प्रीति सिंह
बिहार के सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी नीतीश कुमार का कद छोटा करने में लगी है और उन्हें स्वतंत्र रूप से फैसले नहीं करने दे रही है।
यह चर्चा यूं ही नहीं है। पिछले साल 16 नवंबर को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उनके साथ 14 नेता मंत्री बने थे। नीतीश सरकार के गठन के दो माह होने वाले है पर अब तक उनके कैबिनेट का विस्तार नहीं हो पाया है।
2005 से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर बिहार की सरकार चला रहे हैं पर ऐसा पहली बार हुआ है कि उनके कैबिनेट विस्तार में इतनी देरी हुई हो।
बकौल नीतीश कुमार बीजेपी से लिस्ट नहीं मिल रही है जिसकी वजह से कैबिनेट विस्तार में देरी हो रही है। संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से बिहार में मुख्यमंत्री समेत कुल 36 मंत्री हो सकते हैं।
कैबिनेट विस्तार न होने की वजह से विपक्ष भी नीतीश कुमार से चुटकी लेने से बाज नहीं आ रहा। विपक्ष लगातार नीतीश की बेबसी पर तंज कस रहा है। नीतीश के बयानों में भी मायूसी, बेबसी और नाराजगी दिख रही है, लेकिन सत्ता में बने रहने की मजबूरी की वजह से वह कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं।
पिछले दिनों जब अरूणाचल प्रदेश में जेडीयू के छह विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे तो ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि इसके खिलाफ जदयू कड़े कदम उठा सकता है। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।
जदयू के प्रवक्ता ने भाजपा को गठबंधन के धर्म की याद दिलाई और भविष्य में न करने की चेतावनी दी। नीतीश कुमार ने भी इशारों-इशारों में कहा कि उन्हें कुर्सी का कोई मोह नहीं है, लेकिन खुलकर बोलने से बचते दिखे।
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इतना ही नहीं गुरुवार को भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और दोनों उप मुख्यमंत्रियों- तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी की नीतीश कुमार से मुलाकात हुई। ऐसा माना जा रहा था कि इस बैठक में नेताओं के बीच मंत्रिमंडल विस्तार पर चर्चा हुई होगी लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो बयान दिया उसमें कैबिनेट विस्तार कहीं था ही नहीं।
नीतीश कुमार ने कहा कि बैठक में सरकार के कामकाज पर बात हुई है। लक्ष्य पर बात हुई। कोई भी राजनीतिक बात नहीं हुई। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन बीजेपी नेताओं की मुलाकात जेडीयू के नये अध्यक्ष आरसीपी सिंह से भी हुई थी।
उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल में कभी मंत्रिमंडल विस्तार में इतनी देर नहीं हुई। उन्होंने इसकी वजह बीजेपी से लिस्ट नहीं मिलना बतायी। नीतीश कुमार का ऐसा बयान 25 दिनों में दोबारा आया है। इससे पहले 15 दिसंबर को भी उन्होंने यही बात कही थी।
नीतीश कुमार के इस बयान में उनकी बेबसी साफ झलक रही थी। इसीलिए राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी नीतीश कुमार का कद छोटा करने में लगी है और उन्हें स्वतंत्र रूप से फैसले नहीं करने दे रही है।
नीतीश सरकार के वर्तमान हालात पर वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं कि भाजपा चुनाव के दौरान से ही नीतीश पर नकेल कसने में लगी हुई थी। सीट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार तक में ऐसा दिखा था। अब जबकि भाजपा जेडीयू से बड़ी पार्टी है और उसके सहयोग के बिना नीतीश का मुख्यमंत्री पद पर रहना संभव नहीं है तो भाजपा के आगे नीतीश को सिर झुकाना ही पड़ेगा।
वह कहते हैं कि भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर सहयोगी दलों में संदेश देने की कोशिश की थी कि वह अपने वादें को लेकर पक्की है। महाराष्टï्र में शिवसेना और भाजपा के बीच जो हुआ था उसको देखते हुए भाजपा बिहार में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। इसीलिए उसने बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन वह अपनी रणनीति पर अब भी कायम है।
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र दुबे कहते हैं-जितनी मजबूरी नीतीश कुमार के लिए भाजपा है उतनी है भाजपा के लिए जदयू है। जदयू के बिना भाजपा सत्ता में बनी नहीं रह सकती। इसलिए उसने नीतीश कुमार को आगे किया। भाजपा ने यहां तक का सफर सहयोगी दलों के कंधे पर ही बैठकर किया है। आगे का सफर भी वह नीतीश कुमार के कंधे पर बैठकर करेगी। परिणाम सबको पता है। असम में देख सकते हैं।
नीतीश के हाथ बांधने की कोशिश में है भाजपा
बिहार में सरकार गठन के बाद से ही भाजपा नीतीश कुमार के हाथ बांधने की कोशिश में लगी हुई है। सबसे पहले जब नीतीश के साथ एनडीए सरकार में लगातार उपमुख्यमंत्री रहे सुशील कुमार मोदी को बीजेपी ने बिहार से हटाया और राज्यसभा सांसद बनाकर उनकी नाराजगी कम करने की कोशिश की तो यह माना गया कि उनकी जोड़ी तोड़कर बीजेपी नीतीश कुमार के लिए स्थिति को असहज कर रही है।
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इस मामले में नीतीश कुमार ने कहा था कि सुशील मोदी को बिहार लाना या नहीं लाना बीजेपी के हाथ में है। उनका कहना था कि उनका साथ बरसों पुराना है लेकिन सुशील मोदी को बिहार लाये जाने के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। यह बयान भी नीतीश कुमार की बेबसी को उजागर करता है।
इसके अलावा नीतीश कुमार को भाजपा की ओर से दो उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी स्वीकार करना पड़ा और दोनों के आरएसएस से जबरदस्त लगाव को देखते हुए उनके लिए यह असहज करने वाली बात मानी गयी। इसी तरह उनके पुराने कैबिनेट सहयोगी और बीजेपी नेताओं नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार को मंत्री नहीं बनाया गया तो यह भी नीतीश की पसंद की बात नहीं थी।
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नीतीश कुमार और बीजेपी में खटपट की बात मंत्रिमंडल विस्तार तक सीमित नहीं है बल्कि यह तो उसकी शुरुआत है। विभागों का बंटवारा भी दोनों के बीच असहजता का कारण बना हुआ है। और इस बीच, तेजस्वी यादव ने एक बार फिर बिहार में मध्यावधि चुनाव की तैयारी की बात कर राजनीति को गरमा दिया है। तेजस्वी के इस बयान को जेडीयू के नेता नकार रहे हैं और बीजेपी से अरुणाचल समेत मिली अनेक चोटों के बावजूद बिहार में सबकुछ ठीक बता रहे हैं। पर जो भी हो, राजनीतिक पंडितों की माने तो अगले कुछ दिनों में बिहार की राजनीति में फिर उठापटक देखने को मिल सकती है।