिली न्यूज डेस्क
वैसे तो देश के कुछ राज्यों को छोड़कर लगभग सभी जगह कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, पर कोरोना की मार से सबसे ज्यादा आहत मुबंई और दिल्ली है। कोरोना संक्रमित के सबसे ज्यादा आंकड़े महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्र ने तो आंकड़ों के मामले में चीन के बुहान को भी पीछे छोड़ दिया है। उद्धव सरकार कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हाथ-पैर मार रही है, पर आंकड़े हर दिन तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो आने वाले समय में मुबंई में कोरोना और कहर बढ़ेगा।
शनिवार को मानसून मुबंई पहुंच गया। कई इलाकों में बारिश भी हुई। ये मानसून मुंबईवासियों की मुश्किलें बढ़ाने वाला है। आईआईटी मुंबई की एक रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गई है कि मानसून के साथ ही मुंबई में कोरोना का संक्रमण और तेजी से बढ़ेगा।
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इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ह्यूमिडिटी यानी नमी बढ़ने पर वातावरण में कोरोना वायरस अधिक समय तक जिंदा रह सकता है। इस स्टडी को आईआईटी मुंबई के दो प्रोफेसरों रजनीश भारद्वाज और अमित अग्रवाल ने तैयार किया है।
इन दोनों प्रोफेसर का मानना है कि अधिक तापमान और कम नमी की वजह से खांसी या छींक के ड्रॉपलेट्स सूखने में कम समय लगता है, लेकिन मानसून के दौरान नमी रहेगी और लोगों की खांसी सूखने में ज्यादा वक्त लगेगा। वैज्ञानिकों ने कहा है कि मुंबई, कोलकाता और गोवा जैसे शहर डेंजर जोन में हैं।
कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रजनीश भारद्वाज और अमित अग्रवाल ने एक स्टडी की है। इस स्टडी को मार्च माह में शुरू किया गया था। इसके लिए उन्होंने कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया। इसके लिए उन्होंने तापमान, ह्यमिडिटी और सरफेस को आधार बनाया। दोनों प्रोफेसर ने कोरोना वायरस मरीज की छींक से निकलने वाले ड्रॉपलेट को सुखाया। इसके बाद इसकी सूखने की गति और दुनिया के 6 शहरों में हर दिन होने वाले संक्रमण से इसकी तुलना की।
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प्रोफेसर भारद्वाज के मुताबिक, स्टडी में देखने को मिला कि खांसने या छींकने पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण पहुंच सकता है। इन लोगों ने कंप्यूटर मॉडल से दुनिया भर के अलग-अलग शहरों के तापमान का भी अध्ययन किया है।
प्रो. भारद्वाज ने बताया कि स्टडी में पाया गया कि सूखे वातावरण के मुकाबले ह्यूमिडिटी वाले इलाके में वायरस के रहने की क्षमता 5 गुना तक ज्यादा थी। मुंबई में मानसून पहुंच या है और आने वाले समय में ह्यूमिडिटी का स्तर 80 प्रतिशत से ज्यादा हो जायेगा। ऐसे में कोरोना के संक्रमण के मामले मानसून के दौरान और तेजी से बढ़ सकते हैं।
रजनीश ने सिंगापुर और न्यूयार्क का उदाहरण देते हुए कहा कि सिंगापुर में मानसून जल्दी आता है। ऐसे में वहां बाद में कोरोना के कुछ मामले देखने में आए हैं। सिंगापुर में ह्यूमिडिटी ज्यादा थी तो तापमान भी अधिक था, इसलिए यहां अधिक नहीं फैला। कोरोना ड्रॉपलेट को सूखने में सबसे ज्यादा समय न्यूयॉर्क में लगा। यही कारण है कि न्यूयॉर्क दुनिया में कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित शहरों में से एक है।
वहीं अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स के पीर-रिव्यूड जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक सिडनी, मियामी और लॉस एंजेल्स में भी ड्रॉपलेट्स जल्दी सूख रही थीं।
कोरोना को लेकर कई अध्ययन सामने आ चुके हैं। इसके पहले भी कई स्टडी में यह कहा गया था कि गर्मी में कोरोना से राहत मिलेगी। गर्मी से कोरोना वायरस मर जायेंगे। ऐसा ही कुछ इस स्टडी में भी कहा गया है।
प्रोफेसर भारद्वाज ने बताया कि चूंकि खांसने और छींकने से इसका संक्रमण फैलने का खतरा होता है, इसलिए गर्म मौसम में ऐसा करते वक्त ये वायरस तुरंत सूखकर मर सकते हैं। शोध में शामिल दूसरे प्रोफेसर अमित अग्रवाल ने बताया कि गर्म मौसम में ड्रॉपलेट तुरंत वाष्प बनकर सूख जाता है, इसलिए रिस्क रेट में कमी आ जाती है। हालांकि, भारतीय अनुविज्ञान परिषद और एम्स दोनों ने अभी तक इस तरह की किसी भी स्टडी के पक्ष में हामी नहीं भरी है।
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