सुरेन्द्र दूबे
ऐसा इस देश में पहली बार हो रहा है कि कोई हड़ताली संगठन मांग कर रहा है कि मुख्यमंत्री उससे माफी मांगे। जी हां, मैं पश्चिम बंगाल के हड़ताली डॉक्टरों की बात कर रहा हूं। हड़ताल सही है या गलत, इस पर बाद में बात करूंगा, पहले इस पर बात कर ली जाए कि क्या कोई हड़ताली संगठन मुख्यमंत्री से माफी मांगने की बात कह सकता है।
पश्चिम बंगाल के डॉक्टर इसी पर उतारू हैं। अब तक 700 जूनियर डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं। ममता बनर्जी कह रही हैं कि उन्होंने डॉक्टरों की सभी मांगे मान ली है। डॉक्टर अगर उनसे बात नहीं करना चाहते तो वे राज्यपाल या राज्य के मुख्य सचिव से अपनी मांगों पर विचार-विमर्श कर सकते हैं।
मुख्यमंत्री ने माफी नहीं मांगी, ठीक ही किया। वरना एक गलत परंपरा शुरु हो जाती और जरा-जरा सी बात पर मुख्यमंत्री से माफी मंगवाने की परंपरा पड़ जाती। माफी से हटे तो मांग रख दी कि मुख्यमंत्री कैमरे के सामने पत्रकारों की उपस्थित में बातचीत करें। ऐसी भी कोई संसदीय परंपरा नहीं है। और अगर ऐसा शुरु हो जाए तो शासन व प्रशासन को सारा काम पत्रकारों की निगरानी में करना पड़ेगा।
मैंने दोनों बातों का जिक्र इसलिए किया क्योंकि ये दोनों बातें राजनीति प्रेरित लगती हैं और समस्या को सुलझाने के बजाए उलझाने तथा राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए तवे का काम कर सकती हैं।
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घटना की शुरुआत 10 जून को इसलिए हुई क्योंकि 75 वर्ष के एक मुस्लिम वृद्ध मोहम्मद सईद का एनआरएस मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। इस बात पर बहस हो सकती है कि उस वृद्ध की मृत्यु डॉक्टरों की लापरवाही से हुई या वाकई उसका अंतिम समय आ गया था।
अब चूंकि मरने वाला मुसलमान था तो इस घटना ने फौरन साम्प्रदायिकता का रूप ले लिया। बताया जाता है कि मृतक के परिजन उत्तेजित होकर अपने सैकड़ों समर्थकों को मेडिकल कॉलेज में बुलवा लिया, जिन्होंने ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर परिवह मुखर्जी और यश टेकवानी की बुरी तरह पिटाई कर दी। ईंट की चोट से मुखर्जी के सिर में फ्रैक्चर हो गया और एक निजी नर्सिंग होम में उनका ऑपरेशन किया गया।
ममता बनर्जी पर आरोप है कि उन्होंने पांच-छह लोगों की गिरफ्तारी तो कराई परंतु अज्ञात दो सौ लोगों की कोई तलाश नहीं हुई और बस यही से शुरु हो गई राजनीति। ममता पर मुस्लिमपरस्ती का आरोप लगा और भाजपा ने फौरन इस मुद्दे को लपक लिया।
मैं अब जानना चाहता हूं कि जब कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो गई तो डॉक्टरों ने संपूर्ण मामले की उच्च स्तरीय या सीबीआई से जांच कराने की मांग करने के बजाए हड़ताल का रास्ता क्यों अपनाया।
डॉक्टर मुख्यमंत्री से बात करने को तैयार क्यों नहीं हुए? डॉक्टरों की हड़ताल दो दिन में ही दिल्ली के अस्पतालों तक क्यों फैल गई? सिर्फ इसलिए क्योंकि वहां भाजपा की सरकार है। अब आज से यह हड़ताल पूरे देश में फैल गई। इस बात का क्या औचित्य है कि बंगाल के दो डॉक्टरों की पिटाई के विरोध में पूरे देश के डॉक्टर देश के लाखों मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ करने के लिए उतारू हो गए।
इंडियन मेडिकल एसोसियेशन इनकी गवर्निंग बॉडी है, जिसमें भाजपा द्वारा भड़काई गई आग में हवन सामग्री डालते हुए इस हड़ताल को देशव्यापी बना दिया। हम सब जानते हैं कि अक्सर डॉक्टरों और मरीज के परिजनों के बीच कहासुनी और मारपीट हो जाती है।
जिसका कोई अपना मर जाता है उसके परिजनों का बदहवास होना या मारपीट पर उतारू हो जाना आजकल आम बात हो गई है। परंतु इस तरह की घटनाओं को स्थानीय प्रशासन अपने स्तर से निपटा लेता है। और सामान्यत: हड़ताल की नौबत नहीं आती है।
पश्चिम बंगाल लोकसभा चुनाव से पूर्व से ही साम्प्रदायिक रंग में रंगा हुआ है। अब बार-बार ये तर्क दिया जा रहा है कि ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण भेदभाव की नीति अपना रही है, इसलिए डॉक्टरों की हड़ताल बढ़ती जा रही है।
ये दोनों मामले अलग है। चुनाव में हुई हिंसा के दौरान टीएमसी व भाजपा दोनों के कार्यकर्ता मारे गए। किसके कार्यकर्ता ज्यादा मरें इसके विवरण में जाकर लाशों की गिनती नहीं की जा सकती है। भाजपा बिगड़ी कानून व्यवस्था के आधार पर ममता सरकार को विधानसभा चुनाव के समय अपदस्त कर देने का सपना संजोए हुए है।
ऐसे सपने देखना हर राजनैतिक दल का अधिकार है। सरकार गिराने के लिए राष्ट्रपति शासन लगा सकती है या फिर विधानसभा चुनाव तक इंतजार कर सकती है।
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डॉक्टरों के हड़ताल को इस मामले से नहीं जोड़ना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं को हिंदू-मुस्लिम के नाम पर विभाजित करना एक अच्छी राजनैतिक परंपरा नहीं है और इसके गंभीर व भयावह परिणाम भी हो सकते हैं। इसको लेकर सत्ताधारी दल भाजपा तथा अन्य सभी दलों को सतर्क रहना चाहिए। इतनी आग मत जलाओं कि कुछ बचे ही नहीं।
आज खबर है कि ममता बनर्जी डॉक्टरों से बातचीत के लिए तैयार हो गई हैं। पता नहीं वह ऐसा पत्रकारों की उपस्थिति में करेंगी या नहीं। मेरा मानना है कि उनको न तो ऐसा करना चाहिए और न ही ऐसा करेंगी। बेहतर है कि मुख्यमंत्री अपने आक्रामक रवैये में नरमी दिखाए। डॉक्टरों को अपने ही प्रशासन का अंग समझते हुए उनकी संभव मांगों को मान लें और इस हड़ताल को समाप्त कराए, जो उनके राजनैतिक भविष्य के लिए भी जरूरी है और पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य के लिए भी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )