जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले दिनों प्रश्न काल चर्चा में था। प्रश्न काल यानी वो माध्यम, जिसकी वजह से देश की संसद में मंत्रियों को संसद सदस्यों के सवालों का जवाब देना होता है। इस बार केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी को वजह बनाकर मॉनसून सत्र में प्रश्न काल को स्थगित कर दिया गया था, पर विरोध के बाद शुक्रवार को इस फैसले को वापस लिया गया और प्रश्न काल का समय एक घंटे के बजाय आधा घंटा कर दिया गया।
इस समय देश कई चुनौतियों से जूझ रहा है। कोरोना महामारी, देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े सबसे बुरे आंकड़े, कश्मीर के लोगों में बड़े पैमाने पर अलगाव और सीमा पर चीन के आक्रामक रुख जैसी कई चुनौतियों से केंद्र सरकार जूझ रही है। इसके बीच राष्टï्रपति रामनाथ केविंद ने 14 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर 2020 तक संसद का मॉनसून सत्र बुलाया गया है।
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इस मुश्किल हालात में हर कोई जानना चाहता है कि इन समस्याओं से निपटने की सरकार की तैयारी कैसी है। सरकार और उनके मंत्री क्या कर रहे हैं। जाहिर है ये सवाल जनता नहीं बल्कि विपक्षी दलों के सांसद ही संसद में पूछेंगे। लेकिन इस मुश्किल वक्त में
सरकार को अहम सवालों के जवाब देने और जनता के चुने गए प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है, मगर आगामी
सत्र के लिए एक नई व्यवस्था ने संसद की शक्तियों की गंभीरता को नजरअंदाज कर दिया।
संसदीय लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए मंत्री परिषद से जवाब मांगने के लिए सांसदों के अधिकार बेहद जरूरी हैं, जो उन्हें संसद की कार्यवाही के दौरान प्रश्न काल में मिलते हैं। इन सबके बाद भी मॉनसून सत्र में प्रश्न काल को स्थगित कर दिया गया था।
स्पीकर को करनी चाहिए थी पहल
संविधान में रूल्स ऑफ प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस के नियम 32 के मुताबिक, स्पीकर को अधिकार है कि वह सदन की बैठक का पहला एक घंटा मंत्रियों से सवाल-जवाब करने के लिए उपलब्ध करा सकते हैं। हां कोरोना महामारी की वजह से ये हो सकता है कि सोशल डिस्टेसिंग के कारण अलग-अलग मंत्रालयों से डेटा पाने में मुश्किलें आएं, मगर ऐसा होता है तो संबंधित मंत्री इस बात का हवाला देकर स्पीकर को बता सकते हैं कि वह सवालों का जवाब क्यों नहीं दे सकते और ये भी कहा जा सकता है कि सवाल का जवाब संसद की अगली बैठक में दिया जाएगा।
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इतना ही नहीं स्पीकर भी अपनी शक्तियों को इस्तेमाल करते हुए एक अस्थाई व्यवस्था बना सकते हैं, या नियम समिति के गठन से लोकसभा में अस्थाई नियमों का प्रस्ताव लाया जा सकता है। अगर मंत्रियों को जवाब देने से पहले कुछ ब्रीफिंग की जरूरत है तो संबंधित अधिकारी संसद की बैठक से पहले उन्हें ब्रीफ कर सकते हैं। मगर इस तरह के विकल्पों पर सोचने के बजाय स्पीकर ने सीधे प्रश्न काल को ही सदन की कार्यवाही से निकाल सरकार को खुली छूट दे दी थी। मगर विपक्ष के हंगामे के बाद संसदीय कार्य मंत्री को सफाई देनी पड़ी और प्रश्न काल को वापस कार्यवाही में शामिल किया गया, लेकिन इसका समय घटा दिया गया।
प्रश्न काल के स्थगित किए जाने पर विपक्ष ने नाराजगी जताई थी, जिसके बाद सरकार अतारांकित प्रश्नों के लिखित जवाब देने पर सहमत हो गई। हालांकि, यह नाकाफी है, क्योंकि तारांकित प्रश्न सांसदों को सरकार के मंत्रियों द्वारा किए गए कामों पर सवाल करने का मौका देते हैं। ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं, जिनमें सरकार ने कुछ अंगों की अनदेखी करते हुए लिखित उत्तर दिए हैं। ऐसे में एक मंत्री को जब मौखिक जवाब देना होगा तो उसके लिए मुश्किल सवालों से बचना आसान नहीं होगा।
दरअसल तारांकित प्रश्नों को न लेना मंत्रियों के लिए सुविधाजनक है। यह कदम संसद के मुंह पर ताला लगाने जैसा है। केंद्र सरकार के अनुरोध पर, स्पीकर ने प्राइवेट मेंबर बिलों को पेश करने और उस पर बहस करने के लिए आवंटित समय को भी कार्यवाही से निकाल दिया है, जबकि नियम 26 के अनुसार शुक्रवार को संसद की बैठक के आखिरी ढाई घंटे प्राइवेट मेंबर बिल के लिए निर्धारित होते हैं।
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क्या होता है प्राइवेट बिल
प्राइवेट बिल भी सरकार के बिल जैसा ही होता है, लेकिन इसे मंत्री के बजाय संसद सदस्य पेश करता है। संविधान का आर्टिकल 245 संसद को देश के लिए कानून बनाने की शक्ति देता है। ये शक्ति सिर्फ सरकार के शीर्ष मंत्रियों तक सीमित नहीं है, बल्कि संसद के हर सदस्य को मिली है।
संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक स्पीकर के पास सदस्य के बिल पेश करने के अधिकार को खत्म करने या उसे निलंबित करने की शक्ति नहीं है। बिल को संसद में पेश करने या बिल पेश करने के लिए नोटिस की अवधि को आर्टिकल 118 के तहत रेग्युलेट किया जा सकता है। नियम 26, प्रश्न काल के मामले में नियम 32 से एकदम अलग है, इसमें स्पीकर को प्राइवेट मेंबरों के प्रस्तुत बिल को निलंबित करने का अधिकार नहीं है। अगर शुक्रवार को संसद में बैठक नहीं है तो स्पीकर, प्राइवेट मेंबर को बिल पेश करने के लिए शुक्रवार के अलावा अन्य दूसरी तारीख भी दे सकता है।
इस मामले में जानकारों का कहना है कि पूरे सत्र के लिए प्राइवेट मेंबर के बिलों को निलंबित करने की सरकार की सिफारिश को स्वीकार करने के अध्यक्ष के फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए, और सांसदों को अपने बिल पेश करने की अनुमति देने के लिए हरसंभव कोशिश करनी चाहिए।
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कोरोना महामारी के चलते संसदीय समितियों को अपने कामकाज में बाधाओं का सामना करना पड़ा है। ये समितियां अपना समय विषयों की समझ में, विशेषज्ञों, गवाहों और संबंधित पक्षों पर सवाल उठाकर और संसद की सिफारिशों और नतीजों द्वारा संसद की आंख और कान के रूप में काम करती हैं।
फिलहाल देश मुश्किल वक्त में हैं। इसके लिए जरूरी है कि सरकार ना सिर्फ जिम्मेदार बने, बल्कि संसद के प्रति उत्तरदायी भी हो। मंत्रियों को साफ तौर पर बताना चाहिए कि वे चीन, कश्मीर संकट, इकनॉमी और महामारी के साथ कैसे डील कर रहे हैं। हो सकता है कि कोरोना महामारी की वजह से कई संसद सदस्य अस्पतालों में भर्ती हों, लेकिन ऐसे में संसद को आपातकालीन वॉर्ड में बंद करने को कोई कारण नहीं बनता, वो भी जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो।