न्यूज डेस्क
पुलिस हो या सेना के जवान, उत्तर प्रदेश हो या असम, सीमा पर तैनात जवान हो या किसी थाने में तैनात पुलिस का जवान, दोनों परेशान है। मानसिक तनाव उन पर इस कदर हावी है कि अपनी जान लेने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। जी हां, पुलिसवालों और सेना के जवानों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। असम में तो पुलिसवालों की आत्महत्या से परेशान राज्य सरकार ने इसकी वजह पता लगाने और उसके निवारण के उपाय सुझाने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया है। यह समिति दस दिनों में अपना रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी।
दरअसल मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के सरकारी आवास पर इसी सप्ताह तैनात एक कांस्टेबल ने भी आत्महत्या कर ली थी। गठित चार-सदस्यीय समिति विभिन्न वजहों से मानसिक अवसाद से जूझ रहे पुलिसवालों की काउंसेलिंग की भी सिफारिश करेगी।
बीते कुछ महीनों से असम में पुलिसवालों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है। 16 फरवरी की रात को सीएम आवास पर तैनात एक एक कांस्टेबल बाबुल चंद्र दास (49) ने शौचालय में गले में फांसी का फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में पुलिस का कहना है कि कांस्टेबल वह बीते कुछ महीनों से दिल की बीमारी से पीडि़त था और शायद इसकी वजह से पैदा होने वाला मानसिक अवसाद ही उसकी आत्महत्या की वजह है। लगभग दो साल पहले भी सीएम आवास पर तैनात एक अन्य सुरक्षाकर्मी ने भी सरकारी राइफल से खुद को गोली मार ली थी।
असम में 7 फरवरी को राज्य के होजाई जिले में तैनात एक हवलदार गोपाल बोरा ने भी खुद को गोली मार ली थी। वहीं बीते साल धेमाजी जिले के सिसीबरगांव थाने में तैनात एक युवा सब-इंस्पेक्टर निपन नाथ (28) ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी। उसने 2017 में ही असम पुलिस की नौकरी शुरू की थी।
असम ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी पुलिसवालों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। पिछले साल उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक कई पुलिसवालों ने आत्महत्या की थी जिसके बाद यूपी पुलिस महकमा जागा था।
बीते साल 15 व 16 अगस्त 2019 की रात में बागपत में तैनात दारोगा ने गाजियाबाद में तो बिजनौर में तैनात सिपाही ने बागपत में सुसाइड कर लिया था। गाजियाबाद कविनगर थाना क्षेत्र के संजयनगर में दरोगा मधुप सिंह ने अपने आवास पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली।
ये घटनाएं महज एक बानगी थी। लगातार पुलिसवालों की हत्या के बाद यूपी के मुखिया डीजीपी ओपी सिंह ने बड़ा कदम उठाते हुए प्रदेश के सभी पुलिस अधिकारियों को आदेश देते हुए कहा कि पुलिसकर्मियों का स्ट्रेस दूर करने के लिए उचित कदम उठाए।
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इस घटना के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पुलिसकर्मियों की साप्ताहिक छुट्टी करने की बात कही थी।
डीजीपी ओपी सिंह ने कहा था कि पुलिसकर्मियों का मेंटल लेवल स्ट्रेस मनोवैज्ञानिक चेक करेंगे। जोन स्तर पर मनोवैज्ञानिक पूल बनाने का भी उन्होंने निर्देश दिया है। इस जोन में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय और संस्थानों के मनोवैज्ञानिकों को इसमें शामिल किया जायेगा।
यदि सेना के जवानों की आत्महत्या की बात करें तो मार्च 2018 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक रिपोर्ट के माध्यम से बताया था कि पिछले छह वर्षों में 700 केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल कर्मियों ने आत्महत्या की। जून 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच सालों में 40 से अधिक दिल्ली पुलिस कर्मियों ने आत्महत्या की।
असम में हुई घटना के बाद एक बार फिर इस पर बहस होने लगी है। असम सरकार इन घटनाओं से चिंतित हो गई है। इसी वजह से उसने एक चार-सदस्यीय समिति का गठन किया है। इसमें एक मनोवैज्ञानिक के अलावा पुलिस के शीर्ष अधिकारी शामिल होंगे।
असम के पुलिस महानिदेशक भास्कर ज्योति महंत के अनुसार यह समिति मानसिक अवसाद के दौर से गुजर रहे पुलिस कर्मचारियों का पता लगाकर उनकी काउंसलिंग भी करेगी। समिति अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश करेगी कि असम पुलिस के जवानों और अधिकारियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए कौन से उपाय किए जाने चाहिए।
इतना ही नहीं यह समिति बीते पांच वर्षों के दौरान आत्महत्या करने वाले असम के पुलिस कर्मचारियों और आत्महत्या की वजहों से संबंधित विस्तृत आंकड़े जुटाएगी। इसके अलावा वह पुलिसवालों की काउंसलिंग के मौजूदा तंत्र का अध्ययन करेगी। समिति पुलिसवालों के इलाज की मौजूदा व्यवस्था और इलाज के खर्च के भुगतान की प्रणाली का भी अध्ययन करेगी।
क्या है वजह
मनोवैज्ञानिक प्रो. एस.के. तिवारी कहते हैं-पुलिसकर्मियों के सुसाइड के पीछे कई वजहें है। पहली हैवी वर्क प्रेशर, दूसरी छुट्टी और तीसरी प्रोत्साहन की कमी।
प्रो. तिवारी कहते हैं कि पुलिसकर्मियों पर बहुत ज्यादा वर्क प्रेशर है। ये लगातार काम करते हैं। न तो इनको वीकली मिलती है और न ही यह त्योहार में अपने परिवार के पास जा पाते हैं। परिवार से दूरी तनाव को और बढ़ाती है। सबसे बड़ी वजह इतनी मेहनत के बावजूद इन्हें प्रोत्साहन नहीं मिलता। पनिशमेंट मिलता है। उनकी समस्याएं तक नहीं सुनी जाती। वह कहते हैं -जाहिर है ऐसे हालात में इंसान डिप्रेशन में आ ही जायेगा।
वह कहते हैं कि असम सरकार की यह पहल सराहनीय है। अगर समिति ने सचमुच गंभीरता से इन मामलों का अध्ययन कर ठोस सिफारिशें की तो सरकार को उनको गंभीरता से लागू करना होगा। ऐसा नहीं हुआ तो पुलिसवालों में आत्महत्या की इस बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना काफी मुश्किल साबित होगा।
वह कहते हैं कि इस दिशा में सोचने की जरूरत है। जिस तरह असम सरकार इस मामले को लेकर संवेदनशील हुई है वैसे ही अन्य राज्यों को संवेदनशील होने की जरूरत है।
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