न्यूज डेस्क
‘मैसूर का शेर’ कहे जाने वाले टीपू सुल्तान की जयंती येदियुरप्पा सरकार नहीं मनायेगी। पिछले साल कुमारस्वामी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती पर बड़ा समारोह आयोजित किया था, जिसका कर्नाटक बीजेपी ने पुरजोर विरोध किया था।
कर्नाटक सरकार टीपू सुल्तान की जयंती पर लंबे अरसे से क्षेत्रीय कार्यक्रम करती आई है।
टीपू सुल्तान को सनकी ‘हत्यारा’, ‘बर्बर’ और ‘बलात्कारी’ समझने वाली भारतीय जनता पार्टी इन आयोजनों का हमेशा से विरोध करती रही है और इस बार भी ये विरोध जारी है।
18वीं सदी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान का जन्म 10 नवंबर 1750 को हुआ था।
येदियुरप्पा ने कन्नड़ और संस्कृति विभाग दिया
हर बार की तरह इस बार भी भाजपा टीपू सुल्तान पर अपना रूख स्पष्ट कर चुकी है। सत्ता संभालते ही बीजेपी के मुख्यमंत्री बीएस युदियुरप्पा ने कन्नड़ और संस्कृति विभाग को जयंती न मनाने का आदेश दे दिया।
एक बड़ा चुनावी मुद्दा हैं टीपू सुल्तान
कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के लिए टीपू लंबे समय से एक अहम मुद्दा बने हुए हैं। बीजेपी टीपू की जयंती का विरोध कर्नाटक ही नहीं दिल्ली तक कर चुकी है। जानकारों की माने तो बीजेपी के लोग टीपू सुल्तान के मुद््दे को जिंदा रखना चाहते हैं इसलिए वो दिल्ली में भी विरोध प्रदर्शन करते हैं।
2018 की शुरुआत में दिल्ली में बीजेपी के विधायक टीपू सुल्तान की तस्वीर का विरोध करते हुए उसकी जगह सिख नेताओं की तस्वीर लगाने की बात कहे थे।
कर्नाटक में बीजेपी टीपू सुल्तान की जयंती का विरोध कर कांग्रेस को हिंदू विरोधी घोषित करना चाहती है। पिछले साल कुमारस्वामी सरकार ने जयंती मनायी थी लेकिन किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे।
दरअसल कुमारस्वामी ने कार्यक्रम से दूरी आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बनायी थी।
वहीं बीजेपी की कर्नाटक इकाई ने भी ट्वीट कर कहा था- कांग्रेस और टीपू सुल्तान में बहुत सारी समानताएं हैं। दोनों हिंदू विरोधी है। दोनों अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करना चाहते हैं। इसीलिए कांग्रेस पार्टी टीपू सुल्तान की जयंती पर जश्न मना रही है।
टीपू के मामले में दोहरा रवैया अपनाती है बीजेपी
विपक्षी दल टीपू के मामले में बीजेपी पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाती है। विपक्ष का यह आरोप ऐसे ही नहीं है। दरअसल राष्ट्रपति रामकोविंद कर्नाटक की 60वीं विधानसभा की सालगिरह के मौके पर टीपू की तारीफ किए थे। इसके पहले जब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार थी तब मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर ने उन्हें एक नायक बताया था।
दरअसल बीजेपी तटीय क्षेत्रों के वोट पर फोकस है और वह जानती है कि यदि टीपू सुल्तान को खलनायक की तरह पेश कर दिया जाए तो यह वोट आसानी से उसकी झोली में आ जायेगी।
क्या कहता है इतिहास
मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान को एक बहादुर और देशभक्त के रूप में ही नहीं बल्कि उन्हें सहिष्णुता के दूत के रूप में भी याद किया जाता है।
लेकिन इतिहास की माने तो टीपू सुल्तान को साम्प्रदायिक शासक सिद्ध करने की कहानी गढ़ी हुई है।
टीपू सुल्तान से जुड़े दस्तावेजों की छानबीन करने वाले इतिहासकार टीसी गौड़ा के मुताबिक “टीपू के सांप्रदायिक होने की कहानी गढ़ी गई है।”
टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदान ए जंग में अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते हुई थी। साल 2014 की गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था।
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