नवेद शिकोह
पश्चिम बंगाल में टीएमसी की जीत के बाद के राजनीतिक समीकरण भांपते हुए कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों से दूरी बनाकर एकला चलो पर अमल करने का फैसला किया है। अब वो आत्मनिर्भर बनकर अकेले चलने की रणनीति बना रही है।
इस मुहिम में कांग्रेस के साथ किसान आंदोलन के नेतृत्वकर्ता राकेश टिकैत पर्दे के पीछे से कांग्रेस के सारथी की भूमिका में नजर आ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि यूपी चुनाव में केवल राष्ट्रीय लोकदल को कांग्रेस के पाले में लेने की सलाह भी टिकैत ने दी थी। ताकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद और कांग्रेस गठबंधन को नाराज़ किसान एकतरफा लाभ पंहुचा सकें। हांलांकि यह प्रयास सफल नहीं हो सका।
इस असफल कोशिश के अलावा कांग्रेस अपनी दूरदर्शिता के तहत सपा सहित किसी बड़े क्षेत्रीय दल के साथ समझौता करना घाटे का सौदा मान रही है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का मानना है कि भाजपा को हराने और उसके विजयरथ को रोकने के लिए उसने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में अप्रत्यक्ष रूप से टीएमसी को जिताने में मदद की थी।
पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने वहां ज्यादा प्रचार नहीं करके टीएमसी को वोट ट्रांसफर किए थे। किंतु मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बलिदान को महसूस किए बिना देश के कई क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर आगामी लोकसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे को रंग देने के संकेत देना शुरू कर दिए।
मौजूदा सियासी माहौल को भांपकर ही कांग्रेस को लगने लगा कि क्षेत्रवाद और जातिवाद के वर्चस्व वाले राज्य कांग्रेस के लिए घातक हैं। भाजपा को रोकने के लिए यदि इन क्षेत्रीय दलों की मदद की तो ये यही दल दोस्ती भुलाकर लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस को ही रोकने पर आमादा हो सकते हैं। ‘
कांग्रेस इस खतरे को देखते हुए अब क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता करने के मूड में नहीं दिख रही है। इस नजरिए ने ही बिहार के उपचुनाव में कांग्रेस ने अपने पुराने मित्र राष्ट्रीय जनता दल से दूरी बना ली।
इसी क्रम में कांग्रेस ने सपा के साथ कोई भी समझौता न करने के साथ उसके सहयोगी रालोद को तोड़कर अपने पाले में लेने की कोशिश शुरू कर दी। ताकि पश्चिमी यूपी में अपना असर रखने वाले रालोद का साथ पाकर किसान आंदोलन और किसानों की नाराज़गी का चुनावी लाभ लिया जा सके।
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जिस तरह कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को शामिल करके बिहार में राष्ट्रीय जनता दल को कमजोर कर भाजपा से सीधे मुकाबला करने की रणनीति बनाई वैसे ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान नेता टिकैत की मदद से रालोद से गठबंधन कर कांग्रेस सपा को मात देना चाहती है। जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सपा की सारथी बनकर यूपी के भाजपा विरोधी मतदाताओं को एकजुट करना चाहती हैं।
ममता यूपी में वो फार्मूला सेट करना चाहती हैं जिसके तहत पश्चिम बंगाल का भाजपा विरोधी वोटर बिना बिखरे एकजुट होकर भाजपा को शिकस्त देने में कामयाब हुआ था। यही सब कांग्रेस को बर्दाश्त नहीं हो रहा।
देश के दो बड़े सूबों में सियासत के यादव घरानों में सामंजस्य है। यूपी के सपा और बिहार के राजद और दिल्ली के आप के साथ टीएमसी अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी से मधुर राजनीति रिश्ते बनाए हैं। लगने लगा है कि अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय दलों के नेता एकजुट होकर ममता बनर्जी के नेतृत्व में तीसरा मोर्चा तैयार कर भविष्य में भाजपा ही नहीं कांग्रेस को भी चुनौती दे सकते हैं।
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इन संकेतों को परखकर ही कांग्रेस नहीं चाहती कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी की तरह बिहार और यूपी के बड़े क्षेत्रीय दल अकेले भाजपा विरोधी वोटों को हासिल कर कांग्रेस के लिए भविष्य में खतरा न बन जाएं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)