न्यूज डेस्क
5 अगस्त को जब केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 निष्प्रभावी किया और सुरक्षा कारणों से संचार पर प्रतिबंध लगाया था तो उस समय आंकलन किया गया था कि इससे कश्मीर के फल किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ेगा। और ऐसा हुआ भी।
घाटी में बंदी की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान सेब उत्पादकों को हुआ, क्योंकि संचार प्रतिबंधों की वजह से उत्पादकों, ट्रांसपोर्टरों और व्यापारियों के बीच संपर्क लगभग असंभव हो गया था। परिवहन पर प्रतिबंधों ने खरीद प्रक्रिया में भी बाधा उत्पन्न की। वहीं 19 नवंबर को लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान कश्मीर घाटी से सिर्फ 7,940 मिट्रिक टन सेब खरीदे हैं।
दरअसल यह आंकड़ा कश्मीर के सेब उत्पादन का एक फीसदी से भी कम है। गौरतलब है कि कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों में औसतन सेब का उत्पादन औसतन 18 लाख मीट्रिक टन रहा है। वहीं साल 2018-19 में घाटी में सेब का उत्पादन 18.5 लाख मीट्रिक टन था।
दरअसल सेब उत्पादकों को सितंबर में घाटी में सेब की फसल शुरु होने के बाद संचार प्रतिबंधों और परिवहन नाकाबंदी के कारण अपनी उपज बेचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके बाद केंद्र सरकार ने घोषणा की कि वह नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नैफेड) के माध्यम से उत्पादकों से सेब खरीदेगा।
उस समय यह अनुमान लगाया गया था कि केन्द्र सरकार घाटी से 13 लाख मीट्रिक टन सेब की खरीददारी करेगी। सरकार ने भी कहा था कि यह राशि सीधे उत्पादकों के बैंक खातों में हस्तांतरित की जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जो आंकड़ा रखा है उससे साफ है कि सरकार का प्रयास विफल हो गया। सरकार ने अपने लक्ष्य का एक फीसदी से भी कम और घाटी के कुल सेब उत्पादन का एक प्रतिशत से भी कम की खरीदारी की है।
वहीं इस मुद्दे पर स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, ‘यह एक बड़ी विफलता है। योजना शुरू से ही एक मजाक थी और अब सीजन ही खत्म हो गया है।’
मालूम हो योगेन्द्र यादव उस सात-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे जो एक सप्ताह पहले ही घाटी के सेब किसानों की स्थिति और उनके नुकसान का आंकलन करने के लिए जम्मू कश्मीर गया था।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले कश्मीर दौरे पर गए प्रतिनिधिमंडल में पूर्व सांसद राजू शेट्टी, सामाजिक वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ योगेंद्र यादव और किसान नेता वीएम सिंह शामिल थे।
यादव और उनकी टीम ने यह भी पाया था कि नाफेड ने घाटी में कुल सेब उत्पादन का एक फीसदी से भी कम की खरीददारी की है। प्रतिनिधिमंडल ने इसके लिए नाफेड के अनुभव और बुनियादी ढांचे की कमी का कारण बताया।
गौरतलब है कि सेब का व्यापार जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जिसका वार्षिक कारोबार 8,000 करोड़ रुपये है। अनुमान के मुताबिक करीब 33 लाख से अधिक परिवार इस फल व्यापार पर निर्भर हैं।
पांच अगस्त के फैसले के बाद केंद्र द्वारा लगाए गए असाधारण प्रतिबंधों के कारण जम्मू कश्मीर की सेब अर्थव्यवस्था संकट में है।
योगेंद्र यादव की सात-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने उत्पादकों और व्यापार संगठनों के साथ बातचीत के आधार पर बताया है कि इस साल घाटी के किसानों को कुल 7,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो सकता है।
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