जुबिली न्यूज डेस्क
पिछले हफ़्ते नई दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को भी विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. बांग्लादेश एकमात्र पड़ोसी देश था, जिसे भारत ने जी-20 में इतनी तवज्जो दी.
आठ सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी ने जिन तीन देशों के साथ अपने आवास पर द्विपक्षीय बैठक की, उनमें मॉरिशस और अमेरिका के साथ एक नाम बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का भी था.राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ शेख़ हसीना की सेल्फ़ी और ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा में रही.
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर क्यों बढ़ गई अहमियत
भारत ब्रिक्स और जी-20 दोनों का सदस्य है, ऐसे में बांग्लादेश को अहम अंतरराष्ट्रीय मंच पर जगह दिलाने में भारत कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. दो सवाल उठते हैं. एक तो यह कि बांग्लादेश की अहमियत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर क्यों बढ़ गई है और भारत उसकी अहमियत के लिए इतना सजग क्यों है? बांग्लादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग हुआ था लेकिन कई मामलों में अब वह पाकिस्तान को पीछे छोड़ चुका है. पाकिस्तान भले परमाणु शक्ति संपन्न देश है लेकिन बांग्लादेश की विश्वसनीयता अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ज़्यादा बढ़ी है और आर्थिक रूप से भी ज़्यादा स्थिर और मज़बूत है.
बांग्लादेश को लेकर भारत इतना मुखर क्यों?
बांग्लादेश की राजनीति के दो बड़े और प्रमुख चेहरे हैं- बांग्लादेश अवामी लीग की शेख़ हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी(बीएनपी) की खालिदा ज़िया. पिछले 14 सालों से बांग्लादेश में शेख़ हसीना की पार्टी आवामी लीग की सरकार है और वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर काबिज हैं.
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर संजय भारद्वाज कहते हैं कि भारत, बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार को देखना चाहता है. वह कहते हैं, “बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ़ रहा है. वे हमेशा से पाकिस्तान की वकालत करते आए हैं, जिसका फ़ायदा चीन को मिलता है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान दोस्त हैं. वहीं अवामी लीग लिबरल, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक फैब्रिक में विश्वास करती है. यही वजह है कि भारत उसे वरीयता देता है.”ऐसे में भारत नहीं चाहता कि उसके पड़ोस में कोई ऐसी सरकार रहे, जो उसके दुश्मन माने जाने वाले देशों का साथ दे.
शेख़ हसीना के रहने से फ़ायदा?
व्यापार के मामले में बांग्लादेश, दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा पार्टनर है. एशिया में सबसे ज़्यादा सामान अगर बांग्लादेश किसी को बेचता है, तो वह भारत है. दोनों देशों के बीच 2 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का ट्रेड होता है.
पिछले आठ सालों में भारत ने सड़क, रेलवे, शिपिंग और बंदरगाहों जैसे क्षेत्रों में इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने के लिए बांग्लादेश को करीब 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट दी है. इसके अलावा अखौरा-अगरतला रेल लिंक, इंटरनेशनल जलमार्ग की ड्रेजिंग और मैत्री पाइपलाइन के लिए भी ग्रांट भी दिए गए हैं.
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बांग्लादेश के साथ भारत की लगभग चार हज़ार किलोमीटर की सीमा लगती है. लिहाजा चीन और पाकिस्तान जैसे देशों की चुनौतियों को देखते हुए भारत के लिए इस इलाक़े में ऐसी सरकार की ज़रूरत है, जो उसका दोस्त हो. क़मर आग़ा कहते हैं कि शेख़ हसीना से पहले की सरकार ने उत्तर पूर्वी भारत में अलगाववादियों को पनाह देने में अहम भूमिका निभाई थी.बांग्लादेश के कैंपों से पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी आंदोलन को जिस तरह से समर्थन मिल रहा था उसे कुचलने में भी शेख़ हसीना सरकार ने अहम भूमिका निभाई है.
बांग्लादेश के लिए फील्डिंग कर रहा है भारत?
दिसंबर 2021 में अमेरिका ने बांग्लादेश के अर्धसैनिक बल रैपिड एक्शन बटालियन(आरएबी) और उसके कई वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाए थे.मई 2023 में अमेरिका ने बांग्लादेश की चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास करने वाले लोगों पर वीज़ा प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी.अमेरिका ने कहा था कि राजनीतिक दलों, नागरिक समूहों या मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने पर ये क़दम उठाये जा सकते हैं.
क़मर आग़ा कहते हैं, “अमेरिका की इंडो पैसेफिक नीति के लिए भी बांग्लादेश का साथ ज़रूरी है. वहीं फ्रांस के ख़िलाफ़ अफ़्रीका में कई फ्रंट बन रहें हैं, ऐसे में वह अर्धविकसित और विकसित देशों के साथ अच्छे रिश्ते बना रहा है. अमेरिका और यूरोप नहीं चाहता कि बांग्लादेश चीन के साथ चला जाए, क्योंकि म्यामांर और श्रीलंका का पहले ही चीन की तरफ़ झुकाव है, नेपाल में पश्चिम के प्रति लगाव नहीं है, ऐसे में वह साउथ एशिया में अलग थलग नहीं पड़ना चाहता.”