केपी सिंह
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पारा इन दिनों चढ़ा नजर आ रहा है। कभी अपने मंत्रियों पर तो कभी अधिकारियों पर उनका गुस्सा फूट रहा है। उनका मिजाज बताता है कि शायद उन्हें भ्रष्टाचार और लापरवाही सचमुच बर्दाश्त नहीं है। फिर भी उनके राज में दिया तले अंधेरे की स्थिति अभी तक बनी रही इसे लेकर कुछ चीजे ध्यान में आती हैं। या तो मुख्यमंत्री के पास पहले से सरकार चलाने का अनुभव नहीं था जिसके कारण जो गड़बड़ियां हो रही थी उनसे वे वाकिफ नहीं हो पा रहे थे। अथवा आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के नाते उनके मन में यह मुगालता बना हुआ था कि जब धर्म कर्म बढ़ेगा तो पाप अपने आप बंद हो जायेंगे इसलिए कुंभ को वृहद स्तर पर आयोजित कराने, तीर्थ स्थलों को सजाने, संवारने और अयोध्या में भव्य दीपावली, वृंदावन में होली और सावन में चित्रकूट के कामदगिरि की परिक्रमा करने की लगन में सरकार के मूलभूत दायित्व को वे महसूस नहीं कर पा रहे थे।
बहरहाल जो भी हो मुख्यमंत्री लगता है कि अब अपने आपे में आ गये हैं। इसलिए गवर्नेंस की लगाम उन्होंने कसना शुरू कर दी है। नन्दगोपाल नंदी, अनुपमा जायसवाल और सिद्धार्थ नाथ सिंह को उनका कोप हाल में झेलना पड़ गया है।
इसके साथ ही पुलिस को लेकर तो उनका रूख इतना तल्ख है कि एक हफ्ते में सारे अधिकारी इसके कारण हिल गये हैं। इस बीच बुलंदशहर के एसएसपी एन कोलांची को उन्होंने थाने बेचने के कारण निलंबित कर दिया। जिससे सारे कप्तानों में हड़कम्प मचा हुआ है। हालांकि फिर भी पुलिस अफसर सुधर नहीं पा रहे हैं। इस कारण मुख्यमंत्री ने खुलेआम कहा है कि कप्तान साहबान भ्रष्टाचार से बाज आयें वरना उनमें से कुछ लोग जल्द ही जेल में होंगे। मुख्यमंत्री की यह धमकी कितनी दमदार है इसका पता तो आगे चलेगा लेकिन फिलहाल लोगों को तसल्ली मिली है कि सीएम अब एक्शन में हैं। जिससे कुछ दिनों में उनको सुशासन के मजे लेने का मौका मिलने लगेगा।
इन पंक्तियों के लेखक ने लगातार कप्तानों द्वारा थानों की नीलामी का मुद्दा उठाया है हालांकि लोकतंत्र का भक्तिकाल होने के कारण एक ऐसा वर्ग विकसित हुआ है जो कि चाहता है कि मीडिया केवल सरकार की वाहवाही करे। यह लोग रामराज के यूटोपिया की भी चर्चा करते हैं लेकिन उन्हें यह ध्यान नहीं रहता कि इस राज के भी आलोचक थे। रामचन्द्र जी उन्हें देशद्रोही घोषित कर सूली पर चढ़ाने की बजाय रात में राज के निंदकों की बात सुनने के लिए गुपचुप निकलते थे ताकि प्रजा में किसी वजह से असंतोष जनम रहा हो तो समय रहते वे उसका निदान कर लें। उन्हें नहीं पता कि जब भारत के लोग आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे तो ब्रिटेन में पत्रकारों सहित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग था जो इस लड़ाई का खुलेआम समर्थन करता था क्योंकि उसे यह डर नहीं था कि इसकी वजह से ब्रिटिश सरकार उन्हें देशद्रोह का मुकद्दमा दर्ज कर जेल भेज देगी। किसी लोकतांत्रिक देश के बड़प्पन का मूल्यांकन इस आधार पर होता है कि वहां का बुद्धिजीवी वर्ग संकीर्ण दायरे से ऊपर उठकर समग्र मानवता और सार्वभौम मूल्यों के आधार पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने के मामले में कितना आगे बढ़ पाया है। अमेरिका और इंग्लैंड की तुलना में भारत का लोकतंत्र जब नवजात था उस समय भी उसका दर्जा इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की निगाह में बड़ा था क्योंकि यहां के नेताओं से लेकर बुद्धिजीवियों तक में सोच के मामले में यह परिपक्वता नजर आती थी। इसलिए यह सोच संजोये रखने की बहुत जरूरत है।
बहरहाल आज जब मुख्यमंत्री ने भी जैसा कि एक प्रमुख अखबार में लीड खबर छपी है यह कह दिया है कि अभी भी कई कप्तान पैसा लेकर काम कर रहे हैं तो इन पंक्तियों के लेखक की बात की तस्दीक हो गई है। इन पंक्तियों के लेखक का भी उद्देश्य यह था कि मुख्यमंत्री आगाह हों जिससे गलत बातों की नकेल कसी जा सके। मुख्यमंत्री ने रूस की यात्रा पर निकलने से पहले शनिवार को वीडियो कान्फ्रेसिंग में पुलिस की अच्छी खबर ली।
उन्होंने कुशीनगर के एसपी गौरव वंसवाल को बेनकाब कर दिया। बोले कि कसया इंस्पेक्टर शराब तस्करी में लिप्त पाये गये थे लेकिन उन्हें केवल पद से हटाकर निजात दे दी गई जबकि उनको नौकरी से निकाला जाना चाहिए था। लेकिन ऐसे इंस्पेक्टर कप्तानों के कमाऊ पूत होते हैं। इसलिए उन पर कार्रवाई की नौबत आती है तो हर कप्तान खाना पूर्ति करके उन्हें बचाने में लग जाता है। ऐसे ही 90 प्रतिशत लोग पुलिस में आउट आफ टर्न प्रमोशन से लाभान्वित होकर दरोगा से डिप्टी एसपी तक की पायदान पर पहुंच गये हैं।
मुख्यमंत्री को इसकी भी समीक्षा करानी चाहिए तभी पुलिस की संस्कृति बदल सकेगी। मुख्यमंत्री के गुस्से का कहर प्रयागराज के एसएसपी अतुल शर्मा पर भी टूटा। कुछ दिनों पहले प्रयागराज में उपजा के प्रदेश अध्यक्ष रतन दीक्षित को लूट लिया गया था। इन पंक्तियों का लेखक उन्हें सांत्वना देने जब पहुंचा तो प्रयागराज के कई पत्रकार मित्रों ने बताया कि अतुल शर्मा की सत्यनिष्ठा को लेकर यहां अच्छी चर्चायें नहीं हैं। कई दागदार इंस्पेक्टरों को मलाईदार थानों की बागडोर मिलने का हवाला देकर उन्होंने इसे साबित किया।
आश्चर्य की बात यह है कि जिस अधिकारी के बारे में पत्रकारों तक को यह बातें पता है उसे प्रयागराज जैसे प्रदेश के अत्यंत महत्वपूर्ण जिले की कमान कैसे मिल गई और वे कैसे प्रयागराज में टिके हुए हैं। एन कोलांची पर कार्रवाई क्यों हो गई और उनको किस खुशी में बचाये रखा जा रहा है। क्या योगी शासन में मुह देखे व्यवहार के आरोप की पुष्टि इससे नहीं होती।
दरअसल पुलिस की गंदगी के लिए केवल कप्तान जिम्मेदार नहीं हैं। नियुक्तियों में लेनदेन और पदों की खरीददारी के खेल में ऊपर तक के अधिकारी शामिल हैं। मुख्यमंत्री को इस बात से भी अवगत होना चाहिए। हालांकि ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री को भी इसकी भनक लग चुकी है लेकिन कुछ राग विराग ऐसे हैं जिनकी वजह से वे ऊपर के स्तर पर कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। अलबत्ता उन्होंने तेजतर्रार आईएएस अवनीश अवस्थी को अरविन्द कुमार के स्थान पर गृह विभाग का अपर मुख्य सचिव बना दिया है जिससे गड़बड़ी करने वाले ऊपर के अधिकारी भी अब सकते में हैं।
मुख्यमंत्री को कप्तानों की नियुक्ति में जातिगत पूर्वाग्रह छोड़ना होगा तभी साफ सुथरे अधिकारी वे जिले में पदस्थ कर सकेंगे। कई अधिकारी ऐसे हैं जो वर्षो से महत्वहीन शाखाओं में जाम रहने की सजा भोग रहे हैं जबकि उनकी कोई जांच भी लंबित नहीं है। दूसरी ओर पिछली सरकारों में तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टियों के कार्यकर्ता बनकर काम करने और लूट खसोट की इंतहा कर देने वाले अधिकारियों को प्राइज पोस्टिंग मिल रही है ऐसा क्यों है। यह स्थिति अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों में नीतिविहीनता की द्योतक है। यह स्थिति बदली जानी चाहिए और ट्रांसफर और पोस्टिंग की नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे सभी अधिकारियों के साथ न्याय हो सके। तबादला उद्योग के खिलाफ होने के कारण ही मुख्यमंत्री ने कुछ मंत्रियों को जलील किया है जो एक शुभ लक्षण हैं। लेकिन भ्रष्टाचार और जबावदेही के मामले में अभी बहुत ज्यादा करने की जरूरत है।
इस समय आम धारणा यह है कि योगी राज में पिछली सरकारों से रिश्वत का रेट दुगने से लेकर चैगुना तक हो गया है। इसका अर्थ है कि सरकार भ्रष्टाचार को लेकर असहाय है। जब तक सरकार ईओडब्ल्यू, विजीलेंस, इंटेलीजेंस और एन्टीकरप्शन आदि विंग को मजबूत नहीं बनायेगी तब तक उसकी लाचारी का निवारण नहीं होगा।
योगी सरकार की नीतियों से उत्तर प्रदेश अघोषित तौर पर हिन्दू राष्ट्र में तब्दील माना जाने लगा है ऐसे में प्रशासन में नैतिक माहौल को बनाने की जिम्मेदारी सरकार के लिए और बढ़ गई है। अगर इस सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ता है तो हिन्दुत्व की बदनामी होगी क्योंकि कर्मकांडों का स्थान हिन्दुत्व में साधन का है न कि साध्य का। हिन्दुत्व का साध्य पवित्र स्थितियों का निर्माण करना है। जैसे कि सरकार के स्वयंभू समर्थकों के देशभक्ति की दुहाई देने से देश मजबूत नहीं हो सकता अगर जो दायित्व उन्हें मिला है उसकी पूर्ति वे ईमानदारी से नहीं करते।
फेसबुक और व्हाट्सअप पर ललकारने वाले लोगों को भी अपने बारे में मालूम है कि उनका पराक्रम केवल यहीं तक सीमित है। सीमा पर देश के सामने चुनौती से निपटने के लिए उनमें से शायद ही कोई जाये। लेकिन अगर उनके मन में देश भक्ति वाकई में हिलोरें मार रही है तो जहां देश के लिए उनका फर्ज है वहां उनको इसे निभाना चाहिए। देश भक्ति की हुंकार भरने वाला डाक्टर अगर सरकारी अस्पताल में मरीजों को देखने की बजाय घर में प्राइवेट प्रेक्टिस करता है, अगर शिक्षक है और कालेज में पढ़ाने की बजाय घर में कोचिंग चलाता है, पुलिस में है और अन्याय करने वालों का दमन करने की बजाय पैसे के लिए पीड़ित को ही फंसा देता है, ठेकेदार है और सही निर्माण कराने की बजाय घटिया माल लगाकर भुगतान लेता है तो उसकी देश भक्ति को लानत है।
सीएम योगी आदित्यनाथ धर्म के गौरव को बढ़ाना चाहते हैं और कुंभ व तीर्थ स्थलों पर भारी खर्च के औचित्य को सिद्ध करना चाहते हैं तो उन्हें ईमानदारी का माहौल बनाने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहिए। शायद सीएम ने अब इस संकल्प के साथ काम करने की ठान ली है जो बहुत अच्छा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
यह भी पढ़ें : जड़ता टूटी, क्या गुल खिलायेगा यह बड़ा कदम
यह भी पढ़ें : माफियाओं को लेकर रहमदिल है सरकार