जुबिली न्यूज डेस्क
आखिर बीजेपी के लिए हैदराबाद का निगम चुनाव इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है? पिछले दो दिनों से यह सवाल सियासी गलियारों में गूंज रहा है। निकाय चुनाव में बीजेपी की आक्रामकता से जितने हैरान आम लोग हैं उतने ही राजनीतिक पंडित अवाक हैं।
हैदराबाद निकाय चुनाव को लोकसभा चुनाव का रूप देते हुए बीजेपी ने यहां पूरी ताकत झोंक दी। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बाद रविवार को गृह मंत्री अमित शाह ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में पूरी ताकत से प्रचार करते दिखे।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर, सांसद तेजस्वी सूर्या, पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस इससे पहले ही प्रचार करके माहौल बना चुके हैं।
लोकसभा व विधानसभा चुनाव में प्रचार करने वाले बीजेपी के इन स्टार प्रचारकों का निकाय चुनाव में उतरने से यह चुनाव हाईप्रोफाइल हो गया। सवाल फिर वहीं कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी छोटे से निगम चुनाव को लेकर फिक्रमंद क्यों है?
बीजेपी की एक सबसे बड़ी खूबी है कि वह किसी चुनाव को हल्के में नहीं लेती। हर चुनाव को वह गंभीरता से लेती है। यह बीजेपी की आदत है।
दरअसल बीजेपी निकाय चुनावों को राज्य की सत्ता हथियाने का जरिया समझती है। बीजेपी का यह प्रयोग हरियाणा में भी सफल रहा था।
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साल 2018 के हरियाणा निकाय चुनाव में बीजेपी ने पूरा दम लगाकर करनाल, पानीपत, यमुनानगर, रोहतक और हिसार के पांच नगर निगमों पर कब्जा कर लिया था। इससे बीजेपी को दो फायदा हुआ। पहला राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में सत्ता गंवाने वाली भाजपा के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ा और दूसरा भाजपा को इसका फायदा वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में मिला।
हैदराबाद के निकाय चुनाव में भी बीजेपी यही प्रयोग कर रही है। स्टार प्रचारकों ने चुनाव प्रचार करने की वजह से बीजेपी चर्चा में आ गई। भाजपा के दिग्गजों के निकाय चुनाव में प्रचार करने से इसकी खूब चर्चा हुई। बीजेपी अपनी इस रणनीति में सफल हुई।
दरअसल भाजपा निकाय चुनाव के जरिए हैदराबाद (GHMC) में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए अपने स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारा। सीटें भले ही वह ज्यादा न जीत पाये लेकिन पार्टी चर्चा में आ गई।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं, बीजेपी की सफलता का मूल मंत्र सांगठनिक विस्तार है। 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से बाद से इस विस्तार को बहुत ज्यादा तवज्जो मिल रही है। आपने देखा होगा कि जमीनी स्तर पर अपनी मजबूती के लिए पार्टी छोटे-छोटे अवसरों को भी बड़े आयोजनों में तब्दील कर देती है।
वह कहते हैं कि छोटे आयोजनों में दिग्गज नेताओं के आने से स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ता है। इससे एक तरफ शीर्ष नेताओं को छोटी-छोटी जगहों पर भी पार्टी की स्थिति की सही जानकारी होती है तो दूसरी तरफ कार्यकर्ता भी बड़े नेताओं के सामने अपनी समस्या रख पाने में सक्षम होते हैं। इस वजह से नीचे से ऊपर तक के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच गैप नहीं रहता।
हैदराबाद नगर निगम की कुल 150 निकाय सीटों के लिए मंगलवार एक दिसंबर को मतदान होगा। पिछले चुनाव में बीजेपी को सिर्फ चार और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44 सीटें मिलीं थीं।
निकाय चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेताओं के निशाने पर ओवैसी की पार्टी रही। दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव में भी एआईएमआईएम को पांच सीटें मिलने के कारण भाजपा असदुद्दीन की पार्टी को गंभीरता से लेनी लगी है।
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भाजपा ने भूपेंद्र यादव को हैदराबाद निकाय चुनाव का प्रभारी बनाकर भी ऐसे संकेत दिए हैं। इसलिए भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के साथ-साथ एआईएमआईएम को उसके घर में घेरना चाहती है। बीजेपी की आक्रामकता ने एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी चिंतित दिखे। इसीलिए निकाय चुनाव में मुख्यमंत्री और आवैसी भाजपा के खिलाफ मोर्चा संभालते दिखे।
वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं, औवेसी और चंद्रशेखर का चिंतित होना लाजिमी है। बीजेपी ऐसे ही किसी राज्य में निवेश नहीं करती। जब उसे लगता है कि फायदा होने वाला है तभी वह निवेश करती है। हैदराबाद में भारी-भरकम चुनाव प्रचार के पीछे बीजेपी का लक्ष्य इसे पूरे तेलंगाना में एक फैक्टर के रूप में स्थापित करना हो सकता है।